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सिर्फ निचली अदालतों तक ही सीमित है Fast Track Court, जानें क्‍या है HC/SC में प्रावधान

तेलंगाना में महिला डॉक्‍टर के साथ हुए जघन्‍य अपराध के बाद इस मामले को फास्‍ट ट्रैक कोर्ट को सौंपा गया है। लेकिन इस तरह के मामलों में फास्‍ट ट्रैक कोर्ट का गठन ही सब कुछ नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 01:49 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 05:23 PM (IST)
सिर्फ निचली अदालतों तक ही सीमित है Fast Track Court, जानें क्‍या है HC/SC में प्रावधान
सिर्फ निचली अदालतों तक ही सीमित है Fast Track Court, जानें क्‍या है HC/SC में प्रावधान

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। साइबराबाद (तेलंगाना) में महिला पशु चिकित्‍सक के साथ दुष्‍कर्म और फिर उसको बेरहमी से जलाकर मार डालने के मुद्दे पर देश भर में गुस्‍सा है। इस मामले के सभी आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया है और उन्‍होंने पुलिस के समक्ष अपना गुनाह भी कुबूल कर लिया है। लेकिन, मामला सिर्फ इनके पकड़े जाने या इनके गुनाह कुबूल करने तक सीमित नहीं है। मुद्दा ये है कि आखिर इस तरह के दरींदे कब तक सड़कों पर अपनी हैवानियत का नंगा नाच करते रहेंगे और पीडि़त कब तक न्‍याय की आस में कोर्ट के दरवाजे खटखटाते रहेंगे। इसकी तरह तेलंगाना मामले में भी पूरा देश इन आरोपियों के लिए भी फांसी की मांग कर रहा है। हालांकि इसका फैसला तो कोर्ट ही करेगी। लेकिन फिलहाल इस मामले में तेलंगाना के मुख्‍यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने फास्‍ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Court) गठित करने की घोषणा कर दी है, लेकिन इसके बावजूद आरोपियों को सजा देने में कितना समय लगेगा यह कह पाना बेहद मुश्किल है। 

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निर्भया केस 

ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्‍योंकि 16 दिसंबर 2012 को दिल्‍ली में चलती बस में हुए सामूहिक दुष्‍कर्म मामले के दोषियों को भी छह वर्षों बाद भी सजा नहीं दी जा सकी है। इस मामले में भी फास्‍ट ट्रैक कोर्ट बनी थी, जिसने छह माह की सुनवाई के बाद वर्ष 2013 में दोषियों को फांसी की सजा सुना दी थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी अगले कुछ माह के अंदर दोषियों को निचली कोर्ट से मिली सजा को सही पाया और उस पर मुहर लगाई थी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां जुलाई 2018 में सभी चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके बाद भी आज तक निर्भया के परिजन इन दोषियों को फांसी के तख्‍ते पर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं। हाल ही में निर्भया के परिजनों की तरफ से कोर्ट में एक याचिका दायर कर इन दोषियों को जल्‍द से जल्‍द फांसी देने की मांग की थी। लेकिन कानून के मुताबिक जब तक दोषियों द्वारा दायर एक भी दया याचिका या अन्‍य विकल्‍प इस्‍तेमाल नहीं कर लिए जाते तब तक उन्‍हें फांसी की सजा देने के लिए डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता है। 

फास्‍ट ट्रैक कोर्ट का क्‍या फायदा 

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि यदि इतने संगीन अपराध के दोषियों को फास्‍ट ट्रैक कोर्ट गठित करने के छह साल बाद भी सजा नहीं दी जा सकती है तो फिर उसका क्‍या फायदा है। महज निचली अदालतों में फास्‍ट ट्रैक कोर्ट गठित करने से क्‍या होगा जबकि ऊपरी अदालतों में मामले को निपटाने में लगभग वही समय लगता है।दैनिक जागरण ने संविधान विशेषज्ञ डॉक्‍टर सुभाष कश्‍यप से इन्‍हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की और ये भी जानने की कोशिश की कि ऐसा क्‍यों होता है और कानून में क्‍या प्रावधान है। 

क्‍या होता है फास्‍ट ट्रैक कोर्ट 

डॉक्‍टर कश्‍यप के मुताबिक फास्‍ट ट्रैक कोर्ट हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस तरह की कोर्ट में सुनवाई के लिए आने वाले मामलों को लेकर हाईकोर्ट इसकी समय अवधि भी तय कर सकती है। यदि ऐसा नहीं होता है  तो भी फास्‍ट ट्रैक इसकी सुनवाई को लेकर यह तय कर सकता है कि मामले की सुनवाई  हर रोज की जानी है या समय-समय पर होगी। आपको बता दें कि जिस मामले में फास्‍ट ट्रैक कोर्ट गठित की जाती है वह केवल उसी मामले की सुनवाई करती है। फास्‍ट ट्रैक कोर्ट गठित करने के पीछे मकसद निचली अदालत से जल्‍द न्‍याय दिलवाना है। फास्‍ट ट्रैक न होने की सूरत में निचली अदालत में ही वर्षों तक मामला चलता रहता है, जिसकी वजह से पीडि़त को न्‍याय मिलने में देरी हो जाती है। ऐसा न इसके लिए ही कुछ मामलों की सुनवाई को इस तरह की कोर्ट गठित करने का प्रावधान कानून में है। 

न हो किसी निर्दोष को सजा 

संविधान विशेषज्ञ डॉक्‍टर सुभाष कश्‍यप का कहना है कि दोषियों को अंतिम सजा दिलाने में जो भी कानूनी प्रक्रिया है उसको पूरा किया जाता है। निर्भया मामले में दोषियों को अब तक फांसी की सजा न दिए जाने के सवाल पर उनका कहना था कि भारत की न्‍यायिक प्रक्रिया इस सोच पर काम करती है कि भले ही दस दोषी छूट जाएं लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। उनके मुताबिक निर्भया मामले में दोषियों द्वारा जब तक सभी कानूनी प्रावधानों का तय समय के अंदर इस्‍तेमाल नहीं कर लिया जाता है तब तक उन्‍हें फांसी नहीं दी जा सकती है। बावजूद इसके वह ये भी मानते हैं कि समय के हिसाब से कानून में सुधारों की गुंजाइश है।  

क्‍या सुप्रीम कोर्ट में बन सकता है फास्‍ट ट्रैक कोर्ट 

यह पूछे जाने पर कि क्‍या फास्‍ट ट्रैक कोर्ट केवल निचली अदालत तक ही सीमित है या ऊपरी अदालत में भी इस तरह की कोर्ट को गठन करने का प्रावधान है, तो उनका कहना था सुप्रीम कोर्ट चाहे तो किसी मामले की जल्‍द सुनवाई के लिए स्‍पेशल बेंच गठित कर सकती है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट मामले की त्‍वरित सुनवाई (Urgent Hearing in Court) के भी आदेश दे सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष किसी तरह की फास्‍ट ट्रैक कोर्ट बनाने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है। यह पूछे जाने पर कि केवल निचली अदालत में फास्‍ट ट्रैक कोर्ट बनाकर क्‍या इसका मकसद पूरा हो जाता है। इसके जवाब में उन्‍होंने कहा कि हमारी न्‍यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है। 

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