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International Day of Disabled Persons: दिव्यांगता को नहीं बनने दिया राह का रोड़ा, इनके जज्बे को आप भी करेंगे सलाम

अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के मौके पर जाने कुछ ऐसे जाबाजों की कहानी जिन्होंने दिव्यांगता को अपना रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 10:54 AM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 11:33 AM (IST)
International Day of Disabled Persons: दिव्यांगता को नहीं बनने दिया राह का रोड़ा, इनके जज्बे को आप भी करेंगे सलाम
International Day of Disabled Persons: दिव्यांगता को नहीं बनने दिया राह का रोड़ा, इनके जज्बे को आप भी करेंगे सलाम

नई दिल्ली, एजेंसी। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (International Day of Disabled Persons) विश्वभर में 3 दिसंबर 2013 को मनाया जाता है। यह दिवस शारीरिक रूप से अक्षम लोगो को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए मनाया जाता है। साथ ही इस दिन को इस कारण भी मनाया जाता है ताकि, दिव्यागों के प्रति लोगों का व्यवहार में बदलाव किया जा सके। उनके अधिकारों के प्रति जागरुकता लाई जा सके। आज इस मौके पर हम आपको कुछ ऐसे जाबाजों की कहनी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को अपने रास्ते में नहीं आने दिया और समाज में नई मिसाल पेश की। 

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दुनिया के मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर बने निक

पूरी दुनिया में मोटिवेशनल स्पीकर निक को कौन नहीं जानता। निक की कहानी एक मिसाल है जो लाखों लोगों को जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। जन्म से ही निक के ना को पैर हैं और ना ही हाथ। उनका जन्म ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में हुआ था। दरअसल, निक टेट्रा-एमेलिया सिंड्रोम नाम की दुर्लभ जन्मजात बीमारी से ग्रस्त थे। निक को छोटे से छोटे काम के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी। हालांकि, इन सभी से जूझते हुए आज निक दुनिया में एक जाना पहचाना मान बन गया है।

 

रोजाना का काम करने के साथ ही निक स्विमिंग, पानी की सतह पर सर्फिंग से लेकर स्काई डाइविंग तक करते हैं। दस साल की उम्र में उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। इसके बाद 17 साल की उम्र में हाई  स्कूल में सफाई करने वाले इंचार्ज ने उन्हें बहुत प्रेरित किया और उन्हें मोटिवेशनल स्पीकर बनने की सलाह दी।

स्पर्श के शरीर में 135 फ्रैक्चर , लोगों को सिखा रहे जिंदगी जिने का तरीका

स्पर्श का जन्म होने के बाद छह महीने तक उसके माता पिता को उसे गोद में लेने का इंतजार करना पड़ा क्योंकि, उसके शरीर में 40 फ्रैक्चर थे। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था कि ये बच्चा दो दिन से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाएगा। लेकिन, स्पर्श आज ना सिर्फ जिंदा है बल्कि, दूसरों के लिए एक मिसाल भी बन गया है। स्पर्श 15 साल के है और उनके शरीर में करीब 135 फ्रैक्चर हो चुके हैं।

  

इतना ही नहीं 8 से 9 सर्जरी भी हुई है। स्पर्श मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ ही म्यूजिक कंपोज करते हैं साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। वह 6 देशों में 125 लाइव लाइव परफॉर्मेंस दे चुके हैं साथ ही कुल 7 सिंगिंग कॉम्पिटिशन जीत चुके हैं। 

जन्म से दिव्यांग फिर भी अपने परिवार का पेट भर रहे आशीष 

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर के रहने वाले आशीष जन्म से ही दिव्यांग है। जन्म होने के बाद से ही ना तो उनके हाथ थे और ना ही पैर,  इसके बाद भी वह आम लोगों की तरह सारे काम करते हैं। वह कंप्यूटर, मोबाइल और यहां तक के स्कूटी भी चलाते हैं।

  

आशीष बलरामपुर में शंकरगढ़ पंचायत कार्यालय में एक कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप करते हैं। आशीष ने बताया कि अपने परिवार के लिए वह अकेले ही है जो पैसे कमाते हैं। आशीष पढ़ाई के साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं। आशीष ने अपनी 10वीं कक्षा का परीक्षा पास कर ली हैं और महीनें के 10 हजार रुपये कमाते हैं। 

मेहनत और लगने से दिव्यांगता को दी मात 

छत्तीसगढ़ के ही बलौदा बाजार के एक छोटे से गांव में नरेंद्र कुमार बंजारे का जन्म हुआ था। अपनी मेहनत और लगन से नरेंद्र कुमार बंजारे ने दिव्यांता को मात दी। उन्होंने बताया कि 11वीं कक्षा में वह गणित पढ़ना चाहते थे, लेकिन, दिव्यांता के कारण उन्हें गणित नहीं दिया जा रहा था। लेकिन, उनकी जीद थी कि वह गणित ही पढ़ेंगे। आखिरकार उन्हें इनका सब्जेक्ट मिला।

इतना ही नहीं नरेंद्र ने बिलासपुर से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है। हालात ऐसे भी हुआ की नरेंद्र ने उनके सामने हार मान लीं उन्होंने अपने पिता को खत लिखकर कहा कि उनसे इंजीनियरिंग नहीं हो रही है। हालांकि, उनके पिता को वहां नहीं आए लेकिन, उनका खत वहां पहुंच गया। उनके पिता ने खत में लिखा कि जो अच्छा करते हैं उनके लिए रास्ते खुद मिल जाता है। खुद पर विश्वास रखने की सलाह भी दी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद पुणे में नरेंद्र की जॉब लगी। हालांकि, नरेंद्र जॉब छोड़कर गांव वापस आ गए। यहां आकर उन्होंने बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया। इसके बाद उन्होंने पीएसी की तैयारी की और बिना किसी कॉचिंग के पास भी कर लिया। फिलहाल,  नरेंद्र रायपुर नगर निगम में सीएमओ के पद पर कार्यरत हैं। 

अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस का उद्देश्य

अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस का उद्देश्य आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगो के साथ हो रहे भेद-भाव को समाप्त किया जाना है. इस भेद-भाव में समाज और व्यक्ति दोनों की भूमिका रेखांकित होती रही है। सरकार द्वारा किये गए प्रयास में, सरकारी सेवा में आरक्षण देना, योजनाओं में विकलांगो की भागीदारी को प्रमुखता देना, आदि को शामिल किया जाता रहा है।

अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस से संबंधित मुख्य तथ्य

- सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर 1992 से प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस को मनाने की स्वीकृति प्रदान की थी।

- सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में घोषित किया था।

- सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सयुंक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर वर्ष 1983-92 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस दशक घोषित किया था।

- भारत में विकलांगो से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आधीन होता है।

- संगम योजना का संबंध भारत में विकलांगो से संबंधित है।


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