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घोड़े की जगह अब कार-बाइक पर सवार मृत परिजन, पढ़ें पूरी कहानी

एक गातला का खर्च लगभग 10 से 30 हजार रुपए आता है। पहले नाक मुंह चेहरा बनाते हैं बाद में शरीर के अन्य अंग उकेरे जाते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 01:19 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 01:19 PM (IST)
घोड़े की जगह अब कार-बाइक पर सवार मृत परिजन, पढ़ें पूरी कहानी
घोड़े की जगह अब कार-बाइक पर सवार मृत परिजन, पढ़ें पूरी कहानी

यशवंत सिंह पंवार, झाबुआ। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में परिजन की अकाल मृत्यु के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए गातला (पत्थर पर उकेरी प्रतिकृति) लगाने की परंपरा में भी समय के साथ बदलाव दिखाई दे रहा है। पहले जहां गातलों में मृत परिजन घोड़ों पर सवार नजर आते थे, वहीं अब इनके अलावा वे कार, बाइक पर भी सवार नजर आ रहे हैं। यही नहीं अब कंधे पर बंदूक और हाथ में तलवार लिए गातला भी ग्रामीण क्षेत्रों में नजर आने लगे हैं। गातलों में पारंपरिक परिधान की जगह मृत परिजनों को अब पेंट-शर्ट पहने भी दिखाया जा रहा है। गातलों के प्रति ग्रामीणों की विशेष आस्था होने से शुभ मौकों पर उनका पूजन भी किया जाता है।

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क्षेत्र में पुराने समय से ही गातला बनाने की परंपरा है। घर के किसी सदस्य की अकाल या अन्य वजह से मृत्यु होने पर उसकी याद में यह बनवाया और स्थापित किया जाता है। मान्यता है कि मृत परिजन के स्वप्न में आने का अर्थ यह होता है कि मृतात्मा को सम्मान के साथ उचित स्थान दिया जाए ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके। पत्थर पर मृतात्मा की आकृति उकेरकर उसे खेत की मेड़ या अन्य स्थान पर धूमधाम से स्थापित किया जाता है। इस मौके पर पूरी रात महिलाएं गीत के माध्यम से गाथा (मृतक की याद में गीत) गाती हैं। पूजा-अर्चना करते हुए पूरे गांव को भोज भी दिया जाता है। बाद में उस देवस्थान की हर पर्व और शुभ मौके पर परिजन द्वारा पूजा की जाती है। उन्हें नैवेद्य भी चढ़ाया जाता है।

वरिष्ठ साहित्यकार मांगीलाल सोलंकी कहते हैं कि पद्य में गाकर जो कहानी सुनाई जाती है, उसे 'गाथा' कहा जाता है। समय के साथ गाथा से गाता हुआ और वर्तमान में 'गातला" शब्द प्रचलन में आ गया। यह प्रथा राजस्थान के कुशलगढ़ के ढोलका गांव से वर्षों पहले शुरू हुई। गौरतलब है कि झाबुआ कुशलगढ़ का समीपस्थ जिला है। झाबुआ जिले के करड़ावद बड़ी के हेमचंद्र डामोर ने बताया कि उनके परिजन 34 वर्षीय गोलू दितिया भाबोर की पिछले साल शिर्डी यात्रा के दौरान सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। हादसे के वक्त वे कार में सवार थे इसलिए कार में बैठे हुए उसका गातला स्थापित किया गया है।

मृत्यु की वजह प्रतिकृति में

70 वर्षीय शिवजी धन्नालाल का परिवार चार पीढ़ियों से गातला बनाने का काम कर रहा है। वे बताते हैं कि पहले गातला में एक काल्पनिक व्यक्ति को घोड़े पर बैठा बता दिया जाता था, लेकिन अब मृतक का फोटो देकर उसकी पसंदीदा वस्तुओं का चित्र भी उकेरने के लिए कहा जाता है। यदि संबंधित व्यक्ति की मृत्यु बाइक से हादसे में हुई तो उसका चित्र गातला में बाइक पर बैठा हुआ बनाते हैं। कार या अन्य किसी वाहन से हादसे में निधन होने पर वही वाहन पत्थर पर उकेरा जाता है। सांप के काटने या हथियार से हत्या हुई है तो सांप या उक्त हथियार भी बनाते हैं। अब तो पेंट- शर्ट या अन्य परिधान में मृत व्यक्ति की प्रतिकृति उकेरी जा रही है। इसके पीछे सोच यही है कि जिस तरह से व्यक्ति रहता था या उसकी मृत्यु का जो भी कारण रहा, वह सभी गातला में आना चाहिए।

15-20 दिन लगते हैं बनाने में

शिवजी का कहना है कि अब गातला बनाने वाले चुनिंदा मूर्तिकार ही बचे हैं। गातला बनाने के लिए अजंता के तोडिया भूआ और बाग की रामपुरा खदान से पत्थर के टुकड़े हम मंगवाते हैं। फिर पत्थर को ऑर्डर के मुताबिक छैनी-हथौड़ी से आकार देते हैं। एक गातला तैयार करने में कम से कम 15 से 20 दिन लग जाते हैं। एक गातला का खर्च लगभग 10 से 30 हजार रुपए आता है। पहले नाक, मुंह, चेहरा बनाते हैं बाद में शरीर  के अन्य अंग उकेरे जाते हैं।


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