कामयाबी के दूसरे पायदान पर मंगलयान
बेंगलूर। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के अथकप्रयास से मार्स आर्बिटर मिशन सफलता पूर्वक अगले चरण में पहुंच गया। करीब 250 वैज्ञानिकों व तकनीकी विशेषज्ञों का दल शनिवार की देर रात यहां इस सर्वाधिक जोखिम वाली प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने में लगा रहा। मध्य रात्रि के बाद 12.4
बेंगलूर। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों के अथकप्रयास से मार्स आर्बिटर मिशन सफलता पूर्वक अगले चरण में पहुंच गया। करीब 250 वैज्ञानिकों व तकनीकी विशेषज्ञों का दल शनिवार की देर रात यहां इस सर्वाधिक जोखिम वाली प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाने में लगा रहा। मध्य रात्रि के बाद 12.49 बजे जब ट्रांस-मार्स इंजेक्शन प्रक्रिया के तहत इस यान पर लगे के इंजन को 23 मिनट तक दागा गया तो इसकी गति बढ़कर 648 मीटर प्रति सेकंड हो गई। तब सबकी निगाहें सामने लगे स्क्रीन पर जम गई थीं। इस चरण की सफलता ने नियंत्रण कक्ष में बैठे तमाम इसरो कर्मियों के चेहरे पर खुशियां बिखेर दीं। इसके पहले रात्रि साढ़े बारह बजे इसे घुमाकर ट्रांस-मार्स इंजेक्शन प्रक्रिया के लिए सही स्थिति में लाया गया था।
इसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से बाहर निकालने में कोई परेशानी नहीं हुई। अब मंगलयान लाल ग्रह की कक्षा के लिए 300 दिन की गहन अंतरिक्ष यात्रा पर रवाना हो गया है। बेंगलूर स्थित अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र से इस पर लगातार नजर रखी जा रही है। इस काम में चेन्नई स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आइडीएसएन) की मदद ली जा रही है।
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मंगलयान प्रक्षेपण से बढ़ी भारत की प्रतिष्ठा
मंगलयान करीब 68 करोड़ किलोमीटर तक तय रास्ते पर जाएगा और वर्ष 2014 में 24 सितंबर को मंगल के करीब पहुंचेगा। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से गत पांच नवंबर को प्रक्षेपित यह मंगलयान रास्ते से भटके नहीं इसके लिए इसे सही रास्ते पर रखने के लिए चार चरणों में सुधारात्मक प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा। इसके बाद इसकी गति कम कर मंगल की कक्षा में लाया जाना है। ऐसा हो जाने के बाद भारत अमेरिका, यूरोप और रूस के साथ उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा जिनके अंतरिक्ष यान या तो मंगल की कक्षा के चक्कर लगाने या उस पर उतरने में कामयाब रहे हैं।
कामयाबी के दूसरे पायदान पर मंगलयान
मंगलयान पृथ्वी की अंतिम कक्षा में पहुंचा
भारत ऐसा करने वाला एशिया का पहला देश होगा। अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं उनमें आधे से अधिक नाकाम रहे हैं। इस अभियान में नाकाम रहने वाले देशों में चीन और जापान भी शामिल हैं।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के खर्च के दसवें हिस्से से भी कम खर्च में (450 करोड़ रुपये) यह सफलता हासिल कर 304 अरब डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष बाजार पर भारत के कब्जे की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं।
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