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जानें जवानों ने कैसे तय समय में पूरा किया Operation Hot Pursuit और तय हुई सुरक्षित घर वापसी

मणिपुर में जवानों पर हुए हमले से हर कोई आहत था। अब वक्‍त था एनएससीएन के उग्रवादियों से बदला लेने का। इसके लिए शुरू हुआ था ऑपरेशन हॉट परस्‍यूट।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 09 Jun 2020 01:12 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jun 2020 01:35 PM (IST)
जानें जवानों ने कैसे तय समय में पूरा किया Operation Hot Pursuit और तय हुई सुरक्षित घर वापसी
जानें जवानों ने कैसे तय समय में पूरा किया Operation Hot Pursuit और तय हुई सुरक्षित घर वापसी

नई दिल्‍ली। ऑपरेशन हॉट परस्‍यूट को तय समय में पूरा करना जरूरी था। ऐसा न होने पर स्‍पेशल एसएफ के कमांडोज बड़ी मुश्किल में घिर सकते थे। उन्‍हें अपने बहादुर जवानों की शहादत का बदला लेना था। हर एक बीप उनकी सलामती की जानकारी चीफ तक पहुंचा रही थी। एनएससीएन-के ने जो 18 जवानों को शहीद किया था उनके घरवालों को भी इंतजार था उसी दिन का जब उनके हत्‍यारों से बदला लिया जाए। उनका ये इंतजार 8-9 जून को आखिरकार खत्‍म हो ही गया था।

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हाई अलर्ट पर सीमा पर खुफिया विभाग

योजना के मुताबिक खुफिया विभाग ने अपने सभी एजेंटों को सीमा पर सतर्क कर दिया था। हर व्‍यक्ति पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। हर जानकारी को केंद्र के साथ साझा किया जा रहा था। पीएम की तरफ से 7 जून 2015 को इस अंतिम ऑपरेशन को मंजूरी दे दी गई। जिन जवानों को इस ऑपरेशन के लिए चुना गया था उनमें से कई यूएन मिशन पर जाने वाले थे। लेकिन उन्‍हें दिल्‍ली इस ऑपरेशन के लिए दिल्‍ली से मणिपुर भेजा गया। जवानों से उनके मोबाइल फोन ले लिए गए और अब वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कट चुके थे। उनका केवल एक ही लक्ष्‍य था एनएससीएन-खापलांग के उग्रवादियों का खात्‍मा।

50 किमी का पैदल सफर 

इसके साथ ही चुने गए पैरा एसएफ के कमांडोज ने मॉक ड्रिल की और अभ्‍यास भी शुरू हो गया था। हर उन बारीक चीजों पर गौर किया गया जो ऑपरेशन के दौरान परेशानी खड़ी कर जवानों के लिए खतरा बन सकती थीं। केंद्र से हरी झंडी मिलते ही जवानों को बिहार रेजिमेंट की पोशाक में इंफाल से निकला और इसको सेना की गाडि़यों से भारतीय सीमा की आखिरी चौकी तक ले जाया गया। ये रास्‍ता नौ घंटों का था। इन जवनों को नगा हिल्‍स के पास उतारा गया था। जवानों को टारगेट से 50 किमी पहले ही उतारा गया था। यहां से जवानों को 24 घंटे के अंदर पैदल ही घने जंगलों से होकर अपने मुकाम तक पहुंचना था। उन्‍हें ये ध्‍यान रखना था कि वे किसी की भी नजर में न आ सकें।

जवानों के पास था बेहद वजनी बैग 

इन जवानों के पास ग्रेनेड, नाइट विजन डिवाइस, ट्रेवोर राइफल, माउंटेड डिवाइस से लेकर रॉकेट लॉन्चर समेत भारी भरकम 35 किग्रा भारी बैग्‍स भी थे। दुश्‍मन के कैंप करीब दो किमी की दूरी में फैले थे। यहां पर करीब 250-300 उग्रवादियों के मौजूद होने की जानकारी मिली थी। जवानों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए ऐसे रास्‍ते का चयन किया था जो बेहद सघन था और चुनौतियों से भरा था। 16 किमी की दूरी तय कर ये जवान भारतीय सीमा के आखिरी गांव तक पहुंचे और फिर सीमा के पार निकल पड़े।

