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राजनीतिक आहट है जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा का आगमन, परिसीमन की पहले ही चल रही कवायद

जम्मू-कश्मीर में पिछले सत्तर वर्षों में बमुश्किल दो या तीन राजनीतिज्ञ को राज्यपाल बनाया गया। 1984 के बाद से तो किसी सैन्य अधिकारी या फिर नौकरशाह को ही राज्यपाल बनाया जाता रहा था।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 07:39 PM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 07:39 PM (IST)
राजनीतिक आहट है जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा का आगमन, परिसीमन की पहले ही चल रही कवायद
राजनीतिक आहट है जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा का आगमन, परिसीमन की पहले ही चल रही कवायद

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर में एक नौकरशाह रहे उपराज्यपाल जीसी मुर्मू की जगह कुशल राजनीतिज्ञ मनोज सिन्हा की नियुक्ति प्रदेश के लिए सुखद संकेत हो सकती है। प्रदेश में परिसीमन को लेकर शुरू हो चुकी कवायद के बीच सिन्हा का आना यह आहट देता है कि सही वक्त आने पर वहां चुनाव की तैयारी हो सकती है। एक सांसद के रूप में सिन्हा अपने क्षेत्र गाजीपुर में विकास पुरुष के रूप मे जाने जाते रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे के एक साल बाद ही उनकी नियुक्ति जहां विकास की धारा को आगे बढ़ाने में सहायक होगी, वहीं मिलनसार व्यवहार और कुशल वार्ता कला भी अहम साबित होगी। शायद उनसे अपेक्षा होगी कि वह प्रदेश में राजनीतिक वार्ता को आगे बढ़ाएं और विश्वास पैदा करें। यही कारण है कि केंद्र की ओर से राजनीतिक व्यक्ति को वहां भेजा गया है।

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ध्यान रहे कि जम्मू-कश्मीर में पिछले सत्तर वर्षों में बमुश्किल दो या तीन राजनीतिज्ञ को राज्यपाल बनाया गया। 1984 के बाद से तो किसी सैन्य अधिकारी या फिर नौकरशाह को ही राज्यपाल बनाया जाता रहा था। मोदी सरकार ने इस कड़ी को तोड़ते हुए 2018 में सत्यपाल मलिक के रूप में एक राजनीतिज्ञ को भेजा था। वह जम्मू-कश्मीर के आखिरी राज्यपाल हुए। उनके ही काल में अनुच्छेद 370 और 35 एक रद हुआ।

सिन्हा जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पहले राजनीतिक उपराज्यपाल बनाए गए हैं, तो उनसे उम्मीद है कि बदले माहौल में विकास की धारा भी बढ़े और राजनीतिक माहौल भी तैयार हो। गौरतलब है कि वहां परिसीमन तो शुरू हो गया है, लेकिन नेशनल कांफ्रेंस इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है। पंचायत चुनाव में भी कई दलों ने हिस्सा नहीं लिया था। सिन्हा की छवि एक ऐसे नेता की है, जो विनम्र भी हैं, अनुशासित भी और इज्जत देना व हासिल करना जानते हैं। यही साबित करना सिन्हा की चुनौती भी है।

उल्‍लेखनीय है कि राज्य के फरवरी में गठित परिसीमन आयोग को लगभग एक साल में इसे पूरा करने को कहा गया है। तब तक कोई चुनाव नहीं हो सकता है। यानी तब तक राज्य में स्थिति माकूल हुआ और राजनीतिक दलों की उत्सुकता बढ़ी तो उसके बाद चुनावी प्रक्रिया शुरू हो सकती है। वैसे भी 2015 चुनाव के आधार पर मार्च 2021 में पुराने जम्मू-कश्मीर का चुनाव होना था। अब स्थितियां बदल गई हैं।


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