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FVEY से पार पाना चीन के लिए होगा मुश्किल, दो अन्‍य देशों के साथ भारत हो सकता है शामिल

फाइव आई में यदि भारत जापान और दक्षिण कोरिया में शामिल हो गया तो चीन के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यह संगठन आपस में खुफिया जानकारियां साझा करता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 15 Dec 2019 05:09 PM (IST)Updated: Mon, 16 Dec 2019 08:31 AM (IST)
FVEY से पार पाना चीन के लिए होगा मुश्किल, दो अन्‍य देशों के साथ भारत हो सकता है शामिल
FVEY से पार पाना चीन के लिए होगा मुश्किल, दो अन्‍य देशों के साथ भारत हो सकता है शामिल

नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। एशिया और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की अहमियत को सभी देश बखूबी जानते हैं। लेकिन उसकी यही अहमियत भारत समेत दूसरे देशों के लिए समस्‍या बन चुकी है। भारत को यदि छोड़ दें तों दूसरे देश चीन के चंगुल में इस कदम फंस चुके हैं कि उनका इससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। चीन केवल इस क्षेत्र के देशों के लिए चुनौती नहीं बना हुआ है बल्कि दूसरे बड़े और शक्तिशाली देशों के लिए समस्‍या बना हुआ है। यही वजह है कि चीन को उसकी हद बताने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और ग्रेट ब्रिटेन एक गठबंधन बनाया है, जिसका नाम है फाइव 'आई' (Five Eyes- FVEY)। इस गठनबंधन में 'I'(आई) का अर्थ है इंटेलिजेंस। इस गठबंधन का मकसद चीन पर नजर रखना और उससे जुड़ी खुफिया जानकारियों को आपस में साझा करना है। चीन को रोकने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसपर नजर रखने के मकसद से अब अमेरिकी कांग्रेस समिति इस गठबंधन में भारत, जापान और दक्षिण कोरिया को शामिल करना चाहती है। 

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फाइव आई में शामिल होने के मायने

फाइव आई में इन तीन देशों को शामिल करने के अपने खास मायने हैं। एशिया में चीन की दादागिरी किसी से  छिपी नहीं रही है।  दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन अमेरिका, आस्‍ट्रेलिया समेत अन्‍य देशों के निशाने पर है। इसके अलावा वह बड़ी तेजी से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने पांव फैला रहा है। इस मंशा के तहत उसने दक्षिण एशियाई देशों को अपनी कर्ज नीति में फंसाया है। इसके तहत ही उसने अफ्रीका के जिबूती में अपना नया सैन्‍य अड्डा बनाया है। देश के बाहर उसका यह पहला सैन्‍य अड्डा है। यहां पर ही अमेरिका का भी सैन्‍य बेस मौजूद है। चीन की बढ़ती ताकत वर्तमान में पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यही वजह है कि फाइव आई में भारत, दक्षिण कोरिया और जापान को शामिल कर इसको मजबूती देने के साथ अमेरिका चीन को उसकी हद में रखना चाहता है। यदि ये तीनों देश इसमें शामिल हो जाते हैं तो इन्‍हें चीन से जुड़ी खुफिया जानकारियों को आपस में साझा करना होगा, जो चीन के कहीं न कहीं मुश्किलों को बढ़ाने वाला साबित जरूर होगा।  

तीन देशों को शामिल करने की सिफारिश 

सदन की स्थायी समिति के अध्यक्ष सांसद एडम स्चीफ ने प्रतिनिधि सभा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इन तीन देशों को इस गठबंधन में शामिल करने की सिफारिश करते हुए कहा है ये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और कानून का राज कायम करने के लिए जरूरी है। इसके लिए ओडीएनआई को साठ दिन का समय दिया गया । ओडीएनआई दरअसल, रक्षा मंत्री के तहत खुफिया मामलों की समिति है। कांग्रेस की खुफिया एवं रक्षा समितियों को कानून बनने या तीन देशों को इस गठबंधन में शामिल करने के साठ दिनों के अंदर सदस्‍य देशों को खुफिया जानकारियों का आदान-प्रदान करना होगा। रिपोर्ट में इस साझेदारी को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों को आगे बढ़ाने और बनाए रखने के लिए काफी अहम बताया गया है। 

कैसे सामने आया फाइव आई

फाइव आई या FVEY के तहत मौजूद सभी पांच देश UKUSA समझौते से बंधे हुए हैं। इसके तहत सभी खुफिया जानकारियों को साझा किया जाता है। जहां तक फाइव आई की शुरुआत की बात है तो आपको बता दें कि यह दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद अमेरिका और रूस में शुरू हुए शीत युद्ध (Cold War between US-Russia) के बाद सामने आया था। अमेरिका में आतंकी हमला होने के बाद उसके आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में उतरने के बाद इस गठबंधन के फैलाव की बात सामने आई थी। उस वक्‍त भी इस बात पर बल दिया गया था कि आतंक से लड़ाई में अपनी खुफिया जानकारियों को बढ़ाने के लिए इस गठबंधन में कुछ अन्‍य देशों को शामिल किया जाना चाहिए। अमेरिका के पूर्व एनएसए कांट्रेक्‍टर एडवार्ड स्‍नोडेन ने फाइव आई को सुपर नेशनल इंटेलिजेंस ऑर्गेनाइजेशन बताया था। 2013 में इससे जुड़े कुछ दस्‍तावेज भी लीक हुए थे। हालांकि फाइव आई के काम करने के ढंग पर कई बार सवाल खड़े हुए हैं। 

फ्रांस भी हो चुका है शामिल 

आपको यहां पर ये भी बता दें कि पहले फ्रांस को भी इस गठबंधन में शामिल कर इसको सिक्‍स आई का नाम दिया गया था। लेकिन, फ्रांस ने निजी हितों को ध्‍यान में रखकर इसमें डायरेक्‍टर सीआईए को शामिल न कर डायरेक्‍टर एनएसए को शामिल किया था। इसकी वजह से ये गठबंधन अपने हितों को साध नहीं सका और अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा ने फ्रांस को इससे बाहर कर दिया था। इस गठबंधन ने खाड़ी युद्ध और मध्‍य एशिया में बड़ी अहम भूमिका निभाई है। 

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