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Makar Sankranti 2020: जानें- मकर संक्राति के दिन काले तिल का क्यों किया जाता है दान

Makar Sankranti 2020 इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ रही है। जानें इस दिन काले तिल को दान करने के पीछे की वजह।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 01:52 PM (IST)
Makar Sankranti 2020: जानें- मकर संक्राति के दिन काले तिल का क्यों किया जाता है दान
Makar Sankranti 2020: जानें- मकर संक्राति के दिन काले तिल का क्यों किया जाता है दान

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Makar Sankranti 2020: मकर संक्राति आने में महज कुछ दिन शेष हैं। यह शुभ दिन प्रत्येक वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस साल यानी 2020 में यह तारीख 15 जनवरी है। इस दिन का इंतजार सभी लोग बेसब्री से करते हैं। यह दिन भले ही साल में एक बार आता है, लेकिन सभी के लिए खुशियों का दरवाजा जरूर खोल देता है या यू कहें कि यह दिन सभी लोगों को एक ऐसा मौका देता है जब आप काले तिल या सफेद तिल को दान करने से अपने जीवन में खुशियों का आगमन कराने के लिए दरवाजा खोलते हैं। हिंदू धर्म में इस दिन को लेकर अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं, लेकिन इस पर्व पर तिलों को बेहद ही महत्वपू्र्ण माना जाता। इस दिन तिलों के दान से लेकर तिल खाने तक को शुभ बताया गया है। खासकर काले तिल को दान करने को लेकर महत्वपूर्ण बताया गया है। तो आइये आज इस शुभ अवसर पर हम आपको यह बताएंगे कि इस दिन काले तिल का दान क्यों किए जाते हैं और ऐसा करने से किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में किसी तरह के बदलाव आते हैं। इसके साथ ही इसके पीछे क्या धार्मिक मान्यता है।

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काले दिन दान करने से मिलेगा ये फल

  • हिंदू मान्यता के अनुसार तिल शनि देव के प्रिय हैं। ऐसा माना जता है कि अगर मकर संक्राति के दिन तिल का दान या सेवन किया जाए तो इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं। जिससे ऐसे व्यक्ति जिस पर शनि देव का कुप्रभाव है वह भी कम हो जाता है। इसलिए इस दिन काले तिल को दान करने की मान्यता है।
  • आमतौर पर इस पर्व पर तिल के अलावा चावल, उड़द की दाल, मूंगफली या गुड़ का सेवन और दान करने की परंपरा है, लेकिन तिल का महत्व इस दिन ज्यादा है। शनि देव के अलावा तिल विष्णुजी के लिए भी काफी प्रिय है। मान्यता है कि तिल का दान करने से इंसान सभी प्रकार के पापों से मुक्ति पा लेता है।

प्रचलित है यह कथा

मकर संक्रांति के दिन काले दिन खाने और दान करने के पीछे हिंदू धर्म में एक पौराणिक कथा है। दरअसल, सूर्य देव की दो पत्नी थी। एक का नाम छाया और दूसरी का नाम संज्ञा। शनि देव सूर्य के पुत्र हैं, लेकिन उनकी मां का नाम छाया है वहीं यमराज शनि देवी की दूसरी पत्नी संज्ञा के बेटे हैं। एक दिन सूर्य देव ने अपनी पत्नी संज्ञा को पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए देख लिया। इसको देखकर शनि देव ने अपने गुस्से में अपनी दूसरी पत्नी छाया और उनके पुत्र शनि को खुद से अलग कर दिया।

शनि देव ने दिया सूर्य देव के शाप

इससे रुष्ट होकर शनि देव और उनकी मां छाया ने सूर्य देव को कुष्ट रोग का शाप दे दिया है। इसके बाद सूर्य के दूसरे पुत्र यमराज ने पिता को ऐसी हालत में देख कठोर तप किया। कठोर तप के बाद यमराज ने शनि को इस शाप से मुक्त करा लिया। वहीं सूर्य देव ने क्रोध में शनि के घर माने वाले कुंभ को जला दिया। इससे शनि और उनकी मां को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ा।

यमराज ने निभाई मध्यस्थता की भूमिका

इसके बाद सूर्य देव के दूसरे पुत्र यमराज ने अपने पिता से आग्रह किया कि वह शनि को माफ कर दे। बेटे के आग्रह के बाद सूर्य देव अपने दूसरे बेटे शनि के घर गए। बेटे शनि देव के घर पर सबकुछ जला हुआ था। उनके पास बस तिल ही शेष थे। इसलिए बेटे शनि ने पिता सूर्य की तिल से पूजा की। उस दिन उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शानिदेव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन काले तिल से शनि देव की पूजा करेगा या फिर काले दिन करेगा उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे। इसलिए इस दिन ना सिर्फ तिल से सूर्यदेव की पूजा की जाती है बल्कि दान भी किए जाते हैं। 


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