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अवध में प्रबंधन पराक्रम से बदली हवा

लखनऊ, राजकिशोर। अवध का संग्राम बिल्कुल अपने मिजाज के मुताबिक ही हो रहा है। पूरे उत्तर प्रदेश में जब तीखे बयानों की होड़ मची है, ऐसे में भी लखनऊ ने अपनी सियासी नफासत नहीं खोई है। हालांकि, इस नफासत के बावजूद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मैदान में होने से यहां चुनावी सरगर्मी और हलचलें सबसे तेज रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी

By Edited By: Published: Tue, 29 Apr 2014 02:43 AM (IST)Updated: Tue, 29 Apr 2014 02:43 AM (IST)
अवध में प्रबंधन पराक्रम से बदली हवा

लखनऊ, राजकिशोर। अवध का संग्राम बिल्कुल अपने मिजाज के मुताबिक ही हो रहा है। पूरे उत्तर प्रदेश में जब तीखे बयानों की होड़ मची है, ऐसे में भी लखनऊ ने अपनी सियासी नफासत नहीं खोई है। हालांकि, इस नफासत के बावजूद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मैदान में होने से यहां चुनावी सरगर्मी और हलचलें सबसे तेज रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रमुख ताकत रहे ब्राह्मण और शिया मुसलिम वोटों की शुरुआती उदासीनता ने यहां चुनाव बेहद दिलचस्प कर दिया था, लेकिन अपने कद और प्रबंधन की बाजीगरी से भाजपा अध्यक्ष ने सियासी फिजां को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पा ली है। तीखी बयानबाजियों से बचते हुए वाजपेयी की शैली में ज्यादातर लोगों से सीधा संवाद कायम कर वह खुद को उनके उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने में भी कामयाब होते नजर आ रहे हैं।

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वहीं, पिछले चुनाव में हार के बाद से ही लगातार लखनऊ में मेहनत कर रहीं कांग्रेस प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी ने भी यह सुनिश्चित कर लिया है कि मुकाबला उन्हीं के साथ हो, सपा और बसपा इस पूरे चुनाव में वोटकटवा या तीसरे-चौथे नंबर की लड़ाई तक ही दिख रहे हैं। वाजपेयी की सीट पर उत्तराधिकारी के रूप में शुरुआत में जब राजनाथ सिंह लखनऊ आए थे तो परंपरागत रूप से भाजपा की रही इस सीट पर विजय को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं थी। लखनऊ में हमेशा की तरह कायस्थ, वैश्य, पंजाबी, खत्री और सिंधी मतदाताओं की प्रतिबद्धता दृढ़ नजर आने के बावजूद ब्राह्मणें और शियाओं की चुप्पी ने चुनाव जटिल बनाने के संकेत दे दिए थे। बावजूद इसके कि पिछड़े तबकों में नरेंद्र मोदी का प्रभाव भाजपा के पक्ष में साफ देखा जा सकता है।

राजनाथ की मुश्किलें बढ़ाते हुए स्थानीय विधायक और पांच वषरें से चुनाव की तैयारी कर रही रीता बहुगुणा जोशी ने लखनऊ के दो सबसे बड़े वोटर समुदायों ब्राह्मण और मुस्लिमों के बीच अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लखनऊ में पहाड़ों के भी खासा वोटर हैं, जो भाजपा के साथ जाता रहा है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में उसने रीता का साथ देकर उन्हें लखनऊ कैंट सीट से उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचा दिया था। लोकसभा चुनाव में भी रीता को पहाड़ी वोटों पर खासा भरोसा है। टिकट कटने से यहां से मौजूदा सांसद लालजी टंडन की नाराजगी और टिकट की आस में बैठे कुछ अन्य नेताओं की मायूसी ने राजनाथ की राह में कांटे बिछाने की भी कोशिश की। इसका अहसास होते ही राजनाथ ने न सिर्फ अपनी पूरी ताकत झोंकी, बल्कि अपने विलक्षण सियासी प्रबंधन के पंच से इन चुनौतियों को धराशायी कर दिया। प्रबंधन पराक्रम से दो हफ्ते के भीतर भाजपा अध्यक्ष ने पूरी चुनावी धारा मोड़ने में सफलता पा ली है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि कोई भी वर्ग उनसे नाराज न हो।

अग्रे-अग्रे विप्राणां :

राजनाथ सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि कांग्रेस और बसपा प्रत्याशी लगातार भाजपा को ब्राह्मणों के अपमान और उनको हाशिये पर लगाने को मुद्दा बना रहे थे। लखनऊ में ब्राह्मण वोटर जहां सबसे ज्यादा हैं, वहीं चुनाव में उनका रुख दूसरे वर्गो पर भी सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। इसे समझते हुए तत्काल राजनाथ ने 'अग्रे-अग्रे विप्राणां.' की तर्ज पर ब्राह्मणों से सीधा संवाद बढ़ाया। साथ ही उनके पूरे चुनाव में ब्राह्मण चेहरे ही आगे आ गए। रविवार को राजनाथ ने जो लखनऊ में जो जबरदस्त रोड शो किया, उसमें उनके साथ ब्राह्मण चेहरे ही थे।

पहाड़ी कार्ड :

सुधांशु त्रिवेदी और दिनेश शर्मा लखनऊ में राजनाथ के चुनावी अभियान का प्रबंधन पहले से ही संभाल रहे थे। लखनऊ विश्वविद्यालय व अन्य प्रभावशाली ब्राह्मणों के राजनाथ के पक्ष में खुलकर आने से भाजपा की स्थिति जाहिर तौर पर मौजूद हुई। इस बीच राजनाथ सिंह अचानक एनडी तिवारी से विजयी होने का आशीर्वाद ले आए, जिसका असर हुआ कि रीता बहुगुणा जोशी को भी पहाड़ी वोटों के लिए दो दिन बाद तिवारी की शरण में जाना पड़ा। यहां यह दिलचस्प है कि सपा से अभिषेक मिश्र और बसपा से नकुल दुबे यहां ब्राह्मणों के बीच कहीं चर्चा में नहीं हैं।

शिया मुसलिमों का मूड :

शिया मुसलिमों के धर्मगुरु कल्बे जव्वाद से दुआ लेकर राजनाथ ने प्रखर हिंदुत्व कार्ड से सहमे लखनऊ के शिया वोटरों के बीच पैठ बनाने की कोशिश की। वाजपेयी के चुनाव लड़ने के समय सक्रिय रहे तमाम शिया नेताओं को भी अपने पक्ष में किया। साथ ही पूरे प्रदेश में सभा करने के बावजूद नरेंद्र मोदी का लखनऊ न आना शिया वोटरों के बीच राजनाथ की अटल की तरह नरम चेहरे की छवि को पेश करना ही माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी प्रत्याशी जावेद जाफरी को भी शिया मुसलिमों का भरोसा है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि उनमें और राजनाथ में कितना वोट बंटता है।

रीता को भारी :

कांग्रेस उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ में अच्छा चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन ऐन आम चुनावों से पहले उनके भाई विजय बहुगुणा को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना उनके खिलाफ जा रहा है। भाई के उत्तराखंड के सीएम रहते रीता ने तमाम लोगों की मदद की। उत्तराखंड में काम हो जाने की अपेक्षा में भी रीता के साथ लोग जुड़ते रहे। मगर अब उनके बीच में हटने से वह प्रभाव कम हुआ है। वैसे रीता इस मामले में तो कामयाब रही हैं कि भाजपा की पूरी कोशिश के बावजूद मुकाबला राजनाथ बनाम रीता रहा है।

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