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कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दुनिया के प्रभावित देशों में बढ़ाना पड़ा है लॉकडाउन

द अटलांटिक के अनुसार आमजन इन पाबंदियों से हो रही परेशानियों को इस आस में झेल रहा है कि लॉकडाउन समाप्त होते ही बीमारी का आतंक खत्म हो जाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 09:09 AM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 09:09 AM (IST)
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दुनिया के प्रभावित देशों में बढ़ाना पड़ा है लॉकडाउन
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दुनिया के प्रभावित देशों में बढ़ाना पड़ा है लॉकडाउन

नई दिल्ली। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने और बीमारी पर काबू पाने के मकसद से भारत समेत कई देशों में फिलहाल लॉकडाउन चल रहा है। इसमें लोगों को अपने घरों से निकलने, दैनिक नियमित कामकाज करने तथा एक जगह ज्यादा संख्या में जुटने पर मनाही है। स्कूल-कॉलेज, बाजार-हाट, मॉल-रेस्तरां, ट्रेन, बस और विमान सेवाएं भी बंद हैं।

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द अटलांटिक के अनुसार आमजन इन पाबंदियों से हो रही परेशानियों को इस आस में झेल रहा है कि लॉकडाउन समाप्त होते ही बीमारी का आतंक खत्म हो जाएगा और फिर जोर-शोर से जिंदगी पटरी पर लौटेगी। लेकिन, यहां सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या इसी लॉकडाउन से बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी? चीन और हांगकांग के अनुभव तो संदेह और सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका अनुभव बता रहा है कि एक लॉकडाउन से इस बीमारी से छुटकारा नहीं मिल सकता।

चीन और हांगकांग से सीखें : इस बात को समझने के लिए चीन और हांगकांग के अनुभवों पर गहराई से विचार करें। इस साल की शुरुआत में चीन में कोरोना संक्रमितों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी थी, लेकिन घनी आबादी वाला हांगकांग कम्युनिटी रेस्पांस और सरकारी पहल (एक्शन) की बदौलत वायरस के प्रसार को थामने में कुछ हद तक सफल रहा। कई रोगियों को इलाज के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी गई। कुछ अभी भी अस्पताल में हैं। जिन कर्मियों को घर से काम करने का आदेश था, उन्हें इस महीने दफ्तर लौटने की अनुमति दी गई। जल्द ही निजी क्षेत्र ने भी इसका अनुसरण शुरू किया। बसों और सबवे में यात्रियों का आना शुरू हो गया। सप्ताहों तक वीरान रहे बार और रेस्तरांओं में रौनक लौटने लगी। जब दुनिया भर में वायरस के प्रकोप बढ़ने की खबरें आ रही हैं, ऐसे समय में हांगकांग धीरे-धीरे पटरी पर लौटता दिखने लगा।

लंबा लॉकडाउन पर्याप्त नहीं : हांगकांग और सिंगापुर ने कोरोना संक्रमण को थामने के लिए शुरुआती उदाहरण पेश किए थे। लेकिन अब बात बदल गई है। वहां भी ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और अमेरिका के कुछ हिस्सों जैसी पाबंदियां लागू हो रही हैं। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि किस प्रकार से लंबा लॉकडाउन भी संक्रमण की रोकथाम के लिए पर्याप्त नहीं है।

बीमारी से लड़ने के दो ही विकल्प : कोरोना वायरस महामारी मामले के वैश्विक स्तर पर जाने- माने विशेषज्ञ लीयुंग का कहना है कि पाबंदियों में सख्ती और ढील की बातें तो उनकी बिरादरी और सभी सरकारें कर रही हैं। लेकिन आपको कंट्रोल के ये उपाय कमोबेश तब तक जारी रखने पड़ सकते हैं, जब तक दो बातें सुनिश्चित

नहीं हो जातीं। पहली- सक्रिय संक्रमण से प्राकृतिक इम्यूनिटी बन जाए और रोग ठीक हो जाए। दूसरी बात यह कि बड़े पैमाने पर टीके की उपलब्धता हो, जिसे कम से कम आधी आबादी को लगाया जा सके ताकि समान रूप से प्रभावी सामूहिक इम्यूनिटी पैदा हो सके। जब तक यह नहीं होता तब तक हमें सख्ती और ढिलाई के कई चक्र से गुजरनाा होगा। मालूम हो कि लीयुंग ने सार्स और हांगकांग में 2009 की इनफ्लूएंजा महामारी से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर काम किए हैं।

