Aarey में कभी पंडित नेहरू ने लगाया था पहला पौधा, आज हो रहा है विवाद, जानें पूरा मामला
आरे कॉलोनी इन दिनों खूब चर्चा में है। वजह है यहां पर पेड़ों की कटाई। मार्च 1951 में यहां पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने पहला पौधा रोपा था। आज यहां पर घना जंगल है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मुंबई की आरे कॉलोनी की आज हर जगह चर्चा है। इसको लेकर शुरू हुआ विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यहां पर पेड़ों की कटाई पर तत्काल प्रभाव से रोक भी लगा दी गई है। आपको बता दें कि वर्तमान में आरे जंगल 3166 एकड़ में फैला है। कंकरीट के जंगल के बीच मौजूद इस ग्रीन एरिया की शुरुआत 4 मार्च 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यहां पर पहला पौधा लगा कर इसकी नींव रखी थी। इसके बाद इस क्षेत्र का लगातार विस्तार होता चला गया। आज मुंबई को सांस लेने के लिए जो ऑक्सीजन मिलती है उसमें इसका भी योगदान है। यही वजह है कि यह यहां का ईको जोन भी बन गया है।
मेट्रो विस्तार से शुरू हुआ विवाद
लेकिन, अब इसको मुंबई मेट्रो की नजर लग गई है। इसकी ही बदौलत यहां पर विवाद भी शुरू हुआ है। आरे कॉलोनी के पेड़ों को कटाई से बचाने के लिए सैकड़ों लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं। मुंबई में हर तरफ इसकी ही चर्चा है। जिस वक्त आरे कॉलोनी और इस जंगल की नींव रखी गई थी उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू का मकसद यहां पर डेयरी उद्योग को बढ़ावा देना था। आज इसके अंदर रॉयल पॉल्म, आरे, पहाड़ी गोरेगांव, साई, गुंडगाव, फिल्म सिटी, पसपोली का इलाका शामिल है। यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग तक हो चुकी है। सेव आरे को लेकर मुहिम यूं तो कोई नई नहीं है। लेकिन हाल ही में मुंबई हाईकोर्ट ने यहां के पेड़ों की कटाई रोकने से संबंधित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
एक ही रात हजार पेड़ों पर चला आरा
इसके बाद यहां पर एक ही रात में मशीनों से एक हजार के करीब पेड़ काट डाले गए। इसके बाद सेव आरे मुहिम से जुड़े लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसके बाद उन्हें फौरी राहत दे दी गई। सेव आरे की इस मुहिम से अब वर्ली सीट से शिव सेना के उम्मीदवार आदित्य ठाकरे भी जुड़ गए हैं। उन्होंने सेव आरे के कार्यकर्ताओं की मांग का समर्थन करते हुए कहा है कि यहां के पेड़ काटकर बनाए रही मेट्रो के लिए समतल स्थल की जगह कंपनी को नई जगह तलाश करनी चाहिए। आदित्य ठाकरे का कहना है कि मेट्रो विस्तार के नाम पर पेड़ों की कटाई करना शर्मनाक है।
यूं हुआ विवाद
मुंबई की लोकल ट्रेनों को यहां की लाइफ लाइन का दर्जा हासिल है। इनसे हर रोज लाखों की तादाद में लोग सफर करते हैं। एक दिन यदि इनके पहिए थम जाएं तो पूरी मुंबई बेपटरी हो जाती है। इसकी वजह से लोग कम किराए में दूसरे विकल्पों की तुलना में जल्दी अपने गंतव्य तक पहुंच जाते हैं। मुंबई की जरूरत को देखते हुए ही यहां पर मेट्रो चलाने की प्लानिंग की गई थी। इसका ही विस्तार था वर्सोवा से घाटकोपर, जो वर्ष 2004 में शुरू किया गया था। इसके लिए पार्किंग शेड की जरूरत थी। इसके लिए किसी जगह पर कंपनी के फ्लोर स्पेस इंडेक्स का निर्माण करना था। मेट्रो से जुड़ी इस एजेंसी को इसके लिए आरे कॉलोनी का यह जंगल सही लगा। लेकिन यह शुरुआत से ही विवादों में घिर गया था क्योंकि स्थानीय लोगों ने इसका जबरदस्त विरोध किया, जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने कंपनी को नई जगह तलाशने का निर्देश दिया था।
एनजीटी से भी हुई थी निराशा
लेकिन, कोई नई जगह न मिलने के बाद आरे कालोनी का ही रुख दोबारा भी किया गया और पेड़ों की कटाई का काम शुरू किया गया। इसके विरोध में यहां के लोगों ने महाराष्ट्र हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां से सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया, जिसके बाद यहां पर पेड़ों की कटाई दोबारा धड़ल्ले से शुरू कर दी गई। यहां पर कंपनी को अपने लायक जगह बनाने के लिए 2700 से अधिक पेड़ों की कटाई करनी थी। आपको बता दें कि हाईकोर्ट से निराश होने से पहले यहां के लोगों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) से भी हार का ही मुंह देखना पड़ा था। हाईकोर्ट की बात करें तो उसने इसको जंगल मानने से ही इनकार कर दिया था और सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
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