आइए खुशनुमा रंगों से अपनी और दूसरों की खुशियां बढ़ाए, कष्ट के समय को हंसकर बिताए
लॉकडाउन में जब शौक को जिंदगी मिली और महिलाओं ने अपनी ड्रॉइंग पेंटिंग की कला को संवार लिया। आज वे इसे और आगे बढ़ा रही हैं ‘आर्ट चैलेंज’ का रूप देकर सभी को आमंत्रित कर रही है।
नई दिल्ली [यशा माथुर]। आइए अपनी तूलिका से रंग बरसाएं, इनमें घुल कर थोड़ी खुशी पा लें। इन दिनों अपनी कला के नमूनों को सोशल मीडिया पर खूलकर शेयर कर रही हैं महिलाएं। उनका उद्देश्य कला की तारीफें बटोरना या प्रचार-प्रसार करना नहीं है बल्कि यहां फैली बेहिसाब नकारात्मकता को दूर करने का है।
लॉकडाउन में जब शौक को जिंदगी मिली और महिलाओं ने अपनी ड्रॉइंग, पेंटिंग की कला को संवार लिया। आज वे इसे और आगे बढ़ा रही हैं, ‘आर्ट चैलेंज’ का रूप देकर सभी को आमंत्रित कर रही है कि आइए खुशनुमा रंगों से अपनी और दूसरों की खुशियां बढ़ाइए।
कष्ट के समय को हंस कर बिताइए ...
शिल्पा हाल्वे ने शोमा अभ्यंकर को चैलेंज दिया है अपने ताजातरीन आर्टवर्क को सबके सामने लाने का। शोमा ने इस आर्ट चैलेंज को आगे बढ़ाया है आकांक्षा दूरेजा को। अब आकांक्षा ने मधुबनी की पारंपरिक कला का सुंदर सा नमूना फेसबुक पर शेयर किया है।
आकांक्षा ट्रैवलर भी हैं और इस कोरोना समय में लोगों को मधुबनी कला के जरिए वर्चुअल ट्रैवल करवाने की कोशिश भी कर रही हैं। जब इस आर्ट चैलेंज की श्रृंखला अनीता सत्यजीत के पास पहुंचती है तो वे टाइल्स पर ग्लास पेंट से बनाए गए गणेश की खूबसूरत पेंटिंग दिखाती हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह से बिखरे रंग बताते हैं कि महिलाएं किस प्रकार इस मीडिया पर फैली नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने में जुटी हैं।
अपने दोस्त कलाकार को चुनौती दे कर वे न केवल खुशनुमा माहौल बना रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं का हौसला बढ़ा रही हैं। वे बता रही हैं कि कठिन समय में भी अपनी कला या शौक को मजबूती दी जा सकती है। इन महिला कलाकारों के जोश व सकारात्मक सोच के मद्देनजर लॉकडाउन और अनलॉक की मुश्किलों का नई नजर से देखा जा सकता है।
चाहते हैं लोगों का ध्यान बंटे
रंगों में इतनी ताकत है कि वे मन की हल्की पड़ी रंगत को फिर से रंगीन बना सकते हैं। इसलिए रंगों के जरिए अपने दिल में सुकून पाने वाली महिलाओं ने सोशल मीडिया पर सात दिन तक अपने आर्टवर्क को शेयर करने और अपने पेज को ताजगी से भर देने की चुनौती स्वीकारी है।
दरअसल कला को अपनी जिदगी में लाकर इन्होंने अपनी जिंदगी भी संवारी है और अब इसी पॉजिटिविटी को घर में बैठ कर भी बढ़ा रही हैं। फ्रीलांस राइटर और ब्लॉगर हैं दीपिका गुमस्ते। वे प्रोफेशनल पेंटर नहीं हैं लेकिन दो साल पहले जब उन्हें डिप्रेशन हुआ तो उनके थेरेपिस्ट ने उन्हें आर्ट करने के लिए कहा। तब शुरुआत की तो उन्हें काफी फायदा हुआ। इस आर्ट चैलेंज को लेकर वे कहती हैं, ‘हमने इस आर्ट चैलेंज को इसलिए शुरू किया है कि हम अपनी भावनाओं को जाहिर कर पाएं और नकारात्मकता को किनारे रख सकें। जिन चीजों का हम बोल नहीं पाते उन्हें रंगों व आकृतियों द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। मैं फ्रीहैंड आर्ट करती हूं। इसमें पारंपरिक और आधुनिक कला का सांमजस्य होता है।
