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अंतरराष्ट्रीय ब्रांड तो पहले ही बन चुका है बिहार का लिट्टी-चोखा, पर इन दिनों ये है और भी खास

बिहार और वहां की राजनीति की बात बिना लिट्टी चोखा के अधूरी ही है। राज्‍य और देश की सीमा से निकलकर अब ये एक अंतरराष्‍ट्रीय ब्रांड है। चुनावी मौसम में इसका स्‍वाद कुछ ज्‍यादा ही बढ़ गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 09:46 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 09:46 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय ब्रांड तो पहले ही बन चुका है बिहार का लिट्टी-चोखा, पर इन दिनों ये है और भी खास
लिट्टी-चोखा के बिना बिहार कल्पना ही नहीं की जा सकती।

जयशंकर बिहारी। बिहार की चुनावी राजनीति की तो लिट्टी-चोखा के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती। किसी भी दुकान पर चले जाएं, दो पीस लिट्टी और चोखा पेट में जाते-जाते पटना से दिल्ली ही नहीं, रूस-अमेरिका तक के कितने ही सियासी तार जुड़ते-बिखरते जाएंगे। जगह-जगह सजी इन दुकानों में कुछ खास अड्डे भी हैं, जहां रोज कितने ही राजनीतिक किस्से बनते-बिगड़ते हैं। बहस होती है, तेवर चढ़ते हैं और फिर ‘अरे भाई पहिले लिट्टी खा लऽ।’ की आवाज के साथ ठहाकों के बीच सब अपने रास्ते चले जाते हैं।

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इंतजार का फल तीखा

सब्र का फल मीठा होता है यह तो सभी ने सुना है, मगर पटना के लिए यह स्वाद लिट्टी-चोखा के तीखेपन से जुड़ा है। यहां के वीरचंद्र पटेल पथ पर राजद कार्यालय के ठीक सामने गोइठा से पारंपरिक तरीके से लिट्टी-चोखा बनाया जाता है। एक प्लेट लिट्टी-चोखा आधा घंटा इंतजार करने के पहले मिल गया तो लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। यही हाल राजधानी के स्टेशन और मौर्यालोक के आस-पास की दुकानों का भी है। जब तक हाथ में प्लेट या दोना नहीं आ जाता, बहस चलती रहती है।

सुपाच्य और अपनत्व का भाव

लिट्टी-चोखा के स्वाद के बारे में पटना विश्वविद्यालय के डीन प्रो. एन. के. झा बताते हैं कि यह किफायती, सुपाच्य, पौष्टिक और सहज उपलब्ध है। नेता भी लिट्टी खा रहे हैं और वहीं बगल में रिक्शा वाला भी अपनी भूख मिटा रहा है। यह स्वाद अपनत्व और समानता का भाव पैदा कर जाता है। डॉ. बागेश्वर कुमार कहते हैं कि सुपाच्य और पौष्टिक होने के कारण यह व्यस्त शेड्यूल में भोजन और अल्पाहार का बेहतर विकल्प है। यही कारण है कि बड़े नेता भी इसका नियमित सेवन करते हैं। आटा, सत्तू, बैंगन, घी, टमाटर आदि से कैलोरी तो मिलती ही है, साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी है।

आम से लेकर खास की पसंद

पटना में करीब पचास वर्ष से लिट्टी-चोखा बेच रहे अशोक कहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, वशिष्ठ नारायण सिंह, शरद यादव जैसे बड़े नेता भी नियमित तौर पर लिट्टी-चोखा मंगवाते रहे हैं। नेता चुनाव प्रचार के दौरान दोपहर के भोजन के तौर पर भी इसे अपने साथ ले जाते हैं। भाजपा नेता डॉ. विनोद शर्मा कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार लिट्टी-चोखा के स्वाद की प्रशंसा कर चुके हैं। इसके साथ ही दिल्ली के स्टॉल पर इसका स्वाद भी चख चुके हैं।

मगध काल से ले रहे स्वाद

पटना विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. पीके पोद्दार कहते हैं कि लिट्टी-चोखा की चर्चा ग्रीक यात्री मेगास्थनीज ने अपनी भारत यात्रा के संस्मरण में भी की है। उन्होंने लिखा है कि मैंने पूर्व के भव्य शहर पाटलिपुत्र को देखा। यह दुनिया का सबसे विशाल शहर है। यहां के लोग लजीज व्यंजन के भी शौकीन हैं। बिहारी व्यंजन पर शोध करने वाले चंद्रशेखर का कहना है कि मुगल काल में लिट्टी शोरबा के साथ खूब पसंद किया जाता था। अंग्रेज अधिकारियों ने भी करी के साथ इसका स्वाद लिया है। अंग्रेजी सेनानायक इसे फूड ऑफ सरवाइवल के नाम से जानते थे।


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