Move to Jagran APP

जानें धनी भारतीय मंदिरों में से एक पद्मनाभस्वामी मंदिर का विवाद, 11 साल पहले हुई थी शुरुआत

केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का मामला 2009 में शुरू हुआ था जिसमें शाही परिवार से राज्य सरकार को जिम्मेवारी हस्तांतरित करने की मांग की गई थी।

By Monika MinalEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 03:00 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 03:00 PM (IST)
जानें धनी भारतीय मंदिरों में से एक पद्मनाभस्वामी मंदिर का विवाद, 11 साल पहले हुई थी शुरुआत
जानें धनी भारतीय मंदिरों में से एक पद्मनाभस्वामी मंदिर का विवाद, 11 साल पहले हुई थी शुरुआत

नई दिल्ली, एजेंसियां। हजारों साल पहले केरल के तिरुअनंतपुरम में निर्मित पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का जिम्मा राज्य सरकार को सौंपने की बात हुई और वर्ष 2009 में हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई । यह मंदिर भारत के धनी मंदिरों में से एक है। श्री पद्मनाभस्वामी (Sree Padmanabhaswamy) के प्रबंधन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम फैसला सुनाया जिसके तहत मंदिर के प्रबंधन व देख-रेख की जिम्मेवारी त्रावणकोर शाही परिवार ( Travancore royal family) के हाथों में ही रहेगा।

loksabha election banner

हजारों साल पुराना है मंदिर

छठी शताब्दी में बनाया गया त्रावणकोर मंदिर का जिक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में है। त्रावणकोर के राजाओं द्वारा निर्मित इस मंदिर के लिए 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक यानि पद्मनाभ दास बताया जिसके बाद त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी संपत्ति और जीवन भगवान के नाम कर दी। 1947 तक त्रावणकोर के राजाओं ने यहां शासन किया। इसके बाद मंदिर की देख-रेख का जिम्मा शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट के हाथों में चला गया।

यहां के वॉल्ट में अकूत खजाना

ऐसा दावा है कि इस मंदिर के पास लगभग दो लाख करोड़ रुपये का अकूत खजाना है। 9 साल पहले जब मंदिर के तहखाने खोले गए थे, तब लाखों करोड़ के खजानों ने दुनिया को दंग कर दिया था।

11 साल पहले शुरू हुआ था कोर्ट का सिलसिला

वर्ष 2009: पूर्व IPS ऑफिसर टीपी सुंदरराजन (T P Sundarrajan) ने केरल हाई कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर कर मंदिर के नियंत्रण को शाही परिवार से राज्य सरकार के हाथों स्थानांतरण की अपील की।

31 जनवरी 2011: दो साल बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मंदिर का नियंत्रण सौंपने का आदेश दिया जिसके बाद शाही परिवार के महाराजा द्वारा किसी भी वॉल्ट (vault) के खोलने पर रोक लगा दी गई।

2 मई: इसी साल के मई महीने में शाही परिवार के अंतिम शासक के भाई उथाद्रम थिरुनल मार्तंड वर्मा ( Uthradam Thirunal Marthanda Varma) सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में मौजूद थे जिसमें हाई कोर्ट के निर्देशों पर अंतिरम रोक की मांग स्वीकार की गई। साथ ही पर्यवेक्षकों की एक टीम नियुक्त की गई और वॉल्ट में मौजूद कीमती सामानों व गहनों का विवरण तैयार करने का आदेश दिया गया।

8 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने वॉल्ट 'ए' और वॉल्ट 'बी' खोलने की प्रक्रिया को आगे के आदेश तक ठंडे बस्ते में डाल दिया।

21 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट ने मामले में राज्य की ओर से दी गई प्रतिक्रिया पर विचार किया। साथ ही खजाना, संरक्षण और सुरक्षा पर सलाह देने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यही पैनल पूरे मामले को देखेगी और यह विचार देगी कि वॉल्ट बी को खोलना आवश्यक है या नहीं।

22 सितंबर: विशेषज्ञ कमिटी के अंतरिम रिपोर्ट को देख सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए जिसमें कहा गया कि अन्य वॉल्ट में रखे सामानों के संरक्षण, रखरखाव, सुरक्षा, डॉक्यूमेंटेशन, वर्गीकरण आदि के बाद ही वॉल्ट बी को खोलने से संबंधित मामलों पर विचार किया जाएगा।

23 अगस्त 2012: कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम को एमिकस क्यूरी (कोर्ट की मदद करने वाला वकील ) के तौर पर नियुक्त किया।

6 दिसंबर 2013: उथाद्रम थिरुनल मार्तंड वर्मा का निधन हो गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में उनके पक्ष से कानूनी तौर पर उनके उत्तराधिकारियों ने उनकी जगह ली।

15 अप्रैल 2014: एमिकस क्यूरी की ओर से रिपोर्ट पेश किया गया।

24 अप्रैल: कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन के लिए डिस्ट्रिक्ट जज के नेतृत्व में एडमिनिस्ट्रेटिव कमिटी को नियुक्त किया।

अगस्त-सितंबर 2014: गोपाल सुब्रह्मण्यम ने सुप्रीम कोर्ट को एमिकस क्यूरी के पद से इस्तीफे के लिए पत्र के जरिए जानकारी दी। हालांकि बाद में अपने इस्तीफे को वापस ले लिया और सुप्रीम कोर्ट को दी जा रही मदद को जारी रखा।

नवंबर 2014: शाही परिवार ने एमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रह्मण्यम के रिपोर्ट पर सवाल उठाया और सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति दर्ज कराई।

27 नवंबर: एमिकस क्यूरी के कुछ सुझावों को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

4 जुलाई 2017: सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस केएसपी राधाकृष्णन को श्रीकोविल व अन्य कामों के लिए चयन समिति का चेयरमैन नियुक्त किया।

जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर के वॉल्ट में अकूत खजाने के दावे की जांच करेगा और इस क्रम में खजाने की सिक्योरिटी, अकाउंट की ऑडिटिंग के साथ ही मूर्तियों के मरम्मत के निर्देश दिए।

जनवरी-अप्रैल 2019: अंतिम सुनवाई के लिए जस्टिस यूयू ललित और इंदु मल्होत्रा की बेंच को मामला सौंप दिया गया।

10 अप्रैल: मामले में केरल हाई कोर्ट द्वारा 31 जनवरी 2011 को दिए गए फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को सुरक्षत रखा था।

13 जुलाई 2020: सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन में त्रावणकोर शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.