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जानें क्यों बांधवगढ़ के जंगलों में ग्रास लैंड बढ़ाने के लिए फिर किया गया श्रीरामचरितमानस का पाठ

तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर मृदुल पाठक ने बफर जोन के गांवों में श्रीरामचरित मानस के पाठ के साथ जागरण करवाने का फैसला लिया था। उन्होंने ग्रामीणों को ढोलक मंजीरा और स्पीकर उपलब्ध कराए। ग्रामीणों ने भी इसमें रुचि ली। पाठ की तेज आवाज से जानवर जंगलों में भागने लगे।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 10:12 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 10:12 PM (IST)
जानें क्यों बांधवगढ़ के जंगलों में ग्रास लैंड बढ़ाने के लिए फिर किया गया श्रीरामचरितमानस का पाठ
मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान की फाइल फोटो।

संजय कुमार शर्मा, उमरिया। भारत में आध्यात्मिक रुझान वाले लोगों में व्यापक रूप से रचे-बसे श्रीरामचरितमानस का एक अनूठा उपयोग दोहराने की जरूरत महसूस की जा रही है। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में कम हो रहे ग्रास लैंड को फिर से विकसित करने में कभी इसकी मदद ली गई थी। जंगल के आसपास बसे गांवों में जब श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां गूंजीं तो इस परेशानी का हल निकल आया।

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दरअसल, जंगल में जानवरों की बहुलता वाले कोर एरिया में ग्रास लैंड (घास के मैदान) कम होने लगे थे, इसकी वजह बाघों और अन्य जानवरों का कोर एरिया से बाहर और मानव उपस्थिति वाले बफर जोन तक चले जाना था। इससे कोर एरिया को तो नुकसान हुआ ही, आसपास रहने वाले ग्रामीणों के लिए खतरा पैदा होने लगा था। तीन साल पहले ध्वनि विस्तारक यंत्रों की सहायता से किए श्रीरामचरितमानस के पाठ की तेज आवाज से जानवर कोर एरिया में लौटे और ग्रास लैंड पुन: विकसित हुआ।

दरअसल, ग्रास लैंड के बने रहने और विकसित होने के लिए जरूरी है कि शाकाहारी जानवर घास खाते रहें, अन्यथा घास बड़ी होकर कड़ी हो जाती है और कोमल घास को पनपने नहीं देती, इससे धीरे-धीरे ग्रास लैंड खत्म होने लगता है। यहां तीन साल पहले यही स्थिति बनी थी।

लगभग 1602 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में 748 वर्ग किमी कोर एरिया है। बाघ का भोजन छोटे शाकाहारी जानवर होते हैं और ये घास पर ही पलते हैं। घास कम होने से जानवर कम होंगे यानी बाघ को शिकार के लिए ज्यादा मशक्कत करनी होगी। जैव विविधता बरकरार रखने के लिए भी यह आवश्यक है कि जंगल का ग्रास लैंड कुल क्षेत्र का कम से कम 13 प्रतिशत हो। तीन साल पहले यह घट गया था जिससे बाघ शिकार की तलाश में जंगल के बाहर मानव बस्तियों तक पहुंचने लगे थे। जानवरों को कुछ समय के लिए कोर क्षेत्र में पहुंचाना जरूरी हो गया था। 

तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर मृदुल पाठक ने बफर जोन के गांवों में श्रीरामचरित मानस के पाठ के साथ जागरण करवाने का फैसला लिया था। उन्होंने ग्रामीणों को ढोलक, मंजीरा और स्पीकर उपलब्ध कराए। धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण होने के कारण ग्रामीणों ने भी इसमें रुचि ली। पाठ की तेज आवाज से जानवर जंगलों में भागने लगे। कोर एरिया में लौटे शाकाहारी जानवर कड़ी घास को भी खाने लगे, जिससे नई घास की कोंपल फूटी, जानवरों की चहलकदमी से पुरानी घास खत्म हुई और नई घास उगी। 

इस तरह कुछ ही महीनों में ही ग्रास लैंड छह प्रतिशत हो गया। इधर, बफर जोन से जानवर हटे तो उद्यान प्रबंधन व ग्रामीणों ने ग्रास लैंड बढ़ाने में वैकल्पिक तरीकों से मदद की। अभियान की वजह से पार्क में प्रति वर्ग किमी 90 से 95 शाकाहारी वन्य प्राणी हो गए थे। इस तरह उनकी संख्या पचास हजार से ज्यादा हो गई थी।बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड डायरेक्टर विंसेंट रहीम ने कहा कि फिलहाल बांधवगढ़ का ग्रास लैंड दो से ढाई प्रतिशत है। ग्रास लैंड को बढ़ाने के लिए योजना बनाई जा रही है।

वन्य प्राणी प्रेमी व जानकार नरेंद्र बगड़िया ने कहा कि बाघों की सुरक्षा के लिए ग्रास लैंड की अहम भूमिका होती है। ग्रास लैंड अच्छा होगा, तभी शाकाहारी जानवर रहेंगे और बाघ उनका शिकार कर सकेगा। इन जानवरों को कोर एरिया में भेजने के लिए श्रीरामचरितमानस के पाठ वाला प्रयोग दोहराया जा सकता है।


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