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नोटबंदी के साल में नेताओं पर बरसे नोट

दरअसल आयकर कानून, 1961 की धारा 80जीजीसी के तहत अगर कोई व्यक्ति राजनीतिक दल को चंदा देता है तो उसे टैक्स में छूट मिलती है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 04 Feb 2017 07:23 PM (IST)Updated: Sun, 05 Feb 2017 01:15 AM (IST)
नोटबंदी के साल में नेताओं पर बरसे नोट
नोटबंदी के साल में नेताओं पर बरसे नोट

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली । टैक्स देने में भले ही लोग कंजूसी करें लेकिन राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में वे जरा भी कोताही नहीं करते। हाल यह है कि नोटबंदी के साल में भी लोगों ने सियासी दलों को जमकर चंदा दिया है। इसका अंदाजा बुधवार को संसद में पेश आम बजट 2017-18 में दिए गए राजस्व हानि (रेवेन्यू फॉरगोन) के अनुमानों को देखकर लगता है। वित्त वर्ष 2016-17 में करदाताओं की ओर से राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे की वजह से सरकारी खजाने को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में लगभग 20 फीसदी ज्यादा है।

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दरअसल आयकर कानून, 1961 की धारा 80जीजीसी के तहत अगर कोई व्यक्ति राजनीतिक दल को चंदा देता है तो उसे टैक्स में छूट मिलती है। इसी तरह राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाली कंपनियों को भी धारा 80जीसीबी के तहत टैक्स में छूट की सुविधा प्राप्त है। हालांकि जिस राजनीतिक पार्टी को चंदा दिया जाना है वह जन प्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत होनी चाहिए।

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आम बजट 2017-18 के दस्तावेजों से पता चलता है कि आयकर कानून की इन दोनों धाराओं- 80जीजीबी और 80जीजीसी के तहत राजनीतिक दलों को चंदा देने के ऐवज में कंपनियों, फर्म और व्यक्तिगत करदाताओं को मिलने वाली आयकर छूट से सरकार को चालू वित्त वर्ष में करीब 100 करोड़ रुपये राजस्व क्षति होगी जो पिछले साल की तुलना में करीब 20 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2015-16 में राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे के चलते सरकार को लगभग 84 करोड़ रुपये आयकर छोड़ना पड़ा था। खास बात यह है कि चालू वित्त वर्ष में राजनीतिक दलों को सर्वाधिक चंदा व्यक्तिगत करदाताओं से मिलने का अनुमान है।

अकेले व्यक्तिगत करदाताओं ने चालू वित्त वर्ष में पार्टियों को जितना चंदा दिया है उससे खजाने को 80.96 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। व्यक्तिगत करदाताओं की ओर से राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे पर आयकर से छूट का यह आंकड़ा बीते पांच साल में सबसे अधिक है। इसका सीधा अर्थ है कि चालू वित्त वर्ष में व्यक्तिगत करदाताओं ने पार्टियों को जमकर चंदा दिया है।

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सरकार ने आम बजट 2006-07 से विभिन्न तरह की प्रत्यक्ष और परोक्ष कर छूटांे के चलते खजाने को होने वाली राजस्व हानि (रेवेन्यू फॉरगोन) का आंकड़ा देने की शुरुआत की थी। बीते एक दशक में सिर्फ एक बार ही ऐसा हुआ है जब व्यक्तिगत करदाताओं की ओर से पार्टियों को दिए चंदे के ऐवज में इससे अधिक कर छूट का दावा किया गया था। 2009-10 में व्यक्गित करदाताओं ने राजनीतिक चंदे के ऐवज मंे 170 करोड़ रुपये से अधिक की टैक्स छूट ली थी।


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