मणिपुर हाईकोर्ट ने सात बर्मा शरणार्थियों को दी सुरक्षा, म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां के लोगों ने ली शरण
मणिपुर हाईकोर्ट के सात बर्मा शरणार्थियों को सुरक्षा प्रदान करने से म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां के लोगों को भारत की सीमाओं में घुसने से रोकने की केंद्र की नीति पर सवालिया निशान लग गया है। अदालत में इन सातों शरणार्थियों को सुरक्षा देने की जरूरत है।
कोलकाता, आइएएनएस। मणिपुर हाईकोर्ट के सात बर्मा शरणार्थियों को सुरक्षा प्रदान करने से म्यांमार में तख्तापलट के बाद वहां के लोगों को भारत की सीमाओं में घुसने से रोकने की केंद्र की नीति पर सवालिया निशान लग गया है। मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार और जस्टिस लानुसुंगकुम जामिर की पीठ ने भारत की प्रमुख मानवाधिकार अधिवक्ता नंदिता हकसर की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि इन सातों शरणार्थियों को सुरक्षा देने की जरूरत है। इन सातों पर लगातार प्रशासन के हाथों प्रत्यर्पित या गिरफ्तार होने का खतरा है।
इन्हें तेंगनुपाल जिले के मोरेह से इम्फाल सुरक्षित पहुंचाने और सुरक्षित रास्ता देने की जरूरत है। इस बात का संज्ञान लेते हुए कि हक्सर ने उपायुक्त के समक्ष इस बात की जिम्मेदारी ली है कि वह उन्हें तेंगनुपाल में उस स्थान पर ले जाएंगी जहां वह सातों छिपे हुए हैं। जजों ने कहा कि इन्हें संचार के सुरक्षित साधन इम्फाल जाने के लिए मुहैया कराए जाने चाहिए। चूंकि याचिकाकर्ता इन सातों शरणार्थियों को अपने घर पर रखने को सहमत हो गई हैं, इसलिए प्रशासन को इम्फाल स्थित हक्सर के घर पर सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए।
जस्टिस जामिर ने कहा कि अगले आदेश तक इन सातों शरणार्थियों के खिलाफ केंद्र या राज्य सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगी। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले ही महीने अर्धसैनिक बल असम रायफल को निर्देशित किया था कि भारत-म्यांमार सीमा को पार करके कोई भी बर्मा का शरणार्थी अपने देश में घुसने न पाए। उसके बावजूद म्यांमार के करीब तीन हजार रिफ्यूजी भारतीय सीमा में घुसपैठ करने में कामयाब हो गए थे।