जानिए, क्यों 115 साल पहले अफ्रीका से लाए गए थे बब्बर शेर, जिन्हें बाद में मार दी गई गोली
सिंधिया रियासत में बब्बर शेरों को बसाने की यह योजना बड़ी ही दिलचस्प है। ग्वालियर गजेटियर के मुताबिक 1901 के आसपास लार्ड कर्जन ग्वालियर आये थे।
नई दिल्ली, अरविंद पांडेय। चीता को अफ्रीका से लाकर भारत की धरती पर फिर से बसाने को लेकर भारी उत्साह हैं, लेकिन यह इस वन्यजीवों को बसाने की कोई पहली कोशिश नहीं है। आज से कोई 115 साल पहले 1904 में ग्वालियर की सिंधिया रियासत ने भी अफ्रीका से बब्बर शेरों को लेकर बसाने और इनके कुनबे को बढ़ाने की कुछ ऐसी ही कोशिशें की थी। हालांकि, यह कोशिश बुरी तरह फेल हुई। अफ्रीका से आये इन शेरो ने आस-पास के क्षेत्रों में इतना आतंक मचाया, कि महाराजा को पकड़वाना पड़ा। कुछ समय के बाद इन्हें फिर रियासत के कूनो अभ्यारण्य में छोड़ा गया, लेकिन जब इन्होंने फिर मानव बस्तियों को निशाना बनाया तो इन्हें मार दिया गया।
शेरों को बसाने के लिए सालाना डेढ़ लाख रुपये का बजट
सिंधिया रियासत में बब्बर शेरों को बसाने की यह योजना बड़ी ही दिलचस्प है। ग्वालियर गजेटियर के मुताबिक 1901 के आसपास लार्ड कर्जन ग्वालियर आये थे। उस समय वह शिकार के ग्वालियर के आसपास के जंगलों में गये। वह शेर का शिकार करना चाहते थे, लेकिन उस समय तक ग्वालियर के जंगल से बब्बर शेर विलुप्त हो चुका था। ऐसे में लार्ड कर्जन ने महाराजा को शेरों को बसाने की सलाह दी। यह योजना सिंधिया रियासत के तत्कालीन महाराजा माधवराव प्रथम को भी पसंद आई। सिंधिया रियासत ने इसके लिए सलाना डेढ़ लाख रुपए का एक बजट बनाया। साथ ही इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए पारसी वन्यजीव विशेषज्ञ डी एम जाल को जिम्मेदारी दी। जाल ने पहले इसे लेकर जूनागढ़ के नवाब से सम्पर्क साधा, लेकिन नवाब ने बब्बर शेरों को देने से मना कर दिया। उस समय तक देश मे सिर्फ जूनागढ़ रियासत में शेर बचे थे।
रास्ते में ही तीन शेरों की मौत
हालांकि, जूनागढ़ के नवाब के मना करने के बाद भी सिंधिया ने हार नहीं मानी। लार्ड कर्जन की मदद से अफ्रीकी देश इथियोपिया से संपर्क साधा। 1904 में वन्यजीव विशेषज्ञ जाल को लार्ड कर्जन का पत्र लेकर इथियोपिया भेजा गया। जहाँ से वह 10 बब्बर शेरों को लेकर पानी के जहाज से मुंबई के लिए रवाना हुए। हालांकि, रास्ते में ही 10 में से तीन शेरों की मौत हो गई।
शेरों के आतंक से पूरी रियासत में हाहाकार
ग्वालियर गजेटियर के मुताबिक, अपनी रियासत में शेरों को बसाने को लेकर महाराजा इस तरह उत्साहित थे कि वह शेरों को लेने के लिए खुद मुंबई बंदरगाह गए। जहाँ से बचे सात शेरों को ग्वालियर लाया गया। यहां उन्हें कुछ समय तक उनके लिए बनाए गए खास जू में रखा गया। बाद में उन्हें पास के जंगल में छोड़ा गया,लेकिन जू में रहने से यह शिकार करने में असक्षम हो गए थे, लिहाजा वह मानव बस्तियों में घुसकर लोगों पर हमला करने लगे थे। शेरों के इस आतंक से पूरी रियासत में हाहाकार मच गया। आखिर में लोगों के आक्रोश को देखते हुए महाराजा ने सभी को पकड़वाकर फिर से जू में डलवा दिया।
कुछ समय बाद इन्हें फिर जंगल मे छोड़ा गया, पर उनकी मानव बस्तियों को निशाना बनाने की आदत से संघर्ष और तेज हुआ। आखिरकार में 1910 से 1912 के बीच में इन सभी को अलग अलग घटनाओं में मार दिया गया। हालांकि अब जब चीता को लाने की तैयारी चल रही तो वन्यजीव विशेषज्ञों में इसके बसाहट की उम्मीद है, क्योंकि अब पहले के मुकाबले वन्यजीवों को लेकर दुनिया मे काफी सटीक अध्ययन है। हालांकि, वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ फैयाज कुदसर का मानना है कि ऐसी बसाहट से वन्यजीवों के साथ संघर्ष और बढ़ सकता है।