फेफड़े-स्तन कैंसर की दवा एक साथ लेना फायदेमंद, वैज्ञानिकों को इलाज में मिली बड़ी कामयाबी
स्तन कैंसर के इलाज के लिए पाल्बोसीक्लीब जबकि फेफड़े के कैंसर के लिए क्रिजोटिनिब नामक दवा का प्रयोग होता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। वैज्ञानिक कई दशकों से कैंसर का सही और असरकारक इलाज विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं। अब उन्होंने इस दिशा में बड़ी सफलता मिलने का दावा किया है। उनका कहना है कि स्तन और फेफड़े के कैंसर की दवा का साथ में इस्तेमाल करने से कैंसर पर विजय पाई जा सकती है। स्तन कैंसर के इलाज के लिए पाल्बोसीक्लीब जबकि फेफड़े के कैंसर के लिए क्रिजोटिनिब नामक दवा का प्रयोग होता है। इनकी मदद से कैंसर कोशिकाओं द्वारा दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेने की समस्या दूर हो सकेगी। ये कैंसर कोशिकाओं के बढ़ने और उनका विभाजन रोकने में भी सहायक हैं।
दरअसल, पाल्बोसीक्लीब कैंसर को विकसित करने में सहायक सीडीके4 और सीडीके5 प्रोटीन को ब्लॉक कर देती है। लेकिन कैंसर कोशिकाएं सीडीके 2 प्रोटीन सक्रिय कर पाल्वोसीक्लीब के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती हैं। वहीं क्रिजोटिनिब सीडीके 2 को निशाना बनाती है जिससे कैंसर कोशिकाओं की प्रतिरोधकता नष्ट होती है। लंदन स्थित कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य प्रबंधक प्रोफेसर पॉल वर्कमैन ने कहा, ‘इस शोध के बाद कई तरह के कैंसर का इलाज संभव हो सकेगा।’
जब फेफड़ों के किसी भाग में कोशिकाओं की अनियंत्रित व असामान्य वृद्धि होने लगती है, तो इस स्थिति को फेफड़े का कैंसर कहते हैं। फेफड़े के कैंसर का शुरुआती दौर में पता नहीं चलता और यह अंदर ही अंदर बढ़ता जाता है। वास्तव में, फेफड़े का कैंसर फेफड़े के बाहर भी बढ़ जाता है और इसके लक्षण भी अक्सर पता नहीं चलते हैं। फेफड़े का कैंसर एक गंभीर मर्ज है, लेकिन आधुनिक मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण अब इस कैंसर से छुटकारा संभव है...
कैंसर के प्रकार
1. स्माल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी): यह सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला फेफड़े का कैंसर है। यह कैंसर धूम्रपान के कारण होता है। एससीएलसी शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैलता है और अक्सर जब यह ज्यादा फैल चुका होता है, तब ही इसका पता चलता है।
2.नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी): यह ऐसा कैंसर है, जिसे तीन प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है। इनके नाम ट्यूमर में मौजूद सेल्स के आधार पर होते हैं। जैसे एडिनोकार्सिनोमा, स्क्वेमस सेल कार्सिनोमा और लार्ज सेल कार्सिनोमा।
लक्षणों को जानें
- सांस फूलना
- वजन कम होना
- खांसी के साथ खून निकलना
- खांसी जो लगातार बनी रहती है
- बलगम के रंग और मात्रा में बदलाव आना
- सीने में बार-बार संक्रमण होना और सीने में लगातार दर्द का बने रहना
एक बड़ी चुनौती
देश में फेफड़े के कैंसर की पहचान शुरुआती दौर में कर लेना एक बड़ी चुनौती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश में टी.बी.के मामले बहुत अधिक हैं। फेफड़े के कैंसर के अधिकांश लक्षण फेफड़े की टी.बी.से मिलते हैं। अधिकांश मामलों में जो मरीज फेफड़े के कैंसर के लक्षणों के बारे में बताता है, उसे बिना किसी परीक्षण के टी.बी. का मरीज बता दिया जाता है। इसलिए फेफड़े के कैंसर के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है और इसका पता करने के लिए उचित परीक्षण करना चाहिए।
बचाव
फेफड़े के कैंसर से बचने के लिए किसी भी तरह के धूम्रपान से दूर रहना आवश्यक है। सुबह के वक्त टहलें और जहां तक संभव हो प्रदूषण वाले माहौल से बचें। दोपहिया वाहन सवार व्यक्ति वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं। प्राणायाम करने से फेफड़े सशक्त होते हैं।
महिलाओं में बढ़ रहा स्तन कैंसर का खतरा
