अपने ही देश में शरणार्थी बनी ब्रू जनजाति, 23 साल बाद भी नहीं है ठौर-ठिकाना, जानें इनके बारे में सबकुछ
भारत के उत्तर पूर्वी राज्य की एक जनजाति ऐसी है जो अपने ही देश में शरणार्थी बन कर रह गई है। ये है ब्रू जनजाति। वर्षों से अपनी पहचान खोज रही ये जनजाति के लोगों को आज भी ठोर ठिकाने की तलाश है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सेवन सिस्टर्स कहलाने वाले पूर्वोत्तर के सात राज्यों में एक त्रिपुरा में इन दिनों ब्रू शरणार्थियों को बसाने को लेकर घमासान मचा हुआ है। सरकार इन्हें स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाने जा रही है। इसके विरोध में स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए हैं। आंदोलन दिन ब दिन उग्र होता जा रहा है। लोगों ने वाहन जलाने शुरू कर दिए हैं। पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़ रहे हैं। ब्रू जनजाति के बमुश्किल 30000-32000 शरणार्थी हैं। ये लोग भारत के ही मूल निवासी हैं। इतनी कम संख्या के बावजूद स्थानीय लोगों का विरोध क्यों है? कौन इनके पक्ष में हैं और कौन विरोध में। आइए समझते हैं इस रिपोर्ट के जरिये..
त्रिपुरा के डोबुरी गांव में बसाना चाहती है: ब्रू जनजाति के मूल रूप से मिजोरम के आदिवासी हैं। 1996 में हुई हिंसा के बाद इन्होंने त्रिपुरा के कंचनपुरा ब्लाक के डोबुरी गांव में शरण लिया था। दो दशक से ज्यादा समय से यहां रहने और अधिकारों की लड़ाई लड़ने के बाद इन्हें यहीं बसाने पर समझौता हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और ब्रू शरणाíथयों के प्रतिनिधियों ने इस साल जनवरी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा की मौजूदगी में दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। जनवरी में 600 करोड़ रुपए का पुनर्वास योजना पैकेज जारी करने का ऐलान किया गया। इससे पहले 2018 में भी केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव और मिजोरम के तात्कालीन मुख्यमंत्री ललथनहवला के बीच भी समझौता हुआ था, पर अमल नहीं हुआ।
ब्रू रियांग और बहुसंख्यक मिजो के बीच दंगा: ब्रू जनजाति मूल रूप से मिजोरम के रहने वाले हैं। इनमें से ज्यादातर परिवार मामित और कोलासिब जिले में ही बसे थे 1996 में ब्रू रियांग और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के बीच सांप्रदायिक दंगा हो गया। हिंसक झड़प के बाद 1997 में हजारों लोग भाग कर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा के शिविरों में पहुंच गए थे। इस विवाद में ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट (बीएनएलएफ) और राजनीतिक संगठन ब्रू नेशनल यूनियन (बीएनयू) उभरकर सामने आए। एक ओर ये अलग जिले की मांग कर रहे थे। वहीं मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू समुदाय के लोगों की चुनावों में भागीदारी का विरोध किया। उनका कहना है ब्रू मिजोरम के मूल निवासी नहीं हैं।
माहौल और आबादी का संतुलन बिगड़ने की आशंका
ब्रू जनजाति को त्रिपुरा में बसाए जाने का विरोध कर रहे नागरिक सुरक्षा और मिजो कन्वेंशन ने जाइंट एक्शन कमेटी (जेएससी)बनाई है। इसके चेअरमैन डॉ. जाएकेमथियामा पछुआ ने स्थानीय मीडिया सेकहा है कि स्थानीय प्रशासन ने पहले भरोसा दिया था कि महज डेढ़ हजार ब्रू परिवारों को ही यहां बसाया जाएगा लेकिन अब छह हजार परिवारों को बसाने की योजना बनाई जा रही है। इससे माहौल और आबादी का संतुलन बिगड़ेगा। इधर, जिला प्रशासन का कहना है शरणाíथयों के लिए 15 अलग-अलग जगह चिन्हित किए गए हैं।
प्लॉट, राशन के साथ अब जाति प्रमाण की मांग
समझौते के तहत सरकार ने 40 बाय 30 फीट का प्लॉट, 4 लाख की एफडी, दो साल तक हर महीने 5000 रुपये और दो साल तक राशन व मकान बनाने के लिए 5 लाख रुपये देने का वादा किया है। शरणार्थियों के संगठन मिजोरम ब्रू डिस्प्लेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) ने हाल में स्थायी नागरिक और अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र देने की भी मांग उठाई है।
सिर्फ 51 मिजोरम लौटे: पहले इन्हें मिजोरम भेजने की कोशिश की गई थी। रोजगार और आवास की घोषणाओं के बाद भी 2019 में सिर्फ 51 लोग ही लौटे थे।
रियांग भाषा में ब्रू का अर्थ होता है मानव
ब्रू समुदाय मिजोरम का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी समूह है। यह म्यांमार के शान प्रांत के पहाड़ी इलाके के मूल निवासी हैं जो कुछ सदियों पहले म्यांमार से आकर मिजोरम में बसे थे। इनकी बोली रियांग है, जो तिब्बत-म्यांमार की कोकबोरोक भाषा से मिलती जुलती है। रियांग में ब्रू का अर्थ होता है मानव। इन्हें रियांग भी कहा जाता है।
- चेंचू, बोडो, गरबा, असुर, कोतवाल, बैगा, बोंदो, मारम नागा, सौरा जैसे जिन 75 जनजातीय समूहों को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के रूप में वर्गीकृत किया है, रियांग उनमें से एक हैं।
- यह जनजाति 18 राज्यों और अण्डमान, निकोबार द्वीप समूह में फैले हैं।
- त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा इस जनजाति के सदस्य असम और मणिपुर में भी रहते हैं।
- मिजोरम की बहुसंख्यक जनजाति मिजो इन्हें बाहरी कहते हैं। इस विरोध के चलते ही विरोध हुआ था।
- मूल रूप से खेती और बुनाई पर आश्रित हैं। महिलाएं पारंपरिक परिधान ही बुनती हैं।