लोकपाल की निगरानी में होनी चाहिए अपराधियों और नेताओं के बीच साठगांठ की छानबीन, सुप्रीम कोर्ट से गुहार
सुप्रीम कोर्ट से एक याचिका में मांग की गई है कि वह अपराधियों और नेताओं के बीच साठगांठ की जांच लोकपाल की निगरानी में कराए जाने का आदेश जारी करे। यही नहीं याचिका में लोकपाल को और मजबूत बनाने का भी आग्रह किया गया है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। लोकपाल की निगरानी में अपराधियों और नेताओं के बीच साठगांठ की जांच कराए जाने की मांग को लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली गई है। याचिका में सर्वोच्च अदालत से एनआईए (NIA), सीबीआई (CBI), ईडी (ED), आईबी (IB), एसएफआईओ (SFIO) , रॉ (RAW), सीबीडीटी (CBDT)और एनसीबी (NCB) की ओर से की जाने वाले छानबीन की निगरानी लोकपाल को करने का निर्देश दिए जाने की गुहार लगाई गई है। आने वाले दिनों में इस पर सुनवाई हो सकती है।
याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से सीआरपीसी के तहत वैधानिक ताकतों का इस्तेमाल करते हुए लोकपाल को मजबूत बनाने की बात कही गई है। सर्वोच्च न्यायालय से यह भी मांग की गई है कि लोकपाल को वह शक्ति दी जाए ताकि वह नेताओं, नौकरशाहों, अपराधियों के खिलाफ आईपीसी और अन्य कानूनों के तहत अपराध के सबूतों के आधार पर मुकदमा चला सके। यही नहीं अदालत ऐसे सभी मामलों में तेजी लाने के लिए विशेष न्यायालयों के गठन का भी निर्देश जारी करे ताकि दोषियों को जल्द सजा सुनिश्चित हो सके।
याचिका में वोहरा कमेटी की रिपोर्टों का भी हवाला दिया गया है। मालूम हो कि पूर्व केंद्रीय गृह सचिव एनएन वोहरा ने राजनीतिक अपराधीकरण और अपराधियों व राजनेताओं, राजनेताओं एवं नौकरशाहों के बीच साठगांठ की समस्या से निपटने के लिए एक समिति की अध्यक्षता की थी। इसे वोहरा समिति के नाम से जाना गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर 1993 में सौंपी थी। याचिका में कहा गया है वोहरा समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर बीते 27 वर्षों में कोई कार्रवाई नहीं शुरू की गई है जो बेहद चिंताजनक है...
सबसे बड़ी बात यह कि इस याचिका में शीर्ष अदालत से उन तमाम नेताओं से पद्म पुरस्कार वापस लेने का निर्देश गृह सचिव को देने की मांग की गई है जिनके नाम वोहरा समिति की रिपोर्ट में दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट में ऐसे गंभीर मसलों पर याचिका दाखिल करने के लिए जाने जाने वाले अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने उक्त अर्जी सुप्रीम कोर्ट में डाली है। उपाध्याय ने सर्वोच्च अदालत से यह भी गुजारिश की है कि जांच एजेंसियों की ओर से ऐसे मामलों की छानबीन की निगरानी के लिए एक न्यायिक आयोग भी गठित किया जाना चाहिए।