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जानिए, भारत में मानसून के दस्तक देने में क्यों हो रही है देरी

तरक्की के बाद भी भारतीय किसानों को मानसून का इंतजार रहता है। इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश की उम्मीद है।लेकिन तय समय सीमा में मानसून आने में देरी हो चुकी है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 06 Jun 2016 02:22 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jun 2016 04:55 PM (IST)
जानिए, भारत में मानसून के दस्तक देने में क्यों हो रही है देरी

नई दिल्ली। केरल के ऊपर दक्षिण पश्चिम मानसून की धीमी रफ्तार की वजह से कुछ दिन देरी से मॉनसून दस्तक दे सकता है। केरल के ऊपर मानसून के आगे बढ़ने की सामान्य तारीख एक जून है। यही तारीख देश में बारिश की औपचारिक शुरुआत भी मानी जाती है। इस साल मौसम विज्ञान विभाग ने 30 मई को मानसून केरल में आने का पूर्वानुमान जताया था। लेकिन मॉनसून में करीब एक हफ्ते की देरी हो चुकी है।

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अंडमान में तय समय से पहले पहुंचा था मानसून

निजी एजेंसी स्काईमेट के अनुसार मानसून सामान्य तारीख से तीन दिन पहले 16 मई को अंडमान निकोबार पहुंच गया था। लेकिन मानसून की गति धीमी हो चुकी है। 21 मई तक दक्षिण पश्चिम मानसून पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर से आगे बढ़ा और श्रीलंका के दक्षिणी हिस्सों तक पहुंचा, लेकिन यहां मानसून एक हफ्ते के लिए सुस्त पड़ गया। मौसम विज्ञान ने इसे देरी कहने से इनकार किया है और इतना जरूर कहा है कि उसकी गति धीमी है।

मौसम विभाग के पूर्वानुमान पर सवाल

मौसम विभाग का कहना है कि हमारे पूर्वानुमान के अनुसार चार दिन कम या ज्यादा हो सकते हैं । यह अवधि 27 मई से तीन जून तक होती है। मानसून में देरी के लिए किसी एक वजह को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। वायुमंडल में काफी जटिल प्रक्रिया होती है जिसकी वजह से मानसून के नियत समय में देरी होती है। मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसमें हवाएं एक निश्चित समय पर निश्चित दिशा में चलती हैं। मानसून में देरी के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जिसके जरिए हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर मानसून में देरी क्यों हो रही है।

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क्या है अल नीनो

अल नीनो को तापमान संक्रमण के तौर पर देखा जाता है। भूमध्य रेखा( इक्वेटर) के पास प्रशांत महासागर का पानी असमान्य तौर पर गर्म हो जाता है। वैज्ञानिक भाषा में अल निनो को अल निनो सदर्न ऑस्लिेशन (ENSO) कहा जाता है। अल नीनो सामान्य तौर पर गर्मियों में शुरू होता है और जाड़ों तक अपने उच्चतम स्तर पर रहता है। प्रशांत महासागर के ऊपर गर्म हवाएं वायुमंडल के संपर्क में आती हैं। जिसकी वजह से दुनिया के कुछ हिस्सों में भारी बारिश की वजह से बाढ़ आ जाती है। वहीं कुछ इलाकों में सूखा पड़ जाता है। अल नीनो का आगमन प्रत्येक तीन से सात साल के अंतराल पर होता है। अल नीनो को इस तरह से भी आसानी से समझा जा सकता है। गर्म हवाएं वृ्त्तीय पथ का अनुसरण करती हैं। इसका मतलब ये है कि अगर प्रशांत महासागर असमान्य तौर पर गर्म है तो गरम हवाएं ठंडे इलाकों में जाती हैं और वहां से नमी सोख कर फिर प्रशांत महासागर वाले इलाकों में पहुंच जाती हैैं। जिसकी वजह से ग्लोब के कुछ हिस्सों में ज्यादा बारिश हो जाती है। जबकि कुछ हिस्से सूखे की चपेट मेें आ जाते हैं।

अल नीनो और भारत

भारतीय मानसून का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया पर भी होता है। भारतीय मानसून एन्सो से सीधा जुड़ा है। गर्मियों के महीने में भारत के ज्यादातर हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड के ऊपर होता है। जबकि हिंद महासागर का पानी ठंडा रहता है। तापमान में इस परिवर्तन की वजह से गर्म हवाएं हिंद महासागर की तरफ से बहने लगती हैं जिसकी वजह से कुछ इलाकों में बाढ़ आ जाती है। वहीं कुछ इलाके बारिश से मरहूम रह जाते हैं।

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक 1880 से 2006 के दौरान 18 अल निनो साल रहे हैं। जिसकी खासियत ये रही कि ज्यादातर इलाकों में सूखा पड़ गया। पिछले दो साल से अल निनो की प्रभाव की वजह से भारत ने सूखे का सामना किया। लेकिन इस साल हालात अलग हैं। प्रशांत महासागर में अल निनो इस साल कमजोर पड़ चुका है।

अल नीनो के बाद ला निना

अल नीनो के बाद ला निना आता है। ऑस्ट्रेलियाई मौसम ब्यूरो के मुताबिक 1900 से रिकॉर्ड किए 26 अल निनो की घटनाओं के बाद पचास फीसद साल न्यूट्रल रहे जबकि 40 फीसद में ला निना का असर रहा। ऑस्ट्रेलियाई ब्यूरो के मुताबिक इस साल पचास फीसद ला निना की संभावना है। जिसमें सामान्य से ज्य़ादा बारिश की संभावना है।

मौसम के मिजाज पर टिकी हुई भारतीय खेती के लिए ये शुभ संकेत हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अच्छी बारिश से खेती बेहतर होती हैं। लोगों के हाथों में खर्च करने के लिए पैसे होते हैं। जिसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।


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