बैकग्राउंड में पारंपरिक तरीके के फूल-पत्ते होते हैं। जबकि आकृतियां आधुनिक होती हैं। जिनमें प्रगतिशील महिलाएं दिखाई देती हैं। मेरा मानना है कि प्रकृति मां आपको मजबूत भी करती है और जब वह आपको अनुशासनप्रिय मां की तरह अनुशासन में बांधना चाहे तो गुस्सा भी हो सकती है, आपको सबक भी सिखा सकती है। मैं एक्रलिक, वाटर कलर और स्केच पैन प्रयोग करती हूं।‘ आगे वे कहती हैं कि यह आर्ट चैलेंज इसलिए शुरू किया है लोगों का ध्यान बंटे और सोशल मीडिया पर भी कोई रचनात्मक माहौल बने। ताकि लोग सकारात्मक पोस्ट लिखना शुरू करें।
आर्ट एक थेरेपी है
टि्वटर पर फैली नकारात्मकता तो किसी से छुपी नहीं है। जहां लोगों को मौका लगता हे दूसरों को नीचा दिखाना शुरू कर देते हैं। फेसबुक भी कोरोना की सच्ची-झूठी जानकारियों से घिरा है। इंस्टाग्राम पर भी परफेक्ट फोटोज की भरमार हेल्थ और वैलनेस ब्लॉगर व फिक्शन राइटर शिल्पा हाल्वे को अर्थहीन लगती हैं। आर्ट चैलेंज को स्वीकारती शिल्पाा कहती हैं, ‘मैं ट्विटर देखती ही नहीं।
इंस्टाग्राम पर फिल्टर और एडिट किए हुए अच्छे व खुशमिजाज फोटोज देख कर अच्छा जरूर लगता है लेकिन ऐसा लगता हैं कि हम यह दिखाना चाहते हैं कि हमारी जिंदगी कितनी परफेक्ट है। पहले मैं भी शेयर करती थी। लेकिन धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि हम अपने वे क्षण शेयर नहीं करते जिनसे हमें तकलीफ होती है। हम खुशहाल क्षण ही सामने लाते हैं।
ऐसे में लगता है कि हमारी जिंदगी में सिर्फ खुशियां ही हैं। अगर इन्हें देखने वाला कोई अकेला है, अवसाद से जूझ रहा है तो उसके दिल पर क्या बीतती है इसे मैंने महसूस किया है। जब मेरी जिंदगी में निजी समस्याएं थीं तो मुझे लगता था मेरी जिंदगी इतनी खराब क्यों है? हां, कला शेयर करना मुझे अच्छा लगता है। मेरे लिए आर्ट एक थैरेपी है। जब मैं इसमें मगन होती हूं तो उस समय मैं उसे ही जीती हूं। उस दौरान कुछ नहीं सोचती।‘
समय का सदुपयोग क्रिएटिव काम में
यूं तो महिलाएं जब तब कोई न कोई खुशनुमा चैलेंज चलाती रहती हैं। विगत दिनों साड़ी चैलेंज भी खूब चला लेकिन नकारात्मकता की हद के बीच आर्ट चैलेंज खुश करता है। शोमा अपने फ्लोरल डूडल लेकर आई हैं तो दीपिका ने काव्या, मंजुलिका ओर चंदना को अपनी कला साझा करने की चुनौती दी है। ‘आजकल कोविड और राजनीति को लेकर काफी नकारात्मकता है।
कुछ न कुछ दिमाग में चलता ही है लेकिन आर्ट बनाने के उन दो-तीन घंटों में कुछ भी याद नहीं रहता। दिमाग शांत रहता है। सारे तनाव निकल जाते हैं।‘ ऐसा मानती हैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर आकांक्षा दूरेजा। वे कहती हैं कि कुछ क्रिएट करने लगो तो दिमाग हटता है। मैं सॉफ़टवेयर इंजीनियर हूं। ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर रही हूं तो ट्रैवल टाइम कम होने से थोड़ा समय मिलने लगा है और इसे मैं क्रिएटिव काम में प्रयोग कर रही हूं। बचपन का जो शौक पढ़ाई के चलते छूट गया था उसे फिर से जगा रही हूं।
मेडीटेशन हो जाता है
