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Lal Bahadur Shastri: जीता भूभाग पाक को लौटाने से नाराज हो गई थी शास्‍त्री जी की पत्‍नी

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन नई पी‍ढ़ी के लिए किसी किताब से कम नहीं है। शास्त्री जी ने सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठता के जो प्रतिमान स्‍थापित किए वह कम दिखते हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 11:35 AM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 12:13 AM (IST)
Lal Bahadur Shastri: जीता भूभाग पाक को लौटाने से नाराज हो गई थी शास्‍त्री जी की पत्‍नी
Lal Bahadur Shastri: जीता भूभाग पाक को लौटाने से नाराज हो गई थी शास्‍त्री जी की पत्‍नी

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Lal Bahadur Shastri Jayanti 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की जयंती भी दो अक्टूबर (2 October) को मनाई जाती है। चाहे साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में उनके नेतृत्व की बात हो या फिर रेल दुर्घटना के बाद उनका रेल मंत्री के पद से इस्तीफा लाल बहादुर शास्त्री ने सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठता के जो प्रतिमान स्थापित किए उसके बहुत कम उदाहरण आज दिखाई देते हैं। आधुनिक भारत के इतिहास पर नजर डालें तो शास्त्रीजी की पूरी जिंदगी ही सादगी और ईमानदारी की मिसाल थी। आइये पढ़ें उनकी जिंदकी की मशहूर कहानियां...

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...और लौटा दी थी आर्थिक मदद

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान का एक वाकया सामने आता है। उस वक्‍त लाला लाजपतराय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी जो आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब नेताओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती थी। सोसाइटी शास्‍त्री जी को भी घर का खर्चा चलाने के लिए हर महीने 50 रुपये देती थी। उन्‍होंने एकबार जेल से पत्नी ललिता को पत्र लिखकर पूछा था कि क्या सोसाइटी की ओर से जो 50 रुपये दिए जाते हैं, वे काफी हैं। जवाब में ललिता जी की ओर से बताया गया कि 40 रुपये में ही घर का गुजारा हो जा रहा है। इसके बाद शास्‍त्री जी ने सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि चूंकि मेरे परिवार का गुजारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए मेरी आर्थिक मदद घटाकर 40 रुपये कर दी जाए।

सरकारी गाड़ी का नहीं करते थे इस्‍तेमाल

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री की किताब 'लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' में एक रोचक प्रसंग में कहा गया है कि शास्‍त्री जी सरकारी खर्चे पर मिली कार का इस्‍तेमाल नहीं करते थे। एक बार सुनील शास्त्री अपने पिता की कार चला ली थी तो उन्होंने किलोमीटर के हिसाब से पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया था। एक वाकया और आता है, इसमें कहा गया है कि शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने तक ना तो उनके पास अपना घर था ना ही कोई कार... एकबार जब बच्चों ने उलाहना दिया कि आप देश के प्रधानमंत्री है, अपनी कार तो होनी चाहिए। उस समय एक फ‍िएट कार की कीमत 12,000 रुपये होती थी। शास्‍त्री जी के खाते में केवल 7,000 रुपये थे और उन्‍होंने पीएनबी से पांच हजार रुपये लोन लेकर कार खरीदी थी।

पत्नी ललिता शास्त्री का स्‍वाभिमान भी बेमिसाल

कहते हैं कि इस घटना के एक साल बाद ही कार का लोन चुकाने से पहले उनका निधन हो गया था। इंदिरा जी प्रधानमंत्री थीं और उन्‍होंने लोन माफ करने की पेशकश की थी लेकिन पत्नी ललिता शास्त्री जी ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्‍होंने शास्‍त्री जी की मौत के चार साल बाद अपनी पेंशन से वह लोन चुकाया था। जानते हैं यह कार अभी भी है। दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल में इसे रखा गया है। दूर-दूर से लोग इसे देखने के लिए आते हैं। एक और वाकया उनकी सादगी की म‍िसाल पेश करता है। कहते हैं एक बार शास्‍त्री जी के घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगवाया गया। जब इसकी खबर उन्‍हें लगी तो इसे निकलवाने का आदेश दिया। जानते हैं उन्‍होंने क्‍या कहा था... इससे आदत बिगड़ जाएगी।

पाक को हाजी पीर लौटाने पर नाराज हो गई थीं पत्‍नी

चर्चित पत्रकार कुलदीप नैयर शास्‍त्री जी के प्रेस सचिव थे। एक चर्चित वाकया है जिसे कुलदीप साहब सभाओं में बताया करते थे। बकौल नैयर साल 1966 में ताशकंद में भारत-पाकिस्तान के बीच समझौते पर बतौर प्रधानमंत्री शास्‍त्री जी ने दस्‍तखत किए थे। समझौते के तहत हाजी पीर और ठिथवाल भूक्षेत्र पाकिस्‍तान को वापस किए गए थे। शास्‍त्री जी के इस कदम से भारत में उनकी आलोचना हो रही थी। यहां तक की उनकी पत्‍नी ललिता शास्त्री जी भी नाराज थीं। शास्‍त्री जी ने दिल्‍ली स्थित अपने घर देर रात को फोन मिलाया तो दूसरी तरफ से बड़ी बेटी ने फोन उठाया। शास्‍त्री जी ने कहा... तुम अपनी मां से बात कराओ। बेटी ने जवाब दिया आपने जीते गए क्षेत्र पाकिस्‍तान को दे दिए हैं इससे अम्‍मा नाराज हैं, वह अभी बात नहीं करेंगी। कहते हैं... शास्‍त्री जी भारत के लोगों की संवेदनाएं जानने के बाद असहज हो गए थे।

खुद रखा व्रत तब की देशवासियों से उपवास की अपील

एक ओर जहां आज के नेताओं के पास तोहफों की भरमार होती है वहीं शास्‍त्री जी मुफ्त की चीजें पसंद नहीं करते थे। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्रीजी एक बार पत्नी के लिए साड़ी खरीदने गए थे। मिल मालिक की ओर से उनको कुछ महंगी साड़ि‍यां दिखाई गईं तो उन्होंने जवाब दिया था कि इतनी महंगी साडि़यां खरीदने लायक उनके पास पैसे नहीं हैं। इसके बाद मिल मालिक ने साड़ी गिफ्ट करनी चाही तो उन्‍होंने मना कर दिया था। मौजूदा वक्‍त में नेता जहां पर उपदेश कुशल बहुतेरे की लीक पर चलते हैं। शास्‍त्री जी पहले खुद और परिवार को आदेशों का पालन कराते थे और तब लोगों से ऐसा करने की अपील करते थे। जब देश में अकाल की समस्‍या आई तब शास्त्रीजी ने देशवासियों से एक दिन का व्रत करने की अपील की थी। तब शास्त्रीजी खुद नियमित व्रत रखते थे और परिवार को भी ऐसा ही करने का निर्देश था। 

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