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    राशन और दवाई को मोहताज हुए माओवादी, प्रतिदिन 20 किमी तक चलकर ठिकाना बदलने को मजबूर

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 02:00 AM (IST)

    मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में सुरक्षा बलों के दबाव के चलते माओवादियों की स्थिति कमजोर हो गई है। आत्मसमर्पण करने वाली माओवादी संगीता ने बताया कि माओव ...और पढ़ें

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    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में माओवाद प्रभावित बालाघाट जिले के जंगल में कभी माओवादियों का राज चलता था, आसपास के गांवों में उनके प्रत्येक आदेश को सिर-माथे पर लिया जाता था, लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।

    सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव, सघन तलाशी अभियान के कारण शेष माओवादी राशन-पानी और दवाई के लिए मोहताज हो रहे हैं। यह जानकारी पुलिस को महाराष्ट्र के गोंदिया में पिछले दिनों 11 माओवादियों के साथ आत्मसमर्पण करने वाली बालाघाट की माओवादी संगीता ने पूछताछ में दी है।

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    बार-बार ठिकाने बदल रहे माओवादी

    सुरक्षा बलों के चौतरफा दबाव, मुठभेड़ में मारे जाने के डर के कारण संगीता ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए हैं। सका कहना है कि सुरक्षाबलों से बचने के लिए माओवादी एक दिन में करीब 20 किमी पैदल चलकर बार-बार ठिकाने बदल रहे हैं। माओवादियों के पास जरूरी दवाओं का संकट है। संगीता अपने दल में चिकित्सकीय सेवा देने में अग्रणी थी।

    मुठभेड़ में घायल सहयोगी माओवादियों का उपचार करती थी। उसे दवाओं की भी समझ हो गई थी। इसी वजह से दर्रेकसा दलम के बड़े माओवादी नेता उसे आत्मसमर्पण करने से रोक रहे थे। संगीता ने बालाघाट पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का तीन बार प्रयास किया था, लेकिन वह असफल रही थी। अब बालाघाट में गिनती के माओवादी बचे हैं।

    तीन साल में कई जिलों से माओवादी समाप्त

    एसपी आदित्य मिश्रा ने बताया कि बालाघाट में 2016-17 में 200-250 माओवादी थे। तीन साल में 20 से अधिक माओवादी ढेर हो गए। कान्हा भोरमदेव दलम, टाडा दलम, परसवाड़ा दलम अब खत्म हो चुके हैं। आत्मसमर्पण के बाद दर्रेकसा दलम भी लगभग खत्म हो चुका है। अब मलाजखंड दलम ही बचा है, जिसमें 23 माओवादी बालाघाट के जंगल में सक्रिय हैं।

    शेष माओवादी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के जंगलों की खाक छान रहे हैं। इनमें से कई दूसरे राज्यों में हथियार डालकर मुख्य धारा में लौट चुके हैं। बालाघाट का माओवादी संपत बुजुर्ग हो चुका है और दीपक भी आत्मसमर्पण करना चाहता है। सेंट्रल कमेटी सदस्य (सीसीएम) रामधेर के गिने-चुने सहयोगियों के पास अब आत्मसमर्पण ही विकल्प बचा है। उसका मूवमेंट छत्तीसगढ़ और बालाघाट के बीज जंगल में है।