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पहाड़ों पर हो रहा सड़कों का निर्माण या चौड़ीकरण यहां हादसों को दे रहा दावत, जानें कैसे

भारत के पहाड़ी राज्‍यों में सड़कों का चौड़ीकरण वहां राहत की जगह आफत बनकर सामने आ रहा है। इसकी वजह वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को नजरअंदाज करना है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 12:28 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 12:28 PM (IST)
पहाड़ों पर हो रहा सड़कों का निर्माण या चौड़ीकरण यहां हादसों को दे रहा दावत, जानें कैसे
पहाड़ों पर हो रहा सड़कों का निर्माण या चौड़ीकरण यहां हादसों को दे रहा दावत, जानें कैसे

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पहाड़ों पर चढ़ाई वो चाहे पक्‍की सड़कों के जरिए हो या फिर कच्‍ची सड़कों के जरिए, अक्‍सर महंगी साबित होती है। इसके बाद भी हम लोग पड़ाड़ों पर रहने वाले लोगों को सहूलियत देने के नाम पर वहां सड़कों को बनाने का काम जारी रखते हैं। कई बार यह मजबूरी होती है तो कई बार जरूरत। इसके बाद भी पहाड़ों के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता है कि कब-कहां का पहाड़ खिसक जाए और भूस्‍खलन की स्थिति बन जाए। इस तरह का डर हर वक्‍त बना रहता है। दरअसल, पहाड़ों के नाजुक ढलान की स्थिरता के बारे में भी पक्‍के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।

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परेशानी का सबब
पहाड़ों को काटकर कराए जा रहे निर्माण के खिलाफ गाहे-बगाहे आवाजें भी उठती रही हैं। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी पारिस्थितिकी संतुलन के नाम पर उठने वाली आवाजों के केंद्र में हर बार यहां के पर्यावरण से हो रही छेड़छाड़ रही है। इसको रोकने की भी अपील लगातार की जाती रही है। जानकारों का भी मानना है कि इनकी वजह से हिमालय में कोई बड़ी आपदा आ सकती है। अक्‍सर चुनाव के समय में इस तरह की परियोजनाएं गाजर-मूली की तरह घोषित कर दी जाती हैं। इनकी शुरुआत को लेकर न तो कोई रिसर्च की जाती है और न ही अन्‍य बातों का ध्‍यान रखा जाता है। इन योजनाओं का मकसद केवल अपने मतदाताओं को साधने तक ही सीमित होता है।

भूस्‍खलन का कारण 
हिमाचल प्रदेश में शिमला, सोलन और मोहाली समेत कई ऐसे पॉपुलर डेस्टिनेशन हैं, जहां पर पर्यटक जाना पसंद करते हैं। यहां की सरकार ने वर्ष 2017 में 65000 करोड रुपये की घोषणाएं की थीं। इसमें करीब 3900 किमी सड़कें भी शामिल थीं। कुछ जगहों पर चार लेन के हाईवे बनाने की भी योजना इसमें शामिल थी। यहां पर 20 किमी लंबे नेशनल हाईवे पर कई बार भूस्‍खलन की घटना सामने आई हैं। परवानु और सोलन के बीच इसकी वजह गाडि़यों की आवाजाही कई बार बुरी तरह से बाधित हुई है। जानकार मानते हैं कि इसकी बड़ी वजह इन सड़कों के निर्माण में ही छिपी है। दरअसलन, पहाड़ी इलाकों में सड़कों के निर्माण के लिए चट्टानों को डायनामाइट लगाकर तोड़ा जाता है। इसकी वजह से पहाड़ कमजोर हो जाते हैं। डायनामाइट के धमाके की वजह से आसपास की पहाडि़यों में भी दरारें आ जाती हैं जो उन्‍हें कमजोर कर देती हैं। इसके अलावा यहां पर सड़कों के निर्माण के लिए यहां के पेड़ों की कटाई दूसरा बड़ा कारण है। इसकी वजह से यहां की मिट्टी या जमीन ढीली पड़ जाती है, जिसकी वजह से वहां की जमीन दरकने या खिसकने लगती है। यही लापरवाही भूस्‍खलन का कारण बनती है।

फॉल्‍ट लाइन के करीब सड़कें
हिमाचल प्रदेश को लेकर जानकार मानते हैं कि यहां पर ज्‍यादातर सड़कें फॉल्‍ट लाइन के करीब हैं। जिस वजह से इसके कमजोर बिंदु पर अधिक दबाव पड़ता है। ढलान को खराब करने के पीछे यहां की अस्थिर खड़ी ढलान, कमजोर पहाडि़यां और यहां होने वाली जोरदार बारिश है। ऐसे हालातों में जब यहां पर सड़कों का निर्माण कराया जाता है तो यह और कमजोर हो जाती हैं और इनकी पकड़ कमजोर हो जाती है। कालका-शिमला नेशनल हाईवे पर भूस्‍खलन की घटनाएं होती रहती हैं।

एनजीटी तक पहुंचा मामला
हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तराखंड की बात करें तो यहां पर करीब 900 किमी आलवेदर रोड हैं, जिनके जरिए इस पहाड़ी राज्‍य में पहुंचा जा सकता है। यहां पर भी भूस्‍खलन की दिक्‍कत कोई नई बात नहीं है। पर्यावरणविद कई बार यहां होने वाले निर्माण कार्यों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उनका कहना है कि यह निर्माणकार्य नियमों को ताक पर रखकर किए जाते हैा। नदियों में डंपिंग और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का मामला नेशनल ग्रीन ट्राइब्‍यूनल तक चला गया है। उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग में कई सड़कों की चौड़ाई करीब 5 मीटर है। कुछ जगहों पर इन्‍हें दस मीटर तक किए जाने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए 22 मीटर की दूरी तक पेड़ों को काट दिया गया है। गढ़वाल में करीब 36 ऐसी जगह हैं जो भूस्‍खलन एरिया में आते हैं। वहीं, यदि बात करें पूरे ऑलवेदर रोड की तो इसमें करीब 120 डेंजर जोन हैं।

निर्माण से पहले नहीं होता सर्वे
इस बात में कोई शक नहीं है कि रोड प्रोजेक्‍ट इन राज्‍यों के लिए बेहद जरूरी हैं। इनके जरिए राज्‍यों में किसी भी जगह पहुंचने में समय कम लगता है और आपात सेवाओं में भी इनका योगदान उल्‍लेखनीय होता है,लेकिन इन सड़कों पर गाडि़यों का खाई में गिरना और लोगों की मौत भी किसी से छिपी नहीं है। अन्‍य राज्‍यों से कम दूरी की वजह से भी लोग यहां पर प्रॉसेसिंग यूनिट समेत दूसरे उद्योग धंधे लगाना पसंद करते हैं। इनसे राज्‍य की आमदनी के साथ-साथ यहां के लोगों के जीवन स्‍तर में भी सुधार होता है, लेकिन जहां तक यहां के ऑलवेदर रोड की बात है तो इसको चौड़ा करने से पहले यहां किसी तरह का सर्वे नहीं किया गया। वहीं, यहां पर इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि इन राज्‍यों में ऊचांइयों पर रहने वाले लोगों की संख्‍या लगातार गिर रही है।

जरूरी हैं प्रोजेक्‍ट पर पर्यावरण की कीमत पर नहीं 
पहाड़ी राज्‍यों में रहने वाले लोगों का मानना है कि यहां होने वाले निर्माणकार्यों को इकोलॉजिकल कॉस्‍ट पर परखा जाना चाहिए। ये लोग यहां पर विकास के खिलाफ नहीं है,लेकिन वे चाहते हैं कि यह नियमों को ताक पर रखकर न हो और पर्यावरण की कीमत पर भी न हो। यहां के लोग ये भी नहीं चाहते हैं कि पानी के लिए पहाड़ों में ड्रिलिंग की जाएं। वो चाहते हैं कि यहां के पानी के प्राकृतिक स्रोतों को भी बंद नहीं करना चाहिए। जानकार ये भी मानते हैं कि यहां पर सड़कों के दोनों तरफ घास उगाई जानी चाहिए, जिससे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलेगी।


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