इतने नकारात्मक माहौल में लोग तनाव महसूस कर रहे हैं। ऐसे में कला पर फोकस करना शुरू करते हैं तो यह एक तरह से मेडीटेशन हो जाता है। आपका दिमाग इस ओर ही काम करता है। निराश कर देने वाली बातों की ओर ध्यान नहीं जाता। जब मैं पेंटिंग करती हूं तो मेरा पूरा ध्यान उस पर ही रहता है। जब वह पूरी होती है तो बहुत ज्यादा खुशी होती है। मैं चमकीले रंग प्रयोग करती हूं तो यह रंग मनोवैज्ञानिक तरीके से अच्छा प्रभाव डालते हैं। इससे तनाव खत्म हो जाता है मेरा। स्कूल के बाद अपनी छोड़ी हुई पेंटिंग को मैंने पिछले दो साल से ही शुरू किया है।
दीपिका गुमस्ते, फ्रीलांस राइटर, ब्लॉगर
एक शौक जरूरी है
मैं प्रोफेशनल आर्टिस्ट नहीं हूं लेकिन कला में डूब जाना मुझे अच्छा लगता है। जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने आर्ट बनाना शुरू किया। मैंने एक मेंटल हेल्थ पर एक पोस्ट भी लिखी थी कि इस दौरान सकारात्मक कैसे बने रहें। इन दिनों सभी का तनाव बहुत बढ़ गया है कि अब आगे क्या होगा? मैं अपनी पोस्ट मैं हमेशा लिखती हूं कि आप भी कला को अपनाइए।
आप सोचते हैं कि मुझे तो एक सीधी लाइन भी खींचनी नहीं आती, मैं आर्ट कैसे बना सकती हूं? लेकिन आपको सिर्फ एक कागज और पैन चाहिए। जिस पर आप जो मन में आए उसे बनाएं। ऐसा करके हम कोई बड़ा आर्टवर्क नहीं बनाएंगे लेकिन उस दौरान उसी क्षण को जिएंगे। हमें यह तनाव नहीं रहेगा या डर नहीं लगेगा कि आने वाला कल कैसा होगा? अपनी मेंटल हेल्थ की पोस्ट में यह जरूर कहती हूं कि अपना एक शौक जरूर रखें। हम कुछ भी बनाएं। मेरे पास पालतू कुत्ता था उसको देख कर मैंने पहला स्केच बनाया था।
और वह अच्छा बना तो मैंने काफी जातियों के कुत्तों के स्केच बनाए। इसके बाद मैंने मंडला और जेंटेंगल आर्ट फॉर्म्स देखे तो मुझे बहुत पसंद आए। मैंने इन्हें बनाना शुरू किया। मन को काफी शांति मिली। अब तो इलेस्ट्रेशन भी बनाती हूं। अपनी कला के हर नमूने का इंस्टाग्राम पर शेयर करती हूं।
शिल्पा हाल्वे, हेल्थ और वैलनेस ब्लॉगर, फिक्शन राइटर
पारंपरिक कला में आधुनिक महिला
मैं मधुबनी आर्ट करती हूं। मुझे यह कला बहुत सुंदर लगती थी। दो साल पहले इसे मैंने यू-ट्यूब पर सीखने की कोशिश की फिर एक वर्कशॉप में सीखा। इसमें काफी नई चीजें सीखने को मिली। इस लॉकडाउन में मैंने उन्हीं टीचर को संपर्क किया और उनसे ऑनलाइन क्लासेज लीं तो गलतियां सुधर गईं। मधुबनी बहुत पुरानी खूबसूरत कला है लेकिन कुछ अलग करने की चाह में मैंने इसमें आज की आधुनिक महिला का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश की है।
इस कला तकनीक का प्रयोग करते हुए मैंने महिलाओं को खाना बनाते, शादी करते दिखाने के बजाय किताबें पढ़ते, सेल्फी खींचते दिखाया। इसकी सराहना हुई है। इन दिनों कोई यात्रा नहीं कर रहा तो मैंने मधुबनी में यात्रा के दृश्य प्रस्तुत कर वर्चुअल ट्रैवल करवाने की कोशिश की है।
आकांक्षा दूरेजा, सॉफ्टवेयर इंजीनियर
खुशी बांटने की है जरूरत
कुछ क्रिएटिव हो तो मूड बदलता है। आजकल हम एक-दूसरे को सिर्फ डर बांट रहे हैं। ऐसे माहौल में सभी को खुशी की बहुत जरूरत है और आर्ट देखने और बनाने से हम खुश हो जाते हैं। मैंने टाइल्स पर ग्लास पेंट कर गणेश जी की पेंटिंग पोस्ट की है। मैं बच्चों के लिए किताबें लिख रही हूं और कला मेरा बचपन का शौक है। आर्ट बनाने से मेरी लिखने की कला और बढ़ती है।
अनीता सत्यजीत, ऑथर