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Menstrual Hygiene Day: मासिक धर्म को ना बनने दें अपनी कमजोरी, 'इट्स टाइम फॉर एक्शन'

Menstrual Hygiene Day दुनिया भर में महिलाओं को मासिक धर्म के बारे में जागरुक करने के लिए 28 मई को यह दिन मनाया जाता है। इस बार इसका थीम इट्स टाइम फॉर एक्शन है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 09:43 AM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 01:10 PM (IST)
Menstrual Hygiene Day: मासिक धर्म को ना बनने दें अपनी कमजोरी, 'इट्स टाइम फॉर एक्शन'
Menstrual Hygiene Day: मासिक धर्म को ना बनने दें अपनी कमजोरी, 'इट्स टाइम फॉर एक्शन'

नई दिल्ली, यशा माथुर। Menstrual Hygiene Day: जब हमें पीरियड्स आते हैं तो घर में बहुत सारी टेंशन होने लगती है। मम्मी कहने लगती हैं कि यह मत करो, वह मत करो। मंदिर मत जाओ, अचार मत छुओ। एक जगह बैठो। यह सब चीजें बहुत बुरी लगती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? कभी-कभी तो लगता है कि मैं लड़की ही क्यों हूं? किशोर बालिका के यह उद्गार बताते हैं कि इन मुद्दों पर काम करने का समय अब आ गया है। इन्हें मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूक करने का समय आ गया है और मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2019 की थीम 'इट्स टाइम फॉर एक्शन' भी यही कहती है...

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जिस देश में करीब 71 प्रतिशत लड़कियां यह नहीं जानतीं कि मासिक धर्म होता क्या है? जिस देश में करीब 50 प्रतिशत लड़कियां मासिक धर्म के कारण स्कूल जाना छोड़ देती हैं, वहां अब काम करने का हाई टाइम है। सबसे पहले इस प्राकृतिक प्रक्रिया से जुड़ी गलत अवधारणाओं को तोडऩा होगा। दूसरे, आपस में बात करनी होगी, चुप्पी तोडऩी होगी और बेटी को आश्वस्त करना होगा कि तुम कोई अपराध नहीं कर रही हो। तीसरे, मासिक धर्म के दौरान मासूम किशोरियां स्वच्छ रहें, उन्हें कोई संक्रमण न हो, यह सुनिश्चित करना होगा। 

टैबू टूटे नहीं हैं, इन्हें तोडऩा ही होगा

किचन में मत जाना, अचार तो बिल्कुल मत छूना, मंदिर से दूर रहना।' मां या दादी जब इस तरह के निर्देश एक मासूम बच्ची को देती हैं तो वह सोचती है कि आखिर मैंने किया क्या है? मासिक धर्म को समझने में लगी किशोर बच्ची के लिए छुआछूत झेलना भी एकदम नया होता है। कल तक मस्त होकर दौड़ती-कूदती बच्ची को कहा जाता है कि घर पर ही रहो, एक जगह बैठ जाओ। कोई उसे बताता नहीं कि उसे इस प्राकृतिक प्रक्रिया को कैसे हैंडल करना है? कैसे मेंस्ट्रूअल हाइजीन मेंटेन करनी है? झारखंड की 18 वर्षीय रूमा को भी जब यही भेदभाव झेलना पड़ा तो उसने खुद ही लड़कियों को जागरूक करने की मशाल जला ली। कहती हैं रूमा, 'मैंने घर-घर जाकर सभी को मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में बताया। ग्राम पंचायत में बात की। अब आसपास के गांवों की लड़कियों को जागरूक करती हूं। हम खेलते भी हैं और बाहर भी निकलते हैं।' 

सोशल मीडिया दे रहा है साथ

गुवाहाटी की 25 साल की बिदिशा सैकिया असम सरकार से गुहार लगा रही हैं कि असम के हर स्कूल में सैनेटरी पैड वेंडिंग मशीन उपलब्ध कराई जाए। चेंज डॉट ओआरजी पर उन्होंने जो अपनी पिटीशन डाली है उसमें कहा है कि मैं असम की जमीन पर मासिक धर्म के प्रति चुप्पी देख कर हैरान हूं क्योंकि यहां उस देवी की पूजा होती है। कई समुदायों में किशोरी के पहले मासिक धर्म को सेलिब्रेट किया जाता है। मेरे राज्य की हर लड़की को मासिक धर्म स्वास्थ्य की सुविधा मिले। इसी तरह से गुडग़ांव की तन्वी मिश्रा रेलों में पैड वेंडिंग मशीन लगाने की मांग कर रही हैं ताकि महिलाएं तनावमुक्त होकर सफर कर सकें।

वे कहती हैं कि ट्रेनों में महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट्स बनाकर और पैड मशीन लगा कर यात्रा कर रही औरतों को राहत दी जा सकती है। उनकी इस पिटीशन को अब तक एक लाख इक्कीस हजार लोग अपना समर्थन जता चुके हैं। 'पीरियड पॉजिटिव', 'हैप्पी टू ब्लीड', 'पीरियड्स आर नॉट एन इंसल्ट','आइ एम नॉट डाउन' जैसे कई सोशल मीडिया अभियानों में भी लड़कियों ने यही संदेश दिया कि पीरियड्स कमजोरी का प्रतीक या छिपाने के लायक नहीं है।  