बदलती जीवनशैली के कारण कम उम्र की लड़कियां भी इसका शिकार हो रहीं हैं। सबसे जरूरी है कि बीमारी की पहचान पहले चरण में हो। मेमोग्राफी की नई तकनीक स्तन कैंसर की पहचान में बेहद कारगर है। ये बातें बेंगलुरु से आर्ईं वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपा अंनत ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहीं।
ब्रेस्ट कैंसर के प्रकार
इन्वेसिव डक्टल कार्सिनोमा- ब्रेस्ट कैंसर का ये रूप मिल्क डक्ट्स में विकसित होता है। इतना ही नहीं महिलाओं में होने वाला ब्रेस्ट कैंसर 75 फीसदी इन्वेसिव डक्टल कार्सिनोमा ही होता है। इस प्रकार का कैंसर डक्ट वॉल से होते हुए स्तन के चर्बी वाले हिस्से में फैल जाता है।
इन्फ्लेमेटरी कार्सिनोमा- ये ब्रेस्ट कैंसर बहुत ही कम देखने को मिलता है। यानी 1 फीसदी भी इस प्रकार का कैंसर नहीं होता। दरसअल इन्फ्लेमेटरी कार्सिनोमा का उपचार बहुत मुश्किल होता है। इतना ही नहीं ब्रेस्ट कैंसर का ये रूप शरीर में तेजी से फैलता है। जिससे महिलाओं की मौत का जोखिम भी बना रहता है।
पेजेट्स डिज़ीज़- इन्फ्लेमेटरी कार्सिनोमा की ही तरह पेजेट्स डिजीज भी लगभग 1 फीसदी ही महिलाओं में पाया जाता है। ये निप्पल के आसपास से शुरू होता है और इससे निप्पल के आसपास रक्त जमा हो जाता है जिससे निप्पल और उसके चारों और का हिस्सा काला पड़ने लगता है। ब्रेस्ट कैंसर का ये प्रकार भी इन्वेसिव डक्टल कार्सिनोमा की तरह निप्पल के मिल्क डक्ट्स से शुरू होता है। इस प्रकार का ब्रेस्ट कैंसर आमतौर पर उन महिलाओं को होता है जिन्हें ब्रेस्ट से संबंधित समस्याएं होने लगे। जैसे- निप्पल क्रस्टिंग, ईचिंग होना, स्तनों में दर्द या फिर कोई इंफेक्शन होना।
स्तन कैंसर के कारण
- स्तन कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन 40 वर्ष की उम्र के बाद इसके होने की आशंका बढ़ जाती है
- उम्रदराज महिला की पहली डिलीवरी के कारण स्तन कैंसर की संभावना बढ़ जाती हैं
- गर्भ निरोधक गोली का सेवन और हार्मोंन की गड़बड़ी इसका अन्य कारण माना जाता हैं
- आपके परिवार में पहले से किसी को कैंसर रहा है, तो वंशानुगत कारणों से भी इस बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है
- अगर आप धूम्रपान या मादक पदार्थो का सेवन करती हैं तो भी आपमें कैंसर की आशंका बढ़ जाती है
स्तन कैंसर के लक्षण
- स्तन या निपल के साइज में असामान्य बदलाव
- कहीं कोई गांठ जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो, स्तन कैंसर में शुरुआत में आम तौर पर गांठ में दर्द नहीं होता
- त्वचा में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना
- एक स्तन पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना
- निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना
- स्तन में कहीं भी लगातार दर्द
स्तन कैंसर की जांच
- महिलाएं खुद हर महीने स्तन की जांच करें कि उसमें कोई गांठ तो नहीं है
- यदि किसी महिला को सन्दिग्ध गांठ या वृद्धि का पता चलता है तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें
- 40 साल की उम्र में एक बार और फिर हर दो साल में मेमोग्राफी करवानी चाहिए ताकि शुरुआती स्टेज में ही स्तन कैंसर का पता लग सके
- ब्रेस्ट स्क्रीनिंग के लिए एमआरआई और अल्ट्रासोनोग्राफी भी की जाती है। इनसे पता लगता है कि कैंसर कहीं शरीर के दूसरे हिस्सों में तो नहीं फैल रहा
स्तन कैंसर से बचाव
- सप्ताह में तीन घंटे दौड़ लगाने या 13 घंटे पैदल चलने वाली महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर की आशंका 23 फीसदी कम होती है
- गुटका, तंबाकू और धूम्रपान ही नहीं बल्कि शराब भी स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाती है। इसलिए नशीली चीजों के सेवन से बचें
- साबुत अनाज, फल-सब्जियां को अपने आहार में शामिल कर आप स्तन कैंसर के खतरे से बच सकते हैं
- शरीर पर बढ़ती चर्बी स्तन कैंसर का कारण बने इस्ट्रोजन हॉर्मोन का बढ़ाती है। इसलिए अपने शरीर में अतिरिक्त वजन को कम करें