शारदीय नवरात्र : अमोघ फलदायिनी है दुर्गा मां का आठवां स्वरूप 'महागौरी'
शंकर जी द्वारा गंगाजल से इनका तन धोए जाने से वह गौर व दैदीप्यमान हो गया और वे महागौरी के नाम से विख्यात हुईं।
[पं अजय कुमार द्विवेदी]। मां दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी हैं। शास्त्रों में इनकी अवस्था आठ वर्ष की मानी गई है - अष्टवर्षा भवेद् गौरी। इनका वर्ण शंख के समान अत्यंत उज्ज्वल है। इनकी चार भुजाएं हैं। वृषभवाहिनी मां शांतिस्वरूपा हैं। नारद-पांचरात्र के अनुसार, शंकर जी की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करते हुए गौरी का शरीर धूल-मिट्टी से मलिन हो गया था। शंकर जी द्वारा गंगाजल से इनका तन धोए जाने से वह गौर व दैदीप्यमान हो गया और वे महागौरी के नाम से विख्यात हुईं।
स्वरूप का ध्यान
मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमारे मनोमालिन्य को हमारे जीवन से दूर कर देता है और हमारे भीतर शुचिता, धैर्य व शांति का विकास करता है। हमारे भीतर विनम्रता व सौम्यता का विकास करता है और हमें दिव्य व संस्कारमय जीवन जीने का संदेश प्रदान करता है। मां का ध्यान हमारी मेधा को श्रेष्ठ कर्र्मों में प्रवृत्त करके हमारे दुर्गुणों का शमन करने की शक्ति प्रदान करता है। हमारे आलस्य व अविवेक का नाश कर हमें सद्ज्ञान की अनुभूति कराता है।
आज का विचार
हमारी आत्मा मूल रूप से निर्दोष होती है। उस पर चढ़ी दुर्गुणों की परत हटाने के लिए हमें अपने सद्गुणों के जल से उसका प्रच्छालन करना होगा।
ध्यान मंत्र
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबरधरा
शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।