ई-रिक्शे को मिली छूट की कीमत जान देकर चुका रहे देशवासी, साल 2018 में मारे गए 621 लोग
ई-रिक्शा से जुड़ी सड़क दुर्घटनाओं के पहले साल के आंकड़े भले ही दूसरे मोटर वाहनों के आंकड़ों के मुकाबले देखने में छोटे लगते हों लेकिन वास्तव में ये बड़े हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ई-रिक्शा को मोटर वाहन एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया है। यातायात नियमों के उल्लंघन पर ट्रैफिक पुलिस ई-रिक्शे का चालान नहीं कर सकती, लेकिन ई-रिक्शे को मिली इस छूट की कीमत देशवासियों को चुकानी पड़ रही है। पिछले वर्ष ई-रिक्शों के कारण देश में हुए 1470 सड़क हादसों में 621 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। जबकि 1,361 लोग बुरी तरह से घायल हुए।
ये पहला मौका है जब सरकार ने सड़क हादसों के आंकड़ों में ई-रिक्शों को भी शामिल किया है। पहले साल के आंकड़े ही काफी चिंताजनक हैं। ई-रिक्शा को सड़क मंत्रालय ने जब मोटर एक्ट से बाहर रखने का फैसला किया था तभी विशेषज्ञों ने इस बारे में चेतावनी दी थी और कहा था कि यातायात पुलिस के अंकुश के बगैर ई-रिक्शे लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले नए वाहनों के रूप में उभर सकते हैं। ई-रिक्शा से जुड़ी सड़क दुर्घटनाओं के पहले साल के आंकड़े भले ही दूसरे मोटर वाहनों के आंकड़ों के मुकाबले देखने में छोटे लगते हों, लेकिन वास्तव में ये बड़े हैं। क्योंकि ई-रिक्शे को हाईवे पर चलने की अनुमति नहीं है और ये केवल नगरीय सीमा में चलते हैं। केवल नगरों के भीतर की सड़कों पर 25 किलोमीटर प्रति घंटे की धीमी गति से चलने वाले इन हल्के वाहनों से एक साल में लगभग पंद्रह सौ हादसे परेशान करने वाले हैं।
ई-रिक्शा चलाने के लिए मोटर एक्ट के तहत ड्राइविंग लाइसेंस की जरूरत भी नहीं है। इसलिए कोई भी व्यक्ति निगम व पुलिस से इजाजत लेकर इन्हें चलाने लगता है।
सड़कों पर ज्यादा कहर बरपा रहे ई-रिक्शा
ई-रिक्शा के अलावा जानवरों के जरिए चलने वाले गैर मोटर चालित वाहन भी अब सड़कों पर ज्यादा कहर बरपा रहे हैं। देश में बन रहे बेहतर हाईवे और एक्सप्रेसवे और उन पर दौड़ रहे तेज रफ्तार वाहनों के बीच ये सुस्त वाहन सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहे हैं। इनके लिए भी मोटर एक्ट में नगण्य प्रावधान हैं। हाईवे और एक्सप्रेसवे पर इनके चलने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद ये चलते हैं, क्योंकि ज्यादातर हाईवे एक्सप्रेस के साथ इनके लिए वैकल्पिक सर्विस रोड्स और अंडरपास की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई है।
भैंसागाड़ी भी बन रही जानलेवा
वर्ष 2018 में भैंसागाड़ी, बैलगाड़ी, ऊंटगाड़ी और खच्चरगाड़ी आदि के कारण देश में कुल 1,155 सड़क दुर्घटनाएं हुई जिनमें 522 लोग मारे गए जबकि 692 लोग घायल हुए। इससे पहले 2017 में इन पशुचालित वाहनों से केवल 636 दुर्घटनाओं हुई थीं जिनमें 280 लोगों की जान गई थी और 563 लोग घायल हुए थे। इस तरह एक साल में इन वाहनों से होने वाले हादसों की संख्या में 81.6 फीसद और मरने वालों की संख्या में 86.4 फीसद का इजाफा हो गया है। एक साल के अंतराल में इतनी वृद्धि खतरनाक रुख की ओर इशारा करती है। केंद्र सरकार को इन वाहनों के चालन के बारे में भी नियम सख्त करने होंगे। जबकि राज्य सरकारों को उनका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
न हादसे घटे न मौतें
सड़क सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद वर्ष 2018 में देश में सड़क हादसों व उनसे होने वाली मौतों में कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी ही दर्ज की गई। इस दौरान 4,67,044 सड़क हादसों में 1,51,471 लोग मारे गए। ये आंकड़े 2017 के मुकाबले क्रमश: 0.46 फीसद और 2.37 फीसद अधिक हैं।