इंग्लैंड में कोरोना की वैक्सीन तलाश रही कोलकाता की बेटी, ऑक्सफोर्ड की शोध टीम का हिस्सा
इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कोरोना वैक्सीन का वैक्सीन तैयार करने में जुटी टीम में कोलकाता की बेटी चंद्रबाली दत्ता भी शामिल हैं।
कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। दुनियाभर को हिला कर रख देने वाली महामारी कोविड-19 से हर देश अपने स्तर से लड़ने का प्रयास कर रहा है। कई तरीके अपनाए जा रहे हैं ताकि इसके संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिल सके। इन सबके बावजूद इससे निकलने का तरीका दिखाई नहीं दे रहा। पूरी दुनिया को इंतजार है तो सिर्फ उस घोषणा का, जिसमें कहा जाए कि इस महामारी का तोड़ यानी वैक्सीन तैयार कर ली गई है। यही वजह है कि इसकी वैक्सीन तैयार करने के लिए दुनियाभर में 100 से भी अधिक शोध चल रहे हैं। इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। यहां किए जा रहे शोध में खास यह है कि जो टीम वैक्सीन तैयार करने में जुटी है, उसमें अहम भूमिका कोलकाता की बेटी चंद्रबाली दत्ता का भी है।
प्रारंभिक से लेकर बीटेक तक की शिक्षा कोलकाता में प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए चंद्रबाली वर्ष 2009 में इंग्लैंड चली गईं। दुलारी बेटी के इंग्लैंड जाने से मां काबेरी खुश नहीं थीं। बावजूद इसके विज्ञान के प्रोफेसर पिता समीर कांति दत्ता ने बेटी को विदेश में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद दक्षिण कोलकाता के टॉलीगंज क्षेत्र के गोल्फ गार्डन की रहने वाली चंद्रबाली बीते अप्रैल के अंतिम सप्ताह में अचानक सुर्खियों में आईं तो माता-पिता के साथ आस-पड़ोस और सहपाठी काफी खुश हुए। मीडिया में खबरें व फोटो आईं तो मां व पिता की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। वजह थी जिस महामारी से पूरी मानवजाति हलकान है, उससे निजात के लिए वैक्सीन तैयार करने वाली टीम में अहम पद चंद्रबाली संभाल रही हैं।
युवा लड़कियों को प्रेरित करा है मकसद
चंद्रबाली जीव विज्ञान के क्षेत्र में पुरुषों के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए भारत की युवा लड़कियों को प्रेरित करना चाहती हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरे बचपन का दोस्त नॉटिंघम में पढ़ाई कर रहा था, जिसने मुङो प्रेरित किया। ब्रिटेन को समान व महिला अधिकारों के लिए जाना जाता है, इसलिए मैंने लीड्स विश्वविद्यालय से बायोसाइंस में मास्टर्स करने का फैसला किया।’ उन्होंने कहा कि असली संघर्ष रहा-भारत छोड़ना और इंग्लैंड पहुंचना। वह कहती हैं, ‘मां भी इससे खुश नहीं थीं, लेकिन पिता हमेशा मेरे लिए महत्वाकांक्षी रहे और उन्होंने कहा कि मुङो अपने सपनों को पूरा करना चाहिए और समझौता नहीं करना चाहिए।’
यूं तय किया सफर
चंद्रबाली ने माध्यमिक 87.5 फीसद अंक के साथ उतीर्ण होने के बाद गोखले मेमोरियल गल्र्स स्कूल से 2004 में विज्ञान से 77.3 फीसद अंक प्राप्त कर उच्च माध्यमिक परीक्षा पास कर हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया और बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक किया। इसके बाद 2009 में वह लीड्स विश्वविद्यालय में बायोसाइंस में एमएससी के अध्ययन के लिए इंग्लैंड चली गईं। पिछले वर्ष दिसंबर में दो सप्ताह के लिए चंद्रबाली कोलकाता आई थीं। जनवरी में इंग्लैंड पहुंचते ही ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में नौकरी मिल गई। उन्होंने विश्वविद्यालय के जेन्नेर इंस्टीट्यूट में क्लीनिकल बायोमैन्चुफैक्चरिंग फैसिलिटी में काम शुरू किया और दो माह बाद मार्च में जब चीन से निकलकर कोरोना वायरस चारों ओर फैलने लगा तो ऑक्सफोर्ड में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सीएचएडीओएक्स1 एनसीओवी-19 नाम के टीके की खोज शुरू हो गई और अप्रैल के आखिरी सप्ताह में जब इसके परीक्षण हुए तो चंद्रबाली का नाम भी सामने आया। फिलहाल इस टीके का मानवीय परीक्षण का दूसरा और तीसरा चरण चल रहा है। जहां क्वालिटी एस्युरेंस मैनेजर के तौर पर 34 वर्षीय दत्ता का काम यह सुनिश्चित करना है कि टीके के सभी स्तरों का अनुपालन किया जाए।
बेटी पर गर्व है
कोलकाता के भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी के वाइस प्रिंसिपल पिता समीर कांति और मां कबेरी दत्ता अपनी बेटी की उपलब्धि से बहुत खुश हैं और उनकी सफलता के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। समीर ने कहा, ‘बेटी हमेशा से बेहद महत्वाकांक्षी और मेहनती है। मैं उसकी और उसकी पूरी टीम की सफलता की कामना करता हूं। वे सभी कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यह समग्र रूप से मानवता के लिए बहुत मायने रखेगा और मुङो गर्व है कि मेरी बेटी इस तरह के नेक काम से जुड़ी है।’ वह आगे कहते हैं, ‘बेटी गत वर्ष दिसंबर में घर आई थी। पिछली बार जब हम उससे मिले थे तब कुछ और बात थी, लेकिन अब वायरस की वजह से दुनिया बदल गई है। शुरू में मैं इंग्लैंड के हालात को लेकर उसके बारे में बहुत तनाव में था। बाद में मुङो उसके काम के महत्व का एहसास हुआ और अब मैं एक गíवत पिता हूं।’