चीन से भारत के कारोबार को लेकर जानें क्या कहती है एक्वाइट रेटिंग की रिपोर्ट
जनमानस की भावना और देश के कोरोबारी ढांचे को देखते हुए चीन को कैसे पीछे धकेल कर अपने से सफलतापूर्वक दूर किया जाए। वर्तमान में यही सबसे बड़ा सवाल है।
नई दिल्ली। सही बात है। 'धीरे-धीरे रे मना, धीरे सबकुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय'। कुछ काम धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से करने के बाद ही प्रभावी नतीजा देते हैं। द्विपक्षीय कारोबार में मिली चीनी बढ़त को हम ऐसे ही धीरे-धीरे घटत में बदलकर तमाम क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो सकते हैं। इसी संदर्भ में एक्वाइट रेटिंग्स का एक अध्ययन बताता है कि वित्तीय वर्ष 2022 तक हम चीन से 8.4 अरब डालर का अपना आयात घटा सकते हैं। आयात की जाने वाली उन चीजों का विकल्प देश के भीतर ही तैयार किया जा सकता है। पेश है एक नजर:
पटेगा 17.3 फीसद कारोबारी घाटा
एक्वाइट रेटिंग्स के अध्ययन के अनुसार वित्त वर्ष 2022 तक भारत चीन से केमिकल, ऑटोमोटिव कंपोनेंट, बाइसाइकिल पाट्र्स, एग्रो आधारित आइटम, हैंडीक्राफ्ट्स, ड्रग फार्मुलेशंस, कास्मेटिक्स, कंज्युमर इलेक्ट्रानिक्स और चमड़े के सामानों के आयात से स्वदेशी विकल्पों के द्वारा मुक्ति पा सकता है। इस तरीके से 2022 तक भारत आसानी से चीन से 8.4 अरब डालर का अपना कारोबारी घाटा पाट सकता है। यह द्विपक्षीय कारोबार घाटे का 17.3 फीसद होगा।
40 उप-क्षेत्रों में काफी संभावना
चीन से आयात किए जाने वाले वर्तमान सामानों के विश्लेषण से अध्ययन में सामने आया कि भारत के 40 उप क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें चीनी आयात पर निर्भरता को कम करने की अपार संभावनाएं हैं। इन क्षेत्रों की चीनी आयात में हिस्सेदारी 33.6 अरब डालर है। इन क्षेत्रों द्वारा किए जाने वाले आयात का एक चौथाई का घरेलू मैक्युफैक्चरिंग में बिना खास निवेश के विकल्प तलाशा जा सकता है।
जीडीपी में 0.3 फीसद बचत
अगर भारत इन चालीस उपक्षेत्रों के आयात का घरेलू विकल्प तलाशता है तो इससे चीन को जाने वाली रकम बचेगी जो देश की जीडीपी का 0.3 फीसद होगी। इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभावी असर होगा। इससे न केवल घरेलू कंपनियों के राजस्व में वृद्धि होगी, बल्कि इससे फारवर्ड और बैकवर्ड जुड़े उद्योगों पर भी सकारात्मक असर दिखेगा। लागत प्रतिस्पर्धी होगी और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी।
व्यापार घाटे की चौड़ी खाई
वित्त वर्ष 2020 में चीन से भारत का कुल आयात 65.1 अरब डॉलर रहा और निर्यात 16.6 अरब डॉलर किया गया। इसके चलते कारोबारी घाटा 48.5 अरब डॉलर है। भारत के कारोबारी घाटे में समग्र रूप से 30 फीसद हिस्सेदारी चीन से आयात की है। बीते तीन दशक के दौरान भारत के चीन निर्यात की सालाना वृद्धि 30 फीसद रही जबकि आयात 47 फीसद की दर से बढ़ा है।
सुविचारित हो रणनीति
अध्ययन के अनुसार भारत उन क्षेत्रों का आयात एकदम से कम कर सकता है जिसका वह खुद बड़ा मैन्युफैक्चरर रहा है। जैसे रसायन के क्षेत्र में भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा निर्माता देश है। इसी तरह फार्मास्यूटिकल्स उद्योग बड़े पैमाने पर ड्रग्स (एपीआइ) और अन्य कच्चे माल का आयात करता है। इस उद्योग द्वारा आयात का मूल्य 2.6 अरब डॉलर सालाना है। इसी तरह बाइसाइकिल और उसके पुर्जे 10 करोड़ डॉलर के आयात किए जाते हैं।