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शौर्यगाथा: बेरीवाला पुल के पास दुश्मन के बंकर में घुस खामोश करा दी थी लाइट मशीनगन

भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 13 दिसंबर, 1971 की रात मेजर ललित मोहन भाटिया ने देश के लिए जो कुर्बानी दी, उसे देश हमेशा याद रखेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 14 Dec 2018 10:21 AM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 10:29 AM (IST)
शौर्यगाथा: बेरीवाला पुल के पास दुश्मन के बंकर में घुस खामोश करा दी थी लाइट मशीनगन
शौर्यगाथा: बेरीवाला पुल के पास दुश्मन के बंकर में घुस खामोश करा दी थी लाइट मशीनगन

फाजिल्का [मोहित गिल्होत्रा]। भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 13 दिसंबर, 1971 की रात मेजर ललित मोहन भाटिया ने देश के लिए जो कुर्बानी दी, उसे देश हमेशा याद रखेगा। उन्होंने अपने हौसले से पाकिस्तानी सेना को फाजिल्का की तरफ बढ़ने नहीं दिया। उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।

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मेजर ललित मोहन भाटिया कोलकाता के रहने वाले थे। वे 15 राजपूत बटालियन में बतौर मेजर तैनात थे। उनकी यूनिट की ड्यूटी पंजाब के फाजिल्का सेक्टर में थी। मेजर भाटिया की यूनिट को पाकिस्तानी आउट पोस्ट पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया। यह जिम्मेदारी आसान नहीं थी, क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से 2500 रेंजर, 28 टैंक और भारी तोपों से लैस एक पैदल ब्रिगेड की तैनाती की गई थी। इसके चलते पाक ने बेरीवाला पुल पर कब्जा कर लिया था। दुश्मन बंकर में छिपकर लाइट मशीन गन (एलएमजी) से लगातार फायरिंग कर रहा था। इसका जवाब देने के लिए मेजर भाटिया खुद दुश्मन के बंकर तक पहुंच गए।

पाक सैनिकों से आमने-सामने की लड़ाई हुई। दुश्मन की एलएमजी को शांत करने के लिए वे बंकर में कूद गए और इसे खामोश करके ही दम लिया। उन्होंने वहां दो को ढेर भी दिया। इस दौरान दुश्मन की गोलियों ने मेजर भाटिया के सीने को छलनी कर दिया। वह गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन हार नहीं मानी और निहत्थे होने के बावजूद दुश्मनों का मुकाबला किया। जख्मों का ताव न झेलते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी इस शहादत के बूते यूनिट ने पाकिस्तान बंकर पर कब्जा कर लिया। उन्होंने दुश्मन के दो टैंक, एक गिलगिट जीप और भारी मात्रा में हथियार अपने कब्जे में ले लिए। पाकिस्तानी फौज के दो अफसरों व कई जवानों को बंदी बना लिया।

युद्ध के दौरान भारतीय सेना के कई जवानों के सीने दुश्मनों की गोलियों से छलनी हो गए, लेकिन उन्होंने रणक्षेत्र में पीठ नही दिखाई। तीन दिन तक दुश्मनों का मुकाबला करने वाले सिपाही थान सिंह, तोपची हरबंस सिंह, हवलदार गंगाधर जैसे योद्धा इनमें शामिल थे। सभी ने शहादत पाई। लांस नायक दृगपाल को महावीर चक्रसे नवाजा गया। वीर लेफ्टिनेंट केजे फिलिप्स की टांग कट गई, लेकिन उन्होंने पीठ नहीं दिखाई। वे दुश्मनों के सामने डटे रहे। जब दुश्मनों ने हाथ खड़े किए, तब केजे फिलिप्स ने प्राण त्यागे। शहीद स्मारक आसफवाला में इन वीर जवानों की याद में प्रतिमाएं लगाई गई हैं। यहां लोग उनकी शहादत को सलाम करने पहुंचते हैं। 


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