शारीरिक दूरी का मकसद : लीयुंग कहते हैं कि शारीरिक दूरी जैसे उपाय का मकसद संक्रमितों की संख्या शून्य पर लाना नहीं है। यह संभव भी नहीं है। बल्कि ये प्रयास ज्यादा जोखिम वाले श्रेणी में आने वाले बुजुर्गों को संक्रमण और मौत से बचाने के साथ ही हेल्थ केयर सिस्टम को चालू रखने के लिए है। कोई भी देश, आबादी या शहर कोरोना से बच नहीं सकता।

तो यह चक्र चल पड़ेगा : लीयुंग के इस मत का समर्थन और भी वैज्ञानिक समुदाय कर रहा है। इंपीरियल कॉलेज लंदन की कोविड-19 रेस्पांस टीम के प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शारीरिक दूरी बनाए रखने के मामले में अस्थायी रूप से समय-समय पर छूट भले मिल जाए लेकिन जैसे ही संक्रमितों की संख्या बढ़ेगी, इसे फिर से लागू करना पड़ेगा। पीडिएट्रिक प्रोफेसर एरॉन ई. कैरोल तथा ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर आशीष झा ने भी अमेरिका किस प्रकार से कोरोना से निपटे विषयक एक आलेख में उन्हीं बातों का समर्थन करते हुए कहा है कि स्कूल और कारोबार को हम यथासंभव खोल सकते हैं लेकिन जैसे ही संक्रमण की रोकथाम विफल होगी, तत्काल ही उन्हें बंद करना होगा। इसके बाद फिर से संक्रमितों की पहचान कर उन्हें आइसोलेट करके ही प्रतिष्ठान खोल सकते हैं।

अब ये हैं बड़े सवाल : लीयुंग का कहना है कि अब बड़ा सवाल यह कि कैसे यह सुनिश्चित करेंगे कि आप सामाजिक कार्यों में दखल नहीं देंगे? आपके हॉस्पिटल की व्यवस्था ध्वस्त नहीं होगी? यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि जिन्हें जरूरत होगी, उनके लिए आइसीयू और वेंटिलेंटर उपलब्ध होंगे? स्थायी आधार पर अर्थव्यवस्था तथा लोगों की आजीविका की रक्षा करते हुए रुग्णता दर और मृत्यु दर को कैसे कम से कम करेंगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनसे हर समाज जूझ रहा है।

चीन के उपाय कितने कारगर : लीयुंग के मुताबिक, चीन में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मिशन के दौरान उन्होंने पाया कि वायरस के प्रसार में तीन उपायों से प्रभावी रोकथाम लगी थी। पहले उपाय को उन्होंने मध्ययुगीन बताया, जिसमें रोगियों को कठोर क्वारंटाइन तथा आइसोलेशन में रखा गया। दूसरे उपाय के तौर पर सामाजिक मेलमिलाप तथा आवागमन पर कड़ी पाबंदी लगाई गई। यह पड़ोसी के स्तर तक लागू किया गया। तीसरा उपाय था- टेक्नोलॉजी (एप, डाटा तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के इस्तेमाल से लोगों के आवागमन को ट्रैक और रिकॉर्ड करना। इन उपायों के बावजूद चीन नई पाबंदियां लगाने को मजबूर हुआ है, भले ही कुछ हिस्सों में जिंदगी सामान्य दिखती हो।

यह एक अलग सवाल हो सकता है कि चीन ने जल्द और तेजी से कंट्रोल किया कि नहीं... बड़ी बात तो यह है कि क्या दुनिया के अन्य देशों ने इस समय का सदुपयोग किया या नहीं- इसका जवाब तो संबंधित देशों के लोग ही देंगे। लेकिन हांगकांग और चीन के कुछ हिस्सों में फिर से लागू पाबंदियों के उदाहरण से अन्य देश और भी सीख ले सकते हैं।


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