छत्तीसगढ़ के इस गांव में कोई शादी के लिए तैयार नहीं, कंवारे रह जा रहे युवक-युवतियां
छत्तीसगढ़ के सुपेबेड़ा गांव के लोग किडनी की गंभीर बीमारी के शिकार हो रखे हैं। 900 की आबादी वाले गांव में साल 2005 से लगातार किडनी की बीमारी से मौत का सिलसिला जारी है।
हिमांशु शर्मा, रायपुर। देशभर में इन दिनों शादी का सीजन चल रहा है। रोजाना विवाह के अच्छे मुहूर्त बन रहे हैं। बहुत से घरों में मंडप सजे हैं और बैंड-बाजे की आवाजें सुनाई पड़ रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ का एक गांव ऐसा है, जहां लोग किसी शादी समारोह की शान देखने के लिए कई वर्षों से आस लगाए बैठे हैं। यहां कई युवक-युवतियां ऐसे हैं, जिनकी शादी की उमर निकल रही है, लेकिन उन्हें जीवन साथी बनाने के लिए कोई तैयार नहीं। इस गांव के नाम से ही लोग रिश्ता जोड़ने से कतराने लगते हैं।
किडनी की बीमारी अबतक ले चुकी है 68 लोगों की जान
दरअसल, गरियाबंद के सुपेबेड़ा गांव के लोग एक ऐसी बीमारी का शिकार हो रहे हैं, जिसकी वजह से यहां की आबादी घटती जा रही है। शादियां न होने की वजह से बच्चे भी नहीं हो रहे और यहां के लोग अपने गांव के अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी को लेकर इस कदर दहशत है कि लोग पलायन कर रहे हैं। गरियाबंद जिले के इस 900 की आबादी वाले गांव में साल 2005 से लगातार किडनी की बीमारी से मौत का सिलसिला जारी है। अब तक यहां 68 मौतें हो चुकी है। स्थिति यह है कि पिछले एक दशक के दौरान गिनती की ही शादियां हुई हैं। शादी की उम्र पार कर रहे युवाओं के चेहरे पर एकाकीपन का दर्द यहां साफ झलकता है।
साल 2017 में हुई थी 32 मौतें
साल 2005 में ही सुपेबेड़ा में मौतों का सिलसिला शुरू हो गया था, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। साल 2017 में यहां 32 लोगों की किडनी की बीमारी से मौत हो हुई। यह खबरें जब अखबारों की हेडलाइन बनीं तो सरकार जागी। तत्कालीन मंत्रियों ने दौड़ लगाई। कैंप लगाए गए, डॉक्टरों को भेजा गया। कई गंभीर मरीजों को इलाज के लिए रायपुर लाया गया। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवभोग में मरीजों के