गंगा के लिए भागीरथ बने अनंतसंतोषानंद, पिछले दस सालों से हैं इस साधना में लीन
हाथों में दस्ताने पहनकर नियमित रूप गंगा किनारे फैली गंदगी को साफ कर उसे एक गड्ढे में डालना स्वामी अनंतसंतोषानंद दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।
उत्तरकाशी, मनोज राणा। गंगा के मायके उत्तरकाशी में एक संत पिछले दस साल से गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल बनाने की साधना में लीन हैं। हाथों में दस्ताने पहनकर नियमित रूप गंगा किनारे फैली गंदगी को साफ कर उसे एक गड्ढे में डालना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। संत का यह प्रयास उन लोगों के लिए भी आईना है, जो गंगा स्वच्छता के नाम पर करोड़ों की योजनाओं को ठिकाने लगा रहे हैं। पिछले 19 सालों से उत्तरकाशी में रह रहे स्वामी अनंतसंतोषानंद बताते हैं कि जब वे पहली बार यहां आए थे, तब भागीरथी (गंगा) काफी हद तक स्वच्छ एवं निर्मल थी। अब ऐसा नहीं है। लोगों ने गंगा के किनारों को शौचालय में तब्दील कर दिया है।
स्वामी अनंतसंतोषानंद ने वर्ष 1987 में केरल में ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली और फिर अपने परिवार के सात लोगों से भिक्षा लेकर संन्यास ग्रहण किया। तब उनकी उम्र 28 साल थी। उन्होंने छह साल तक दक्षिण भारत में ही भ्रमण और अध्ययन किया। वर्ष 1993 में वे ऋषिकेश पहुंचे और चार साल तक स्वर्गाश्रम में रहे। इसके बाद एक वर्ष कश्मीर में रहने के बाद वो फिर ऋषिकेश लौटे आए। वर्ष 1999 में स्वामी अनंतसंतोषानंद पहली बार छह माह के लिए उत्तरकाशी आए।
वे बताते हैं,'यहां आकर मुझे महसूस हुआ कि भारत के अन्य क्षेत्र अध्ययन के लिए जरूर उपयुक्त हैं, पर ध्यान एवं साधना के लिए गंगा के मायके से बेहतर अन्य कोई स्थान नहीं। लिहाजा, मैंने अपनी साधना का केंद्र उत्तरकाशी को ही बनाया और चार साल तक यहां दंडी क्षेत्र में रहा। बाद में मैंने मातली के निकट भागीरथी के किनारे एक कुटिया को अपना ठौर बना लिया। लेकिन, वर्ष 2008 में कुटिया टूट गई, इसलिए तब से लक्षेश्वर के निकट भागीरथी के तट पर स्थित भीम गुफा में ध्यान-साधना कर रहा हूं।'
गंदगी को साफ करने का उठाया बीड़ा
स्वामी अनंतसंतोषानंद के अनुसार जब वे भीम गुफा में आए तो आसपास के क्षेत्र के शहर से जुड़े होने के कारण भागीरथी के तटों पर गंदगी का अंबार लगा था। अब भी कमोबेश यही हाल है। रोज सुबह गंगा तट पर लोगों को शौच के लिए आते देख उनका मन कुंठित होता है, लेकिन संत प्रवृत्ति होने के कारण वे कुछ बुरा नहीं कह पाते। ऐसे में उनके पास एक ही विकल्प था कि स्वयं इस गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाएं।
गंदगी साफ करने को मानते हैं अपनी साधना
अब तो वे भागीरथी के किनारे फैली गंदगी साफ करने को ही अपनी साधना मानते हैं। बताते हैं, इसी वर्ष अप्रैल में उन्होंने जिला प्रशासन को पत्र सौंपकर उन लोगों के लिए शौचालय की व्यवस्था कराने का आग्रह किया था, जिनके पास शौचालय नहीं हैं। पर, इसका कोई नतीजा नहीं निकला। शहर में कुछ स्थानों पर जरूर सुलभ शौचालय बनाए गए हैं, लेकिन लोग फिर भी गंगा किनारे शौच कर मोक्षदायिनी को दूषित कर रहे हैं।
कौन हैं स्वामी अनंतसंतोषानंद
दक्षिण ओडिशा में कोरापुट जिले के जेयपोरे निवासी स्वामी अनंतसंतोषानंद ब्राह्मण परिवार में जन्मे और पले-बढ़े। प्रारंभिक से लेकर माध्यमिक शिक्षा जेयपोरे में ही ग्रहण की। इसके बाद जेएनयू (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय) दिल्ली से राजनीतिक शास्त्र में स्नातक व परास्नातक की डिग्री ली। स्नातक करने के दौरान वे सीपीआइ से जुड़ गए।
परास्नातक करने के बाद वर्ष 1982 में उन्होंने सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा भी पास की। लेकिन, मुख्य परीक्षा के दौरान कुछ साथियों के यह कहने पर कि अफसर बनकर समाज की सेवा नहीं की जा सकती, इतिहास का प्रश्नपत्र छोड़ दिया। इसके बाद वे पत्रकारिता के क्षेत्र में दाखिल हुए और पांच वर्षों तक अंग्रेजी व उड़िया भाषा के कई पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता की। इसके बाद वे पूरी तरह संन्यास का राह पर चल पड़े।