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जानें आखिर क्‍या है जस्टिस लोया की मौत का मामला, बार-बार बोतल से बाहर निकल आता है इसका जिन्‍न

जस्टिस लोया की मौत का मामला बार-बार किसी बोतल में बंद जिन्‍न की ही तरह बाहर आ जाता है। उनकी मौत दिसंबर 2014 को हुई थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 01:09 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jan 2020 01:09 PM (IST)
जानें आखिर क्‍या है जस्टिस लोया की मौत का मामला, बार-बार बोतल से बाहर निकल आता है इसका जिन्‍न
जानें आखिर क्‍या है जस्टिस लोया की मौत का मामला, बार-बार बोतल से बाहर निकल आता है इसका जिन्‍न

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। जस्टिस बृजमोहन हरकिशन लोया की मौत का मामला एक बार फिर से सुर्खियों में है। महाराष्‍ट्र के गृहमंत्री देशमुख ने यह कहते हुए मामले को जिंदा रखा है कि यदि इसमें पुख्‍ता साक्ष्‍यों के साथ कोई शिकायत मिली तो सरकार इसकी जांच दोबारा करवाने पर विचार कर सकती है। उनका कहना था कि इस मामले की दोबारा जांच को लेकर कुछ लोगों ने उनसे मुलाकात की थी। हालांकि उन्‍होंने इन लोगों की पहचान उजागर करने से साफ इनकार कर दिया था। 

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आपको यहां पर बता दें कि दिसंबर 2014 में जस्टिस लोया की मौत नागपुर में हुई थी। उस वक्‍त वह अपने एक सहकर्मी की शादी में गए हुए थे। इसी दौरान वह बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे। उनकी मौत पर सबसे पहले एक मैग्‍जीन ने सवाल उठाते हुए इसको संदिग्‍ध बताया था, जिसके बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी भी हुई। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने भी इस मामले को उठाया था। हालांकि जस्टिस लोया के बेटे अनुज ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की थी। उनका कहना था कि उनके पिता की मौत पूरी तरह से प्राकृतिक थी। 

जस्टिस लोया की मौत पर सवाल उठने की सबसे बड़ी वजह सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्‍नी कौसर बी मुठभेड़ मामले तत्‍कालीन राज्‍य सरकार की भूमिका पर उठे सवाल थे। यह मुठभेड़ 26 नवंबर 2005 को गुजरात में हुई थी। इस मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए सोहराबुद्दीन के भाई ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने ही इस मामले की सुनवाई गुजरात के बाहर करवाने की बात कही थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़ी सभी फाइलों को महाराष्‍ट्र ट्रांसफर करने के आदेश दिए थे। इस मामले की सुनवाई पहले जस्टिस उत्‍पत कर रहे थे। उन्‍होंने मामले में अमित शाह के कोर्ट में मौजूद न रहने पर कड़ी नाराजगी जाहिर की थी, जिसके बाद उन्‍हें ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद ही यह मामला जस्टिस लोया के समक्ष आया था।सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के ठीक एक माह बाद 26 दिसंबर 2005 को इस मामले के प्रमुख गवाह तुलसीराम की भी मौत हो गई थी। 

अपनी मौत से उन्‍होंने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में 15 दिसंबर 2014 को फैसला सुनाने की भी बात कोर्ट में कही थी। जस्टिस लोया 30 नवंबर 2014 को अपने एक सहकर्मी की शादी में नागपुर गए थे। वह यहां पर राज्‍य सरकार के गेस्‍ट हाउस में रुके थे। 1 दिसंबर को तड़के करीब 4 बजे उन्‍होंने सीने में दर्द होने की शिकायत की थी, जिसके बाद उन्‍हें अस्‍पताल ले जाया गया था। सुबह करीब 6:15 बजे उनका निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को लातूर ले जाया गया गया। शुरुआत में लोया के परिजनों ने उनके कपड़ों पर खून के धब्‍बे होने की बात कही थी। वहीं उनका पोस्‍ट मार्टम करने वाले एक्‍सपर्ट इस बात से सहमत नहीं थे कि ये पोस्‍ट मार्टम के दौरान लगे थे।  

उनके निधन के बाद इस मामले की सुनवाई जस्टिस एसजे शर्मा ने की थी। 21 दिसंबर 2018 इस मामले में सभी 22 आरोपियों  को बरी करते हुए कहा था कि सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच सोची समझी रणनीति के तहत नेताओं को फंसाने के लिए की गई थी। गौरतलब है 19 अप्रैल 2018 को इस मामले की दोबारा जांच करवाने से संबंधित एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने आधारहीन मानते हुए खारिज कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि यह केवल न्‍यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश है। 


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