जानिए, किस दुर्लभ बीमारी ने बंद कर दी अभिनेता इरफान खान की सांसें
अपने अभिनय से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले अभिनेता इरफान खान न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी से ग्रसित थे। उनके इस बीमारी का इलाज भी चल रहा था।
नई दिल्ली। अपनी आवाज, आंखों और अभिनय से पहचाने जाने वाले अभिनेता इरफान खान का लंबी बीमारी के बाद आज निधन हो गया। वो न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी से ग्रसित थे। आंत और पेट में यह ट्यूमर लो ग्रेड होता है, लेकिन फेफड़े सहित अन्य अंगों में यह घातक हो सकता है। अगर समय पर और सही उपचार मिले तो ही इस बीमारी से निपटा जा सकता है, नहीं तो यह खतरनाक हो सकती है।
इस बीमारी का इरफान को भी काफी देरी से पता चला था, बीमारी का पता चलने से पहले इरफान ने कहा था कि उनकी इस पर चर्चा चल रही है, जल्दी ही वो लोगों को इसके बारे में अवगत कराएंगे। फिर कुछ महीनों के बाद उन्होंने बताया कि उन्हें न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर ऑफ सर्विक्स है, जो अति दुर्लभ होता है। 22 जुलाई 2005 में आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में 30 वर्षीय एक महिला के इससे पीड़ित होने का पता चला था। उन्हें भी डायरिया और उल्टी की शिकायत थी। वह सही उपचार पाकर स्वस्थ हो गई। इससे संबंधित केस स्टडी जर्नल ऑफ ऑब्स एंड गायनी ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ था।
क्या है न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर
हार्मोन पैदा करने वाली एंड्रोक्राइन कोशिकाओं और नर्व कोशिकाओं की असमान वृद्धि से न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर होता है। चिकित्सकीय जांच में यह अक्सर पेट और आंत में पाया जाता है। यहां यह लो ग्रेड होता है। इसका आकार भी छोटा होता है, डॉक्टर आम बोलचाल में इसे शरीफ ट्यूमर भी कह देते हैं, मगर आंत से यह लिवर में फैल जाता है। इसके बाद भी सर्जरी के बिना मरीज 10 से 15 साल तक बेहतर जिंदगी जी जा सकती है। फेफड़े में यह हाई ग्रेड होता है। खून से शरीर के अन्य अंगों में फैलने पर घातक हो सकता है। यह सर्विक्स सहित अन्य अंगों में न्यूरो एंड्रोक्राइन कार्सिनॉइड ट्यूमर की तरह से व्यवहार करता है तो मरीज के लिए घातक हो सकता है।
एक अलग प्रकार का कैंसर है न्यूरोएंड्रोक्राइन
इंदौर कैंसर फाउंडेशन के संस्थापक और वरिष्ठ कैंसर सर्जन डॉक्टर दिगपाल धारकर ने बताया कि न्यूरोएंड्रोक्राइन ट्यूमर एक अलग प्रकार का कैंसर होता है। इसे कैंसर के सिफिकेशन में 10 से 15 साल पहले ही जोड़ा गया है। इसके बारे में पता लगाने के लिए विशेष प्रकार की पड़ताल ''क्रोमोग्राफिन ऐसे'' और ''क्रोमेटिन टेस्ट'' किया जाता है।
इसके बाद इसके प्रायमरी या सेकंडरी स्टेज का पता लगाया जा सकता है। न्यूरोएंड्रोक्राइन ट्यूमर में पीनेट ट्यूमर की उत्पत्ति अमूमन कोलोन, फेफड़ों में या फिर शरीर के किसी और भाग में होती है।अगर इसे डायग्नोस किया जा चुका है तो यह देखना जरूरी हो जाता है कि यह लोकलाइज्ड है या फिर शरीर में फैला हुआ है।
ये होते हैं लक्षण
पेट, आंत, पैंक्रियाज में ट्यूमर होने पर डायरिया, पेट में दर्द, उल्टी, पसीना आना जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। फेफड़े में ट्यूमर, खांसी रहना, बुखार, ब्लड प्रेशर बढ़ना, घबराहट और बेचैनी एपेंडिक्स सहित कई अन्य अंगों में ट्यूमर होने पर कोई लक्षण नहीं होते हैं। एक बात और है कि इस बीमारी का जल्दी पता नहीं चल पाता है।
ऐसे होता है ट्रीटमेंट
इस बीमारी का भी ट्रीटमेंट कैंसर की बीमारी की तरह कीमोथैरेपी के जरिए ही किया जाता है। कई बार पीईटी स्कैन भी की जाती है लेकिन अगर यह बीमारी दिमाग में फैली है तो इसका पता इस स्कैन से नहीं चलता। इम्यूनो हिस्ट्रो केमेस्ट्री का भी अहम रोल होता है। इसके बाद इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी मिल पाती है। जहां तक बात ट्रीटमेंट की है तो इसमें काफी समय लगता है। इस बात पर भी यह निर्भर करता है कि बीमारी शरीर के किस हिस्से में है।
यह बीमारी अमूमन फैलने वाली होती है जिसका ट्रीटमेंट लंबे समय तक चलता है।ट्रीटमेंट के दौरान कई बार ऐसी बीमारी में रेडिएशन का उपयोग भी किया जाता है। इस बीमारी में सर्वाइवल इस पर निर्भर करता है कि, शरीर के किस हिस्से में यह बीमारी हुई है। रोग से पीड़ित व्यक्ति के आंत और पेट में ट्यूमर होने पर सर्जरी से ही इलाज हो जाता है। इसके बाद दो से तीन साल तक फॉलोअप किया जाता है। शरीर के अन्य अंगों में फैलने पर सर्जरी के साथ बायोथैरेपी देने की जरूरत होती है।
ऐसे की जाती है पहचान
इम्युनोहिस्टोलॉजी और हार्मोन की जांच से न्यूरोएंड्रोक्राइन ट्यूमर की पहचान की जाती है। ट्यूमर के टुकड़े के लिए स्पेसफिक स्टेन इस्तेमाल किए जाते हैं। इससे ग्रेड का पता चलता है। उसके बाद ही ये कहा जाता है कि ये ट्यूमर किस स्तर का है और किस तरह से इसका इलाज किया जा सकता है।