'सही तरीके से लागू हों राहत के कदम', जानें और क्या कहते हैं फिक्की महासचिव
पैकेज का ज्यादातर कदम अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने की जगह आपूर्ति बहाली पर केंद्रित हैं।
दिलीप चिनॉय। कार ने आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का आत्मनिर्भर भारत पैकेज घोषित किया। इस पैकेज में असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों और प्रवासी कामगारों जैसे समाज के अतिसंवेदनशील तबके की पीड़ा हरने के कई प्रावधान हैं। साथ ही देश के एमएसएमई सेक्टर को उबारने के लिए भी कई कदम इसमें समाहित हैं। इस पैकेज का ज्यादातर कदम अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ावा देने की जगह आपूर्ति बहाली पर केंद्रित हैं। फिक्की का मानना है कि इस घोषित पैकेज को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए। जिससे अर्थव्यवस्था में मांग तेजी से बढ़े। इसलिए उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए हमारी सुझावी प्राथमिकताएं इस प्रकार हैं।
पहला, एमएसएमई क्षेत्र के लिए घोषित कोलैटरल फ्री लोन स्कीम उत्साहवद्र्धक है। तेजी से इस स्कीम को लागू करके रिकवरी प्रक्रिया को मदद दी जा सकती है। इससे एमएसएमई सेक्टर को भी बहुत लाभ होगा। दूसरा, मध्यम और बड़े कारपोरेट के लिए सरकार को चाहिए कि वह कोविड-19 लिक्विडिटी ब्रिज तैयार करें जिसके तहत इस महामारी की लागत को विशेष निवेश के तौर पर देखा जाए जिसके ऋण को चुकाने की अवधि पांच से सात साल रखी जाए। साथ ही इसके बराबर ही अतिरिक्त कोलैटरल फ्री क्रेडिट मुहैया कराया जाए।
तीसरा, कंपनियों के लिए बहुत कठिन चुनौती का दौर है। लिहाजा पहली तिमाही के नतीजे प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकते हैं। लिहाजा क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के निष्कर्ष को बैंकों द्वारा बहुत नरमी के साथ देखे जाने की जरूरत है। साथ ही उनका सालाना अनुमान/आकलन साल के शेष हिस्से में उनके आउटकम के आधार पर किया जाना चाहिए।
चौथा, कुछ ऐसे सामान्य नियम जिनमें छूट का नियामक कदमों पर कोई असर नहीं होता, उन्हें भी बैंकों द्वारा साल भर की छूट देनी चाहिए। क्योंकि आने वाले दिनों में उनका साबका कारपोरेट से पड़ेगा। पांचवां, भारत सहित दुनिया अप्रत्याशित दौर से गुजर रही है। ऐसे में वन टाइम रिस्ट्रक्चरिंग आफ लोन की अनुमनित मिलनी चाहिए। छठा, उड्डयन, हास्पिटलिटी, पर्यटन, हेल्थ केयर जैसे क्षेत्र कोविड-19 महामारी से बुरी तरह टूट चुके हैं। इनमें से अधिकांश के अगले 12 से 18 महीनों में भी सामान्य स्थिति में आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में लंबे समय वाली रिस्ट्रक्चरिंग के तहत विशेष मदद प्रणाली की इन क्षेत्रों को जरूरत होगी।
(लेखक फिक्की के महासचिव हैं)
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