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जानें- यूएन ने अपनी रिपोर्ट में क्‍यों लिया छोटे से गांव में रहने वाली किशोरियों का नाम

यूएन की एक रिपोर्ट में भारत के छोटे से गांव की किशोरियों का नाम लिया गया है। इनका नाम बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने और दूसरों का भी उत्‍थान करने के लिए लिया गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 09:48 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 08:56 AM (IST)
जानें- यूएन ने अपनी रिपोर्ट में क्‍यों लिया छोटे से गांव में रहने वाली किशोरियों का नाम
जानें- यूएन ने अपनी रिपोर्ट में क्‍यों लिया छोटे से गांव में रहने वाली किशोरियों का नाम

नई दिल्‍ली (संयुक्‍त राष्‍ट्र)। संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा हाल ही में जारी की गई विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट-2020 में मौजूदा वक्‍त में भी दुनियाभर में बालविवाह का प्रचलन 21 फीसद होने पर चिंता जताई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में हर 5 में से 1 लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती है। ये रिपोर्ट भारत के लिए भी बेहद खास है। इसमें कहा गया है कि भारत में हर चार में से एक लड़की की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही कर दी जाती है। रिपोर्ट में ये बात भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015-16 आंकड़ों के आधार पर कही गई है। इस रिपोर्ट में उन भारतीय महिलाओं की भी प्रशंसा की है जो इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्‍मत जुटा सकीं और शिक्षा के दम पर आत्मनिर्भर बन कर अपना जीवन अपने दम पर जीने का रास्ता चुन सकीं।

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इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र राज्य में बीड जिले में रहने वाली सोनी का भी जिक्र किया गया है, जिसके माता-पिता काम के लिये गांव से बाहर रहते थे। सोनी ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि उसके चाचा ने उसकी शादी तब एक 28 वर्ष के व्‍यक्ति से की थी जब वह महज 15 वर्ष की थी। सोनी ने बताया कि वो बेहद बड़बोली और थी और अब वो मेरी जिम्मेदारी नहीं उठा सकते हैं। यूएन द्वारा प्रकाशित खबर में कहा गया है कि जब सूखे की मार पड़ती है तो बहुत से मजदूर रोजी-रोटी के लिए दूसरे जिलों में पलायन कर जाते हैं। इन जगहों पर मजदूरी केवल जोड़े में दी जाती है मतलब पति-पत्‍नी दोनों को ही काम पर एक साथ रखा जाता है। यही वजह है कि इसकी मार उनके पीछे छूट गए बच्‍चों पर पड़ती है। इनमें भी अधिकतर किशोरियां होती हैं। यही वजह है कि उनके परिजनों को लगने लगता है कि यदि उनकी शादी कर दी जाए तो वो अधिक सुरक्षित होंगी।

इसको देखते हुए अक्‍सर ये कदम मजबूरी में उठाया गया होता है। लेकिन सोनी की कहानी कुछ अलग थी। उसकी शादी उसकी शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए की गई थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसने बताया कि शादी के कुछ महीने बाद ही उसके पति और ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट करनी शुरू कर दी। उन्‍होंने सोनी पर आरोप लगाया कि उसमें बुरी आत्माओं का वास है, क्योंकि मैं अपने मन की बात कहने का साहस रखती थी। इसके लिए वो उसको तांत्रिक के पास भी लेकर गए। उसने भी भूत भगाने के नाम पर उसके साथ मारपीट की। .ऐसे में सोनी को उसके घरवालों का भी साथ नहीं मिला। उन्‍होंने कहा कि अब पति का घर ही उसका घर है और उसे वहीं रहना होगा।

सोनी ने अपने ऊपर बीती बातों को वर्ष 2018 में 2018 में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस कार्यक्रम में सभी के सामने रखा था। इसके बाद सोनी को दलित महिला विकास मंडल संस्था से मदद मिली। ये संस्‍था किशोरियों को आवश्यक कौशल सिखाती है। यहां पर सोनी ने नर्स बनने की ट्रेनिंग ली और अपने साथ गांव की अन्‍य 12 लड़कियों को भी इससे जोड़ा। वर्तमान में सोनी पूरी तरह से स्‍वतंत्र और एक आत्मनिर्भर महिला हैं और पुणे शहर में एक अस्पताल की नर्स के रूप में कार्यरत है। अब खाली समय में सोनी लड़कियों के खिलाफ भेदभाव उजागर करने वाले नाटकों में हिस्सा लेकर, जागरूकता बढ़ाने में मदद करती है।

सोनी के मुताबिक उसके साथ जो कुछ हुआ उसको लेकर उसके मन में काफी गुस्‍सा था। लेकिन अब न सिर्फ वो अपने पांव पर खड़ी है बल्कि अपने मां-बाप को भी पैसे भेजती है। अब वो अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस करती है। ऐसी ही कहानी मध्‍य प्रदेश के गांव रामगढ़ की पूजा यादव और लीला की भी है। ये दोनों ही यहां के आदिवासी समुदाय से ताल्‍लुक रखती हैं। ये लोगों से बातचीत करके लड़कियों को स्कूल में रखने और उनकी शिक्षा पूरी करने के लिये प्रोत्साहित करती हैं। वो लड़कियों के परिजनों को इस बात के लिए प्रोत्‍साहित करती हैं कि वे उनकी शादी जल्‍द न करें। उन्‍होंने बताया कि 15 वर्षीय रामकली के परिजन उसकी शादी की कोशिश कर रहे थे।

रामकली बताती हैं कि वे इसके लिए तैयार नहीं थीं और पढ़ लिखकर काबिल इंसान बनना चाहती थी। लेकिन शादी तय होने पर वो परेशान हो गई। ये पता चलने पर पूजा और लीला ने उसके माता-पिता को समझाने की कोशिश की, लेकिन वो नहीं मानें। आखिर में इन दोनों ने उन्‍हें कानून का हवाला दिया जिसके बाद वो डरकर ही सही लेकिन रामकली की शादी न करने पर राजी हो गए। यूएन की खबर में सिर्फ इनका ही नाम नहीं है बल्कि ओडिशा के जादीपाड़ा गांव की निवासी अंबिका की है जो अब तमिलनाडु में एक मिल में कंपनी काम करती हैं। इसके अलावा कोरापुट जिले की 15 वर्षीय राधमनी माझी की भी यही कहानी है।

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