सिर्फ एक बीप का सिग्‍नल 

यहां से आगे रेडियो कम्‍यूनिकेशन करना जोखिम भरा था। इसलिए इसको बंद कर दिया गया था। अब जवानों को अपनी सूचना देने के लिए कुछ घंटों में केवल एक बीप का सिग्‍नल भेजना था। ये सिग्‍नल जनरल रावत को मिलता था। इससे उन्‍हें पता चलता था कि सब ठीक है। दोपहर तक ये जवान भारत और म्‍यांमार को अलग करने वाली नाम्‍याडंग नदी तक पहुंच चुके थे। जंगल से गुजरते समय उन्‍हें स्‍थानीय लोगों का एक शिकारी ग्रुप मिला जिससे उन्‍होंने आगे जाने के लिए मदद ली। हालांकि वे जानते थे कि यहां पर हर तरफ उग्रवादियों के मुखबिर मौजूद हैं और ये सौदा घातक हो सकता है। लेकिन वे हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार थे। इस ग्रुप ने उन्‍हें एक तय सीमा तक छोड़ दिया था। इसके बाद आगे का रास्‍ता इन जवानों ने खुद ही शुरू किया। कुछ ही घंटों के बाद ये जवान अपने तय लक्ष्‍य के सामने पहुंच चुके थे। यहां के बाद इन्‍हें सही समय का इंतजार करना था।

'ऑपरेशन ओवर सर' 

जवानों ने पूरे इलाके का निरीक्षण किया और ये पता लगाया कि कहां पर उग्रवादियों की सुरक्षाचौकी, उनका सामान वगैरह मौजूद है। अंधेरा होते ही अचानक उग्रवादियों ने उसी तरफ गोलियां चलानी शुरू कर दी जहां पर जवानों की मौजूदगी थी। लेकिन कमांडर ने सभी को सुरक्षित बने रहने और कोई हरकत न करने का आदेश दिया था। घंटों तक गोलियां चलती रहीं। जब ये गोलियां खामोश हुईं और उग्रवादियों को इस बात का विश्‍वास हो गया कि कोई नहीं है तो वो चिंता मुक्‍त हो गए। पैरा एसएफ के लिए यही सबसे सही समय था। कमांडर के आदेश के साथ ही जवानों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इससे पहले की उग्रवादी संभल पाते जवानों को ढ़ेर कर दिया गया। ऑपरेशन को जल्‍द खत्‍म करने और सुरक्षित निकलने में समय कम रह गया था।

तय समय में मिशन पूरा और घर वापसी 

इस तय समय के दौरान ज्‍यादा से ज्‍यादा उग्रवादियों को ढ़ेर कर दिया गया। कैंपों को तबाह कर दिया गया। जवानों की वापसी के रास्‍ते पर मौजूद उग्रवादियों को खत्‍म कर दिया गया। अब जवानों को तेजी से बाहर निकलकर अपनी सीमा में वापस आना था। जवानों के पास समय कम था, लेकिन उन्‍होंने पूरी एहतियात के साथ इस काम को अंजाम दिया। भारतीय सीमा के करीब पहुंचते ही कमांडर ने अपना रेडियो चालू कर जनरल रावत को ऑपरेशनओवर होने की जानकारी दी। इसके साथ ही अगले दिन देश के हर अखबार की ये पहली खबर बनी थी। ऑपरेशन हॉट परस्‍यूट में 150 से अधिक उग्रवादी मारे गए थे और उनके हथियारों और गोला बारूद तबाह हो चुके थे। पैरा एसएफ के जवान सुरक्षित वापस आ चुके थे।

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