पेरिस समझौते के मानकों पर खरे नहीं उतर रहे कई देश, जलवायु परिवर्तन के मुहाने पर भारत
पेरिस समझौते के तहत 2030 के लिए जो लक्ष्य तय किए थे, उनमें कई देश काफी पीछे हैं।
नई दिल्ली (आइएएनएस)। जलवायु परिवर्तन पर किए गए पेरिस समझौते के मानकों पर कई देश खरे नहीं उतर रहे हैं। इनमें भारत का नाम भी है। समझौते के तहत 2030 के लिए जो लक्ष्य तय किए थे, उनमें कई देश काफी पीछे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आइपीसीसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे भविष्य के लिए खतरा बढ़ने के आसार हैं। पर्यावरण में मौजूद कार्बन की पर्त अब बढ़ रही है। भारत समेत अन्य कई देशों को कोयले पर आधारित बिजली घरों को बंद करना पड़ेगा, तभी हालात में सुधार संभव है। यह रिपोर्ट वैसे तो अक्टूबर में पेश की जानी है, लेकिन इसकी रिपोर्ट लीक हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालात यही रहे तो 2040 तक ग्लोबल वार्मिग 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाएगी। उस स्थिति में समुद्र का स्तर बढ़ेगा तो सूखा व बाढ़ के हालात बनेंगे। हमारे लिए यह काफी शर्मनाक होगा, क्योंकि हम अपनी पीढ़ी को एक ऐसा संसार देकर जाएंगे जिसमें सुधार की गुंजाइश नहीं होगी। भारत में यह चीजें पहले से ही मौजूद हैं, इसलिए उसे काफी सतर्क रहना होगा।
खेती के चौपट होने का खतरा
ग्लोबल लीड ऑन क्लाइमेट चेंज एक्शन एड के हरजीत सिंह कहते हैं कि भारत जलवायु परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है। उसे खास एहतियात बरतनी होंगी। भारत की आधे से ज्यादा आबादी कृषि जैसे व्यवसाय पर निर्भर करती है। जलवायु में बदलाव होने से सबसे ज्यादा नुकसान उसे ही उठाना होगा। पेरिस समझौते में भारत समेत कई विकासशील देशों से अनुरोध किया गया है कि वो कार्बन के उत्सर्जन को 2030 तक 33 से 35 फीसद कम करें। इसके लिए सौर ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन केंद्रों को लगाना होगा। कोयले से चलने वाले संयंत्र बंद करने होंगे।
ब्रिटेन पर खास निशाना
रिपोर्ट में यह भी चिंता जताई है कि ब्रिटेन भी कोयला के उपयोग को कम करने के मामले में शिथिलता बरत रहा है। उसे अपने उन प्रयासों में तेजी लानी होगी, जिससे कोयले पर आधारित संयंत्र खत्म किए जा सकें। गौरतलब है कि अमेरिका इस समझौते से बाहर है। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की नीति से किनारा कर इससे अमेरिका को बाहर कर लिया था।