मध्य प्रदेश बना हाथियों का नया बसेरा, ढाई साल से डेरा डाले हुए हैं 55 हाथी; ग्रामीणों को भी दिया जा रहा प्रशिक्षण
ढाई साल पहले आए 40 हाथियों के एक झुंड ने बांधवगढ़ क्षेत्र को स्थाई ठिकाना बना लिया है। वे टाइगर रिजर्व और उसके बाहरी क्षेत्र में घूम रहे हैं।
मनोज तिवारी, भोपाल। छत्तीसगढ़ के रास्ते 10 साल से लगातार मध्य प्रदेश आ रहे जंगली हाथियों को वापस भगाना संभव नहीं हुआ, तो वन विभाग ने उन्हें नए वन्य जीव के रूप में स्वीकार कर लिया। हाथी भी प्रदेश के जंगलों को नया ठिकाना बनाते हुए यहीं रम गए। बांधवगढ़, संजय डुबरी व कान्हा टाइगर रिजर्व और इनके आसपास करीब 55 हाथी पिछले ढाई साल से डेरा डाले हुए हैं। अब विभाग के सामने हाथियों व उनके आवाजाही क्षेत्र में रह रहे ग्रामीणों की सुरक्षा बड़ा सवाल है इसलिए मैदानी स्तर पर इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। वहीं, विभाग ने मध्य प्रदेश को हाथी परियोजना में शामिल करने का प्रस्ताव भी भारत सरकार को भेज दिया है।
दरअसल, हाथी एक दशक से प्रदेश में आ रहे हैं पर अधिकांश कुछ दिनों बाद लौट भी जाते थे। दो-तीन सालों में स्थिति बदल गई। ढाई साल पहले आए 40 हाथियों के एक झुंड ने बांधवगढ़ क्षेत्र को स्थाई ठिकाना बना लिया है। वे टाइगर रिजर्व और उसके बाहरी क्षेत्र में घूम रहे हैं। इसी तरह आठ हाथियों का एक झुंड सीधी जिले के संजय डुबरी टाइगर रिजर्व और उसके आसपास सक्रिय है।
टाइगर रिजर्व में रखा गया हाथियों को
दो नर हाथी तो प्रदेश के लगभग मध्य में स्थित नरसिंहपुर जिले तक पहुंच गए और फिलहाल कान्हा टाइगर रिजर्व के फैन अभयारण्य में हैं। इन हाथियों को प्रदेश से खदेड़ने की जब तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, तो विभाग उनके प्रबंधन में जुट गया। बांधवगढ़ क्षेत्र में पकड़े गए पांच हाथियों को वन विभाग ने प्रशिक्षित कर टाइगर सफारी में उपयोग करना शुरू कर दिया है।
गौरतलब है कि ये हाथी ओडिशा, झारखंड से होते हुए छत्तीसगढ़ के रास्ते यहां आते हैं। वन कर्मचारियों और ग्रामीणों को प्रशिक्षण जिन क्षेत्रों में हाथी सक्रिय हैं, वहां के वन कर्मचारियों और ग्रामीणों को जंगल में हाथियों के साथ रहने का सबक सिखाया जा रहा है। इसके लिए पिछले साल बंगाल से हाथी विशेषज्ञ बुलाए गए थे। उन्होंने तीन दिन तक वन कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया। अब ये कर्मचारी आसपास के ग्रामीणों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। हाथियों से संबंधित कुछ और बारीकियां जानने के लिए एक बार फिर विशेषज्ञों को बुलाने की योजना है।
गोले और पटाखों से बचाव का प्रशिक्षण
जंगल और उसके नजदीक रहने वाले ग्रामीणों को बताया गया है कि खड़ी लाल मिर्च भरकर गोबर के गोले बनाकर सुखा लें और पटाखे हमेशा घर में रखें। हाथियों का दल जब नजदीक आ जाए तो पटाखे चलाएं और गोबर के गोलों में आग लगाकर उनकी ओर फेंके इससे वे दूर चले जाएंगे।
खुले मैदान की खातिर आते हैं हाथी
प्रदेश के वन अधिकारी हाथियों के ओडिशा, झारखंड छोड़कर मध्य प्रदेश आने का कारण यहां की प्राकृतिक स्थितियों की अनुकूलता मानते हैं। हाथी वैसे तो झाड़ियों में रहते हैं पर उन्हें यहां के खुले घास के मैदान पसंद आ रहे हैं। मध्य प्रदेश के जंगलों में खाने के लिए भरपूर वनस्पति भी है।
भोपाल के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक जेएस चौहान ने बताया कि हाथी अब स्थाई रूप से प्रदेश में रहने वाले हैं इसलिए हमने उस हिसाब से तैयारी शुरू कर दी है। कर्मचारियों और लोगों को उनके साथ रहने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हाथी परियोजना के लिए भी प्रस्ताव भेजा है।