Importance Of Self-Talk: जब डगमगाए भरोसे की नाव तो थाम लें ‘सेल्फ टॉक’ की पतवार?
Importance Of Self-Talk अधिकांश ‘सेल्फ टॉक’ बड़े तार्किक होते हैं। जैसे ‘मैंने तो तैयारी की है तो कैसा डर’‘मुझे आगे बढ़कर समस्या को ठीक से समझने उससे निपटने का पूरा भरोसा है इसलिए डरने की बात नहीं’ आदि।
नई दिल्ली, सीमा झा। हर तरफ अफरातफरी है। अचानक इतनी बड़ी आपदा से सन्न हैं लोग। रोजाना सुबह से शाम तक मन पर है दहशत का साया। कभी भी, किसी भी वक्त बुरी खबर आ जाएगी,इस तरह का डर त्रस्त किए हुए है। 'कहीं मुझे तो नहीं होगा कोरोना, कुछ अनहोनी हो गई तो क्या होगा, मेरे बच्चे को,मेरे अपने तो इसके शिकार नहीं हो जाएंगे?' डराते हैं ये सवाल। हालांकि इस समय यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। पर मनोचिकित्सकों केमुताबिक, ऐसी स्थिति जब लगातार बनी रहेगी तो समस्या सचमुच आने पर उससे ठीक से नहीं निपट पाएंगे। अहमदाबाद के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर स्पंदन ठाकुर के मुताबिक, इस समय उनके पास ऐसे ही मरीज आ रहे हैं,जो खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। बुरे ख्याल परेशान करते हैं और दहशत का साया उन्हें सामान्य नहीं रहने देता। डॉक्टर स्पंदन कहते हैं, ‘ लोगों ने पहले भी इस तरह की स्थिति को देखा है यानी डर पहले भी था। लेकिन इन दिनों यानी कोरेाना की दूसरी लहर में स्थिति बिलकुल अलग है।डर अधिक वास्तविक है और इसका आधार भी है।‘
स्पंदन ठाकुर के मुताबिक, यह हमेशा ध्यान रखें हर संकट दूसरे से बिलकुल अलग होता है। यदि आप उस अनुरूप विचार व व्यवहार प्रणाली नहीं बनाएंगे तो स्थिति आपके लिए और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। आप आने वाले समय के लिए खुद को बेहतर तैयार नहीं कर पाएंगे।’ऐसे में सवाल उठता है कि क्या करें? यहां गुड़गांव की मनोचित्सक व एनर्जी हीलर डॉक्टर चांदनी टग्नैत ‘सेल्फटॉक’ को बेहद कारगर मानती हैं। उनके अनुसार, ‘दिमाग को आप जिस भाषा में समझाएंगे वह उसी अनुरूप प्रतिक्रिया देगा। आप कहेंगेकि मैं तो बुरी डरा हुआ हूं और अब कुछ नहीं कर सकता तो दिमाग उसी तरह से, उसी ऊर्जा से जैसे आप उसे कहते हैं, आपकी बातों को ग्रहण करेगा। वहीं, यदि आप यह कहेगे कि चलो ठीक है, समस्या है, तो इसे सुलझाना भी हमें ही है तो दिमाग यहीसमझेगा और आपके व्यवहार में भी वही बात दिखेगी।’
क्या है सेल्फ टॉक?
हम लगातार खुद से बात करते हैं। यह हमारा स्वभाव है। परिस्थिति अनुकूल नहीं हो तो नकारात्मक ‘सेल्फ टॉक’ सामान्य बात है। डॉक्टर स्पंदन ठाकुर यहां कहते हैं, ‘हमारे दिमाग में ऐसी प्रणाली होती है कि वह आप जो खुद से कहते हैं दिमाग उनसे मिलाकर एक चित्र तैयार करता रहता है। इसके बाद आप दिमाग के द्वारा बनाई तस्वीर को देखते हैं और प्रतिक्रिया करते हैं। आपके शब्द इसमें यानी चित्र बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं यानी आप जो शब्द उपयोग करते हैं, दिमाग उसकी तस्वीर तैयार करता है।‘ यह दरअसल, हमारी यानी अंदरुनी आवाज होती है जिसे मनोवैज्ञानिकों ने ‘सेल्फ टॉक’ नाम दिया है। इसमें हमारे चेतन और अचेतन के वे विचार भी शामिल होते हैं जो अनजाने ही हमारे व्यवहार में शामिल हैं। अधिकांश ‘सेल्फ टॉक’ बड़े तार्किक होते हैं। जैसे, ‘मैंने तो तैयारी की है तो कैसा डर’,‘मुझे आगे बढ़कर समस्या को ठीक से समझने, उससे निपटने का पूरा भरोसा है, इसलिए डरने की बात नहीं’ आदि। पर कुछ सेल्फ टॉक नकारात्मक होते हैं जैसे, ‘मैं बुरी तरह से फंसने वाला हूं, अब कुछ उपाय नहीं, मैंने अच्छी कोशिश नहीं की है, मैंने आशा खो दी है अब आदि।
नकारात्मक विचारों को ऐसे दें चुनौती?
डॉक्टर स्पंदन मानते हैं कि मन में नकारात्मक विचारों की तरफ आसानी से बढ़ जाना सामान्य है। पर ऐसा अक्सर तब होता है जब आप किसी चीज को या घटना को नकारात्मक तरीके से व्याख्या करते हैं। जैसे, वैक्सीन की जो बड़ी भारी बर्बादी हुई वहां लोगों ने खुद को बार बार कहा होगा कि यह नुकसान देह है। यह अक्सर तब होता है जब आप एंजायटी या अवसाद की स्थिति में हों। इसलिए अपने साथ किन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, किस तरह की भाषा प्रयोग करते हैं,उन पर आपका पैनी नजर रखना जरूरी है। डॉक्टर चांदनी टग्नैत के मुताबिक,यह आपके हाथ में हैं कि आप क्या चुनते हैं। आपको तो जरूर सकारात्मक शब्दों का ही चुनाव करना चाहिए और यदि ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो निश्चित रूप् से इसके लिए अभ्यास की जरूरत है। यानी अपनीदिनचर्या में खुद से बात करने का समय निकालें। ध्यान दें अपने विचारों पर वह कैसे आपको या आपकी प्रतिक्रिया को बदलता है। आप ऐसा लगातार करतेहैं पर जब सप्रयास ऐसा करते हैं तो आप समझ पाएंगे कि ‘सेल्फटॉक’ कैसे आपकी मदद कर सकता है। खासकर तब जब आप दहशत में होंऔर चीजें सही सही समझ न आ रही हों। हां, यदि आपको लगता है कियह सब आसान नहीं तो आप विशेषज्ञ या काउंसलर की मदद जरूर ले सकते हैं। याद रहे,संकट की घड़ी में आगे बढ़कर औरों की मदद करना अच्छा है। यह आपको सुकूनदेता है, हौसला बढ़ाना अच्छा लेकिन पर यह तब हो सकेगा जब खुद अपने दहशत से बाहर निकल सकें और इसके लिए प्रयास करें। ‘सेल्फ टॉक’ इसमें काफी कारगर है।