जानें क्या है टीडीएस, आयकर रिटर्न दाखिल करने से पहले क्यों जरूरी है मिलान
इस फार्म में उन्हें पूरे वर्ष में मिलने वाली सैलरी का पूरा ब्योरा होता है। साथ ही इस फार्म यह भी जानकारी होती है कि उनके नियोक्ता ने टीडीएस के मद में कितना भुगतान किया है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। नौकरी पेशा लोग अपनी सैलरी पर नियोक्ता द्वारा टीडीएस काटे जाने वाली रकम की जानकारी आयकर विभाग की वेबसाइट पर देख सकते है। सभी नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को दी जाने वाली वेतन में से आयकर की रकम को टीडीएस के रूप में काटकर सरकारी खजाने में जमा करना अनिवार्य होता है। कई बार कर्मचारियों को बैंक खाते में मिलने वाली रकम का पता पासबुक द्वारा मिल जाता है लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि उनकी सैलरी से टीडीएस के मद में कितनी रकम नियोक्ता द्वारा आयकर विभाग के खाते में जमा की गई है। हर वित्तीय वर्ष के अंत में कर्मचारी अपने कार्यालय से फार्म 16 प्राप्त करते है। इस फार्म में उन्हें पूरे वर्ष में मिलने वाली सैलरी का पूरा ब्योरा होता है। साथ ही इस फार्म यह भी जानकारी होती है कि उनके नियोक्ता ने टीडीएस के मद में कितना भुगतान किया है।
क्या है टीडीएस
आयकर अधिनियम के आधार पर आय के विभिन्न मद हैं। इनमें वेतन, गृह संपत्ति से आय, कारोबार व व्यवसाय, पूंजी अभिलाभ एवं स्रोत से आय शामिल है। स्रोत पर कर की कटौती होती है। आमतौर पर जब किसी व्यक्ति को आय होती है तो उक्त आय पर आयकर का भुगतान या तो अग्रिम कर या स्वयं आंकलन करके किया जाता है। जबकि कुछ विशेष परिस्थितियों में भुगतान क्रेता व्यक्ति को उक्त भुगतानों से कर की कटौती करनी होती है। इस प्रकार काटा गया कर सरकार के पास जमा होता है।
कर कटौती का यह रूप स्रोत पर कर की कटौती (टीडीएस) कहलाता है। जो व्यक्ति कर की कटौती करता है उसे कटौती क्रेता और जिस व्यक्ति का कर काटा जाता है उसे डिडक्टी कहा जाता है। स्रोत पर कर की कटौती करने वाले व्यक्ति को एक विशिष्ट संख्या प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। जिसे कर कटौती खाता संख्या (टैन) कहा जाता है। अधिकारियों ने बताया कि कर की कटौती में चूक के मामले में एक प्रतिशत प्रति माह या उसके भाग के लिए ब्याज लगाया जाता है। यदि कर की कटौती के बाद कर का भुगतान होने में विलंब होता है तो डेढ़ प्रतिशत प्रति माह या उसके भाग के लिए ब्याज लगाया जाता है।
सैलरी पर टीडीएस
वो लोग जिनकी आय कर की सीमा से ज्यादा होती है नियोक्ता उनकी कुल आय पर से टीडीएस कटौती करता है। इसमें सभी कटौती और छूट के बाद आय के अलावा अन्य आय शामिल होती है। टीडीएस इनकम स्लैब के आधार पर कटौती योग्य होता है। वहीं इसे टाला भी जा सकता है अगर आप 80सी और 80डी के दायरे में आने वाले विकल्पों में निवेश करते हैं। इसके लिए आपको इन्वेस्टमेंट के प्रूफ भी देने होते हैं। कंपनियां वित्त वर्ष के अंत में एक टीडीएस प्रमाणपत्र जिसे फॉर्म 16ए के रूप में भी जाना जाता है, जारी करती हैं।
आयकर विभाग द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि कर्मचारी सीधे इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट पर जाकर अपने अकाउंट में लॉगिन कर देख सकते है कि उनके खाते में टीडीएस की कितनी रकम आयकर विभाग को प्राप्त हो चुकी है। यह सूचना आयकर विभाग के फार्म 26 एएस में स्पष्ट दिखाई देती है। कर्मचारियों के हित में रहेगा कि वे अपनी आयकर विवरणी दाखिल करने के पहले अपने नियोक्ता द्वारा जारी फार्म 16 में दर्शायी गई टीडीएस रकम की मिलान फार्म 26 एएस में दिख रही राशि से मिलान करने के बाद भी रिटर्न दाखिल करें। अन्यथा उन्हें टीडीएस का लाभ नहीं मिलेगा। यदि इन दोनों दस्तावेजों में अंतर है तो बेहतर होगा कि पहले इस बारे में अपने नियोक्ता से स्थिति स्पष्ट करें।
यदि किसी वजह से नियोक्ता ने टीडीएस तो काटा है लेकिन सही रकम 26 एएस में नहीं दिख रही तो ऐसी स्थिति में नियोक्ता द्वारा अपने टीडीएस रिटर्न को संशोधित कर के आयकर विभाग के वेबसाइट पर पुन: दाखिल करना चाहिए। नौकरी पेशा लोगों को टीडीएस का क्रेडिट तभी मिलेगा जब उसका उल्लेख 26 एएस में होगा।
टीडीएस कटने पर जमा करना होगा आयकर विवरणी
यदि आपका टीडीएस कटा है तो आपको आयकर रिटर्न फाइल करनी होगी। नहीं तो आप पर पेनाल्टी लग सकती है। आयकर विभाग लोगों को टीडीएस कटाने के बाद भी रिटर्न फाइल नहीं करने पर एसएमएस के जरिए संदेश भेज सकता है। साथ ही ऐसे लोगों को भी संदेश भेज सकता है, जिन्होंने पहले रिटर्न फाइल की थी मगर अब नहीं की। विभागीय अधिकारियों के अनुसार बैंक ब्याज, किराया राशि, ठेकेदारी, कमीशन एजेंट, ट्रांसपोर्ट व सर्विस फीस लेने वाले तमाम पेशेवर टीडीएस के दायरे में आते हैं।