शिक्षा, एक जरूरी हिस्सा

जब लड़कियों और महिलाओं में मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ही नहीं है, वे नुकसान जानती ही नहीं है तो स्थिति में बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। एक्शन इंडिया की चेयरपर्सन गौरी चौधरी कहती हैं कि शिक्षा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी कमी घातक बन रही है। जिस तरीके से हम काम कर रहे हैं उससे महिलाओं में बदलाव तो आया है लेकिन अभी और भी बहुत काम करने की जरूरत है। ग्रामीण औरतों के समूह बनाकर, उन्हें जानकारी देकर हम महिलाओं में जागरूकता फैला सकते हैं। इसके लिए शिक्षक चाहिए, वे भी प्रशिक्षित हों।

इसी तरह से ऑस्कर विजेता फिल्म 'पीरियड-एंड ऑफ सेंटेंस' की प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा भी कहती हैं कि सूचना और शिक्षा से लड़कियों को एंपावर किया जा सकता है। लड़कियों को कम से कम यह तो पता लगे कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, शर्मनाक नहीं। शिक्षा से ही अंधेरा दूर होगा। सूचना से ही जागरूकता आएगी। 

आत्मसम्मान से जीना सिखाना है

महिला की डिग्निटी सबसे महत्वपूर्ण है। लड़कियों का आत्मसम्मान आहत न हो इसका ध्यान रखना होगा। बिना सोचे-समझे हमारा समाज बंदिशों को ढोए चला जा रहा है। जबकि इनसे बाहर निकलना होगा। अपने संगठन 'सच्ची सहेली' के जरिए इस टैबू को मिटाने में लगी डा. सुरभि कहती हैं कि समय के साथ इतना कुछ बदला है। हमने कई चीजें अपनाई हैं तो कुछ को छोडऩा भी पड़ेगा। मेरे पड़ोसी के यहां बेटी के इंजीनियरिंग सलेक्शन की पार्टी थी। सब लोग एंजॉय कर रहे थे। लेकिन जिसका सलेक्शन हुआ था वह बेटी कमरे में बैठी थी क्योंकि उसके पीरियड्स चल रहे थे। आखिर क्यों? ये चीजें मुझे बहुत परेशान करती हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? 

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस, वक्त की जरूरत

28 मई को पूरी दुनिया में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। 2014 में जर्मनी के 'वॉश यूनाइटेड' नाम के एक एनजीओ ने इस दिन को मनाने की शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य है लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता रखने के लिए जागरूक करना। तारीख 28 इसलिए चुनी गई क्योंकि आमतौर पर महिलाओं के मासिक धर्म 28 दिनों के भीतर आते हैं। आज इस दिन पर संकल्प लेने की जरूरत है कि घर में दादी, मम्मी, बहन खुलकर बात करे। समाज और अधिक खुले। बच्चियों को पीरियड्स और इस दौरान स्वच्छता के बारे में पहले ही बताया जाए ताकि उनका डर खत्म हो जाए।

हमारे लिए डायलॉग महत्वपूर्ण है

 

फाउंडर अंशु गुप्ता कहते है कि अब मासिक धर्म स्वच्छता पर बात होने लगी है। लेकिन डर है कि यह मुद्दा प्रोडक्ट माफिया के हाथ में न चला जाए। जो लोग इस पर बात कर रहे हैं उन्हें सही मायनों में काम भी करना चाहिए। महिलाओं को टॉयलेट मिलने चाहिए। गूंज की भूमिका डायलॉग की है। हम हवा में बात नहीं करते। हमने पचास लाख पैड बनाए जो चार करोड़ के बराबर है। हम गांवों में जाकर साल में बारह सौ 'चुप्पी तोड़ो' बैठक कर रहे हैं। हमारे लिए डायलॉग महत्वपूर्ण है। हम ग्रामीण महिलाओं को सेनेटरी पैड्स डिस्पोज करने के तरीके भी बताते हैं। बायोडिग्रेडेबल समाधान के लिए प्रोडक्ट में इनोवेशन की जरूरत है।

पर्सनल हाइजीन पर काम करती रहूंगी 

ऑस्कर विजेता फिल्म 'पीरियड-एंड ऑफ सेंटेंस' में काम करने वाली हापुड़, यूपी की ग्रामीण महिला स्नेह ने कहा कि हमारी फिल्म में कुछ भी फेक नहीं था। हम एक्टिंग नहीं कर रहे थे। जो भी था हमारा वास्तविक जीवन है। अब तो हमारे गांव में लोग हमसे जुड़ रहे हैं। पहले तो हमसे बात भी करना पसंद नहीं करते थे। बदलाव तो आया है लेकिन अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है। मैनस्ट्रूअल हाइजीन को लेकर हमने काम किया है उसे हम छोड़ नहीं सकते। अभी हमें बहुत काम करना है।

अभी चुनौती है आगे बढऩा

इसी फिल्म में एक और काम करने वाली महिला सुमन कहती है हम ने बहुत मेहनत और लगन से काम किया है। मैं 2010 से एक्शन इंडिया से जुड़ी थी। हमने बहुत काम किया। 2017 में हमारे पास पैड प्रोजेक्ट आया तो उसके लिए हमने सबला समिति के नाम से एक नई शाखा बनाई थी। जब हम पैड बांटने लोगों के घर गए तो उन्होंने हमें घर के बाहर से भगा दिया था। अभी लड़ाई जारी है। फिल्म को ऑस्कर मिलने के बाद काफी लोग हमसे जुड़े हैं। लेकिन मुद्दे तो आज भी हैं। ग्रामीण महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता के लिए जागरूक करने में अभी चुनौतियां कम नहीं है।

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