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प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित की रिहाई की राह खुली

मालेगांव बम विस्फोट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। आतंकवाद निरोधक कानून मकोका के तहत दोनों पर प्रथमदृष्टया आरोप साबित न होने की बात कहकर सुप्रीम कोर्ट ने साध्वी और कर्नल पुरोहित की रिहाई की राह खोल दी है। हालांकि,

By anand rajEdited By: Published: Wed, 15 Apr 2015 09:52 AM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2015 01:08 AM (IST)
प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित की रिहाई की राह खुली

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। मालेगांव बम विस्फोट में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। आतंकवाद निरोधक कानून मकोका के तहत दोनों पर प्रथमदृष्टया आरोप साबित न होने की बात कहकर सुप्रीम कोर्ट ने साध्वी और कर्नल पुरोहित की रिहाई की राह खोल दी है। हालांकि, खुद यह फैसला न देते हुए कोर्ट ने कहा कि मकोका हटाने के लिए दोनों आरोपी निचली अदालत में अपील कर सकते हैं।

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न्यायमूर्ति एफएमआइ खलीफुल्ला और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ के फैसले से प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित सहित छह आरोपियों को राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि साध्वी प्रज्ञा और श्रीकांत पुरोहित के आरोप साबित नहीं होते हैं। ऐसे में दोनों ही आरोपी निचली अदालत में अपनी जमानत के लिए अर्जी दे सकते हैं। पीठ ने यह भी निर्देश दिए कि आरोपियों की जमानत अर्जियों से निबटने के दौरान महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के कड़े प्रावधानों पर विचार न किया जाए।

विस्फोट में सात मारे गए थे :

महाराष्ट्र के नासिक में सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील कपड़ा नगर मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को एक बम धमाके में 7 लोग मारे गए थे। आरोपियों ने जमानत देने से इंकार करने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। उन्होंने यह भी अनुरोध किया था कि कठोर मकोका कानून के तहत आरोप निर्धारण बहाल रखने के लिए उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त किया जाए।

उच्च न्यायालय का आदेश था कि मालेगांव बम विस्फोट कांड में प्रज्ञा और 10 अन्य आरोपी मकोका के तहत सुनवाई का सामना करेंगे। उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के उस फैसले को भी खारिज कर दिया था जिसने इस विशेष कानून के तहत आरोप निरस्त कर दिए थे।

4 हजार पृष्ठों का आरोप पत्र :

विशेष मकोका अदालत ने पहले कहा था कि आतंकवाद निरोधक दस्ते ने इस मामले में प्रज्ञा, पुरोहित और 9 अन्य आरोपियों पर गलत ढंग से मकोका लगाया था। वहीं, 4 हजार पृष्ठों के आरोपपत्र में आरोप लगाया गया था कि मालेगांव को विस्फोट के निशाने के रूप में इसलिए चुना गया था, क्योंकि वहां मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी है। उसमें प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और अन्य आरोपी स्वामी दयानंद पांडे को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया।

आरोपियों पर ये थे इल्जाम :

आरोपपत्र में यह भी कहा गया था कि पांडे ने ही पुरोहित को आरडीएक्स का इंतजाम करने का निर्देश दिया था जबकि मोटर साइकिल प्रज्ञा की थी जिसका विस्फोट में इस्तेमाल किया गया। अन्य आरोपी अजय राहिरकर ने इस आतंकी कार्रवाई के लिए कथित रूप से धन की व्यवस्था की जबकि साजिश की बैठकें नासिक के भोंसला मिलेट्री स्कूल में हुईं। अन्य आरोपी राकेश धावड़े, रमेश उपाध्याय, श्यामलाल साहू, शिवनारायण कलसांगरा, सुधाकर चतुर्वेदी, जगदीश महात्रे और समीर कुलकर्णी हैैं। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने राकेश डी. धवाडे के मामले को इस आधार पर अपवाद माना कि वह मालेगांव विस्फोट से पहले भी इस तरह के अन्य अपराधों में कथित रूप से शामिल रहा है।

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