डब्ल्यूटीओ में चीन के मंसूबों पर फिरा पानी, जानिए ड्रैगन को कैसे होगा नुकसान
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच चल रहा मार्केट इकोनॉमी स्टेटस मामला चीन के हाथ से निकल गया है।
By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 09:41 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 09:41 PM (IST)
नई दिल्ली, आइएएनएस। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच चल रहा मार्केट इकोनॉमी स्टेटस मामला चीन के हाथ से निकल गया है। पिछले चार साल से चीन इस स्टेटस के लिए संघर्ष कर रहा था। इस नए फैसले के बाद यूरोपीय यूनियन चीनी उत्पादों पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगा सकेंगे। यह स्टेटस मिलने के बाद निर्यात के मोर्चे पर चीन का दबदबा और मजबूत हो जाता। इससे पहले भारत ने चीन को मार्केट इकोनॉमी स्टेटस देने से मना कर दिया था। यह स्टेटस एंटी डंपिंग ड्यूटी जैसे प्रतिबंधों से राहत प्रदान करता है।
चीन मांग रहा था मार्केट इकोनॉमी स्टेटस का दर्जा
डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों में से 69 ने चीन को मार्केट इकोनॉमी का स्टेटस दे रखा है। लेकिन इसके कुछ बड़े कारोबारी साझेदार जैसे अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, जापान और भारत ने इसे यह स्टेटस प्रदान नहीं किया है। लंबे समय से चीन पर डंपिंग के आरोप लगते रहे हैं। चीन के लिए इस तरह आरोप नए नहीं हैं। इसके चलते उसके उत्पादों पर कई देशों में एंटी-डंपिंग शुल्क लगाए गए हैं।
यूरोपीय यूनियन ने चीन पर लगाए थे आरोप
डंपिंग के मामले में कोई देश अपने घरेलू बाजार से कम कीमत में विदेशी बाजारों में अपने उत्पाद बेचने लगता है। सरकारें उत्पादों को निर्यात में सब्सिडी देकर डंपिंग करती हैं। चीन में अधिकतर कंपनियों पर सरकारी नियंत्रण काफी ज्यादा है। इस वजह से वह ग्लोबल मार्केट में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए डंपिंग जैसे गैर प्रतिस्पर्धी तरीके अपनाता है। यूरोपीय यूनियन का आरोप है कि चीन उसके बाजारों में अपने घरेलू बाजार से कम कीमत पर स्टील और एल्यूमिनियम बेच रहा है।
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