मप्र के विदिशा में सहरिया आदिवासी समुदाय की मालती विवाह रुकने के बाद भी हुईं प्रताड़ित, पर नहीं बदला निर्णय
फाउंडेशन के प्रदेश समन्वयक प्रवेश शर्मा कहते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में अब तक बाल मित्र ग्राम योजना के सदस्य बाल विवाह को रोकने का काम कर रहे थे लेकिन अब इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए आम लोगों को भी साथ आने की जरूरत है।
अजय जैन, विदिशाः मां कात्यायनी का स्वरूप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी त्वरित निर्णय लेने और उस पर डटे रहने की शिक्षा देता है। इसी संकल्प के भरोसे मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के छोटे से गांव ओरंगपुर की सहरिया आदिवासी समुदाय की एक लड़की मालती ने समाज के खिलाफ जाकर न केवल खुद को बालिका वधु बनने से रोका बल्कि गांव की दो अन्य लड़कियों को भी कम उम्र में दुल्हन नहीं बनने दिया। साहस की प्रतिमूर्ति बनी मालती की परेशानियां यहीं नहीं रुकी।
विवाह रुकने के बाद भी गांव-समाज का विरोध और प्रताड़ना जारी रही, लेकिन वह डिगी नहीं। अब वह बीए में पढ़ रही है और नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रेंस फाउंडेशन के साथ बच्चों के बेहतर जीवन के लिए कार्य भी कर रही है।
मालती आगे पढ़ने की इच्छुक थी
विदिशा की गंजबासौदा तहसील में है ओरंगपुर गांव। यहां की रहने वाली मालती के लिए बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई आसान नहीं रही। दो वर्ष पहले 16 वर्ष की आयु पूरी होते ही गांव के बुजुर्गों के कहने पर माता-पिता ने समाज का ही एक लड़का खोजकर उसका रिश्ता तय कर दिया। दो महीने बाद शादी होनी थी, लेकिन मालती आगे पढ़ने की इच्छुक थी। उसने पहले अपने माता-पिता को समझने का प्रयास किया, पर वे अपने फैसले पर अड़े रहे। मालती कक्षा 11 में पढ़ रही थी। शादी के तनाव के कारण उसने स्कूल जाना छोड़ दिया।
जब मां ने मालती के पिता को मनाया
एक दिन गांव में गठित बाल पंचायत में मालती को जाने का मौका मिला, जहां कैलाश सत्यार्थी के फाउंडेशन के प्रतिनिधि बच्चों के अधिकारों के बारे में बता रहे थे। मालती ने इन प्रतिनिधियों को माता-पिता द्वारा इच्छा के विरुद्ध कम उम्र में शादी करने की बात बताई, तो उन्होंने हौसला बढ़ाते हुए सहायता का विश्वास दिलाया। फाउंडेशन के प्रतिनिधि जब उसके घर पहुंचे तो पिता ने उनकी बात सुनने से पहले ही घर का दरवाजा बंद कर लिया। माता-पिता का कहना था कि यह उनका निजी मामला है। इसके बाद मालती की मुश्किलें बढ़ गईं, लेकिन उसने हार नहीं मानी। कुछ दिनों बाद उसने फाउंडेशन के लोगों की बात सुनने के लिए किसी तरह अपनी मां को मना लिया। फाउंडेशन के लोगों ने जब मां को बाल विवाह को कानूनी अपराध बताते हुए इससे होने वाले नुकसान के बारे में समझाया, तो मां मालती का विवाह न करने के लिए मान गईं। इसके बाद मां ने मालती के पिता को मनाया।
लंबे संघर्ष के बाद उसका विवाह तो रुक गया लेकिन समाज के कुछ लोगों को यह नागवार गुजरा। उन्होंने मालती को तरह-तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का प्रयास किया, लेकिन वह डरी नहीं। उसने फिर से स्कूल जाना शुरू किया और आज वह गंजबासौदा के सरकारी कालेज में बीए की पढ़ाई कर रही है। मालती के मुताबिक इस घटना के बाद वह सत्यार्थी के फाउंडेशन से जुड़ गई और बाल पंचायत की सरपंच चुनी गई। इसी वर्ष उसने अपने गांव की दो अन्य लड़कियों का भी बाल विवाह रुकवाया है। उसका कहना है कि अब वह अपने समुदाय में किसी भी लड़की का विवाह कम उम्र में नहीं होने देगी। उसका लक्ष्य एक पुलिस अधिकारी बनकर बाल विवाह की समाजिक बुराई को पूरी तरह रोकना है।
बाल विवाह को रोकने जन आंदोलन करेगा फाउंडेशन
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन बाल विवाह की परंपरा को समाप्त करने के लिए इस वर्ष देश भर में एक बड़ा जन आंदोलन करने जा रहा है। फाउंडेशन के प्रदेश समन्वयक प्रवेश शर्मा कहते हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में अब तक बाल मित्र ग्राम योजना के सदस्य बाल विवाह को रोकने का काम कर रहे थे, लेकिन अब इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए आम लोगों को भी साथ आने की जरूरत है। इसी के चलते फाउंडेशन ने 16 अक्टूबर को देश के पांच हजार गांवों में मशाल जुलूस निकालकर बाल विवाह के विरुद्ध एक बड़ा आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है। इस आंदोलन का नेतृत्व खुद कैलाश सत्यार्थी करेंगे।