पाटलिपुत्र में दांव पर लालू की पगड़ी
बिहार में वैसे तो सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत की जद्दोजहद है। लेकिन राजद सुप्रीमो लालू यादव की बेटी मीसा भारती के उम्मीदवारी वाले पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में लड़ाई जीत-हार से आगे पगड़ी की है। यहां सालों तक लालू के वजीर रहे रामकृपाल यादव इस बार विरोध में ताल ठोक रहे हैं। चिंता इस बात की भी ह
पतलापुर [मधुरेश]। बिहार में वैसे तो सभी 40 लोकसभा सीटों पर जीत की जद्दोजहद है। लेकिन राजद सुप्रीमो लालू यादव की बेटी मीसा भारती के उम्मीदवारी वाले पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में लड़ाई जीत-हार से आगे पगड़ी की है। यहां सालों तक लालू के वजीर रहे रामकृपाल यादव इस बार विरोध में ताल ठोक रहे हैं। चिंता इस बात की भी है कि जदयू प्रत्याशी डॉ. रंजन प्रसाद यादव पिछले चुनाव में लालू को पटखनी दे चुके हैं और फिर मैदान में डटे हैं।
पाटलिपुत्र की चुनावी जटिलता को लालू की पुरजोर कोशिश और स्पष्ट दिखाती है। प्रदेश में सबसे ज्यादा रैलियां राजद सुप्रीमो ने यहीं पर की हैं। लगभग रोज उनका हेलीकॉप्टर एक बार पाटलिपुत्र की धरती पर उतरता है और लालू अपनी बेटी को जिताने की अपील कर दुबारा फिर आ जाते हैं। यूं तो मीसा भारती रामकृपाल को चाचा कहती हैं और लालू से नाराज होने के बाद वे भतीजी धर्म निभाने दिल्ली तक गई। इतना ही नहीं रिश्तों के लिए उन्होंने इस सीट से चुनाव न लड़ने तक की पेशकश कर डाली थी। लेकिन कतिपय चीजों को लेकर संयोजन न बन पाने से आखिर दोनों आमने-सामने हैं। इसके साथ ही इस क्षेत्र में लालू की वह 'पगड़ी' भी दांव पर लग गई, जिसे उन्होंने रामलखन सिंह यादव से ली थी। जातीय सिरमौर के औकात वाली इस पगड़ी को बचाए रखने के लिए उनको तगड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। कुख्यात रीतलाल यादव से जुड़ी बदनामी भी लालू ने ओढ़ ली और उनके चरणों में झुक गए।
बावजूद इसके स्पष्ट नहीं कि लोग उनकी मेहनत की लाज रखेंगे या नहीं? बेशक, सबकुछ इतना आसान होता तो लालू इतनी कवायद क्यों करते? मोदी लहर पर सवार रामकृपाल उत्साहित हैं तो जदयू प्रत्याशी रंजन प्रसाद के गुणों की चर्चा भी जनता करती है। जातीय ध्रुवीकरण में मामला त्रिकोणीय दिखता है।
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