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कुंडा कांड: सीबीआइ की अंतिम रिपोर्ट खारिज

पुलिस जांचों में राजनीतिक दबाव की संभावना से आज के परिप्रेक्ष्य में इंकार नहीं किया जा सकता है, जिया उल मामले में सीबीआइ द्वारा समुचित जांच नहीं की गई। ऐसी ही टिप्पणियां करते हुए सीबीआइ की विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रद्धा तिवारी ने सीओ कुंडा जियाउल हक की हत्या में उनकी पत्‍‌नी परवीन आजाद की रिपोट

By Edited By: Published: Tue, 08 Jul 2014 10:29 PM (IST)Updated: Wed, 09 Jul 2014 07:13 AM (IST)
कुंडा कांड: सीबीआइ की अंतिम रिपोर्ट खारिज

लखनऊ [जागरण संवाददाता]। पुलिस जांचों में राजनीतिक दबाव की संभावना से आज के परिप्रेक्ष्य में इंकार नहीं किया जा सकता है, जिया उल मामले में सीबीआइ द्वारा समुचित जांच नहीं की गई। ऐसी ही टिप्पणियां करते हुए सीबीआइ की विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रद्धा तिवारी ने सीओ कुंडा जियाउल हक की हत्या में उनकी पत्‍‌नी परवीन आजाद की रिपोर्ट पर सीबीआइ द्वारा दाखिल अंतिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

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अदालत ने मंगलवार को सीबीआइ को निर्देश दिया कि वह खानापूरी न करते हुए सारे सुबूत जुटाकर अपनी आख्या तय समय में दाखिल करे।

विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने परवीन आजाद की आपत्तियाचिका स्वीकृत करते हुए कहा कि सीबीआइ द्वारा इस स्तर पर कोई विवेचना नहीं की गई कि क्या बालू खनन माफिया व कथित अभियुक्तों का कोई संबंध था तथा सीओ की हत्या के पीछे क्या यह सब जांचें व सीओ जियाउल हक का कार्य आचरण हेतुक थी। सीबीआइ द्वारा इसकी अनदेखी की गई कि क्या जांच में वाकई कोई दबाव सीओ पर था अथवा नहीं, उस पर राजनीतिक दबाव रहता था अथवा नहीं। थानाध्यक्ष मनोज कुमार शुक्ला ने अपनी रिपोर्ट में बलीपुर चौराहे पर सीओ के साथ होने की बात कही है, लेकिन अपने बयानों में सीओ के साथ होने की बात से इंकार कर दिया है। अदालत ने कहा है जिस समय जियाउल हक पर हमला हुआ तब पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की जबकि उसके पास हथियार थे। यह भी विश्वास करना मुश्किल है कि मात्र जियाउल हक को गंभीर चोटें आई और अन्य पुलिस वालों को मात्र साधारण एवं खरोच आई। पुलिस ने सीओ को बचाने की कोशिश क्यों नहीं की। जब प्रधान नन्हें यादव के घर वाले गुड्डू सिंह का मकान जलाने की बात कर रहे थे तब सीओ एवं पुलिस वालों के मना करने पर केवल सीओ को घायल क्यों किया। अदालत ने कहा कि यह भी अस्पष्ट है कि परवीन आजाद द्वारा नामित व्यक्तियों में मात्र रघुराज प्रताप का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया गया परंतु अन्य व्यक्तियों का नहीं कराया गया। थानाध्यक्ष मनोज कुमार शुक्ला द्वारा एफआइआर लिखाते समय धाराओं से क्यों छेड़छाड़ की गई। अदालत के अनुसार सीबीआइ द्वारा मात्र उस गांव के लोगों का बयान अंकित करके खानापूर्ति की गई जबकि उस गांव व क्षेत्र के लोगों पर जैसा कि परवीन आजाद द्वारा बार-बार बताया जा रहा है कि नामित व्यक्तियों का अत्याधिक राजनीतिक दबाव है एवं उनमें डर व्याप्त है। सीबीआइ द्वारा अपनी आपत्तिमें कहा गया है कि परवीन आजाद घटना की चश्मदीद गवाह नहीं हैं तथा सुनी सुनाई बातों के आधार पर रिपोर्ट लिखा दी। अदालत ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि रिपोर्ट लिखाने के लिए चश्मदीद गवाह होना आवश्यक नहीं है।

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