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एफडीआइ पर बिखरा विपक्ष

कोयला घोटाले पर संसद के मानसून सत्र के धुलने के बाद गुरुवार शुरू हुए शीतकालीन सत्र की शुरुआत भी हंगामे से हुई। लोकसभा और राज्यसभा विपक्ष के हंगामे के चलते नहीं चल सके। एफडीआइ पर तृणमूल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का साथ न देकर विपक्ष भले ही बिखरा हुआ दिख रहा हो, लेकिन उसके तेवरों को देखते हुए सरकार की राह आसान नहीं है। सांसदों वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी 54 सांसद ही नहीं मिले। उसके समर्थन में सिर्फ 3 सांसदों वाली बीजद ही खड़ी नजर आई। लोकसभा नियम 1

By Edited By: Published: Thu, 22 Nov 2012 08:06 AM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2012 09:25 PM (IST)
एफडीआइ पर बिखरा विपक्ष

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोयला घोटाले पर संसद के मानसून सत्र के धुलने के बाद गुरुवार शुरू हुए शीतकालीन सत्र की शुरुआत भी हंगामे से हुई। लोकसभा और राज्यसभा विपक्ष के हंगामे के चलते नहीं चल सके। एफडीआइ पर तृणमूल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव का साथ न देकर विपक्ष भले ही बिखरा हुआ दिख रहा हो, लेकिन उसके तेवरों को देखते हुए सरकार की राह आसान नहीं है। सांसदों वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी 54 सांसद ही नहीं मिले। उसके समर्थन में सिर्फ 3 सांसदों वाली बीजद ही खड़ी नजर आई। लोकसभा नियम 184 और राज्यसभा में नियम 168 के तहत चर्चा कराने पर अड़ी भाजपा को माकपा का साथ मिला। गतिरोध तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

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शीतकालीन सत्र पर एफडीआइ की बर्फ जमने के पूरे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि, सरकार पर बड़ा संकट भी नहीं दिख रहा है। मुख्य विपक्षी गठबंधन राजग और सत्ताधारी संप्रग के बीच एफडीआइ पर चर्चा किस नियम के तहत हो, इस पर ठन गई है। सरकार वोटिंग के नियम के तहत चर्चा कराने को तैयार नहीं है। इस गतिरोध को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सोमवार सर्वदलीय बैठक बुलाई है।

इससे पहले रात को उन्होंने भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली से रात्रिभोज पर भी चर्चा की। मगर रिटेल में एफडीआइ पर मत विभाजन के नियमों के तहत दोनों सदनों में चर्चा की मांग से पार्टी पीछे हटने को तैयार नहीं है।

भाजपा की लोकसभा में नियम 184 और राज्यसभा में 168 यानी मत विभाजन के तहत चर्चा कराने की मांग को सरकार ने दोनों सदनों में यह कहकर खारिज कर दिया कि सरकार के कार्यकारी फैसलों पर वोटिंग के तहत चर्चा नहीं होती रही है। मगर उनकी इस दलील को माकपा नेता सीताराम येचुरी ने खारिज कर दिया। उन्होंने मत विभाजन के तहत एफडीआइ पर चर्चा पर जोर दिया और कहा कि पहले बाल्को के विनिवेश पर वोटिंग के नियम के तहत चर्चा हो चुकी है। मत विभाजन के नियम के तहत माकपा के राजग के साथ होने से तय है कि सरकार के लिए सदन में विपक्ष से पार पाना संभव नहीं होगा।

हालांकि, सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ और कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि मत विभाजन के तहत चर्चा नहीं होगी। नियम 193 पर सरकार लोकसभा में चर्चा करने को राजी है। दरअसल, मत विभाजन के हारने पर सरकार गिरने का संकट नहीं है, लेकिन उस पर नैतिक दबाव बढ़ जाएगा। सपा और बसपा और संप्रग के घटक द्रमुक जैसे दलों के लिए भी एफडीआइ पर सरकार के पक्ष में वोट देना मुश्किल होगा। इसीलिए, सरकार इस पर राजी नहीं है।

वैसे भी सपा और बसपा ने साफ कर दिया है कि वे भाजपा के साथ कहीं खड़े नहीं होंगे। अलबत्ता सदन में भी सरकार के खिलाफ जरूर वे दिखे, लेकिन बसपा जहां उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की मांग पर नारेबाजी करती रही, वहीं सपा ने सिलेंडर की सीमा तय करने पर हंगामा काटा। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही तीन बार स्थगित हुई और सदन नहीं चल सका। इसके बाद एफडीआइ पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट कह दिया कि यह केंद्र पर है कि वह किस नियम के तहत चर्चा कराए। इसी तरह सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि हम शुरू से एफडीआइ के खिलाफ हैं, लेकिन भाजपा का किसी मुद्दे पर साथ नहीं देंगे।

संसद में फिर छिड़ी सपा-बसपा की 'जंग'

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अगले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एक दूसरे को पछाड़ने की फिराक में अभी से जुटी सपा और बसपा की 'जंग' संसद में फिर से शुरू हो गई है। बसपा ने उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार की बर्खास्तगी व राष्ट्रपति शासन की मांग उठा दी है, तो सपा ने सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण की बसपा की मांग के खिलाफ फिर से मोर्चा खोल दिया है।

संसद सत्र के पहले ही दिन दोनों सदनों [लोकसभा व राज्यसभा] में सपा और बसपा अपने-अपने एजेंडे पर डट गई। लोकसभा में सदन की कार्यवाही शुरू होते ही बसपा के सुरेंद्र नागर, दारा सिंह चौहान समेत दूसरे सदस्य अध्यक्ष के आसन तक आकर उत्तर प्रदेश सरकार की बर्खास्तगी व राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करने लगे। उसी समय सपा सदस्य सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडरों की कटौती खत्म करने की मांग करने लगे। इसी बीच, एफडीआइ जैसे मुद्दों पर भी हंगामे व शोर-शराबे में सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।

राज्यसभा में कुछ जरूरी औपचारिकताओं के बाद सभापति हामिद अंसारी ने जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू करने की कोशिश की, बसपा के ब्रजेश पाठक, अम्बेथ राजन, नरेंद्र कश्यप समेत दूसरे सदस्य सभापति के आसन के पास आकर सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पहले लाने की मांग के साथ नारेबाजी करने लगे। मायावती व सतीशचंद्र मिश्र अपने स्थान पर खड़े होकर उनका समर्थन करते रहे। इस शोरशराबे में सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। दोबारा 12 बजे भी वही स्थिति रही और कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।

संसद भवन परिसर में बसपा प्रमुख मायावती ने पत्रकारों से कहा, 'हमारी मांग है कि राज्यसभा की सारी कार्यवाही रोककर सबसे पहले एससी-एसटी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक के बारे में बताया जाए कि उस पर चर्चा कब होगी। जब यह तय नहीं होगा, हमारा विरोध जारी रहेगा।' उन्होंने कहा, 'उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था बहुत ज्यादा खराब हो चुकी है। प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। पार्टी ने लोकसभा में यह मुद्दा उठाया है। फिर उठाएंगे। केंद्र ने यह कदम नहीं उठाया तो उसे भी जवाब देना होगा।'

मायावती की इन मांगों पर सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा, 'हम बसपा की ऐसी बातों को गंभीरता से ही नहीं लेते, क्योंकि वह बहुत सी बातें बिना वजह भी कहती है। सरकारी नौकरियों के प्रोन्नति में एससी-एसटी को आरक्षण की मांग सर्वथा गलत है। संसद से उसे कभी नहीं पारित नहीं होना चाहिए। सपा संसद के भीतर और बाहर भी हमेशा उसका खुलकर विरोध करेगी।' गौरतलब है कि पिछले सत्र में भी दोनों दल आमने-सामने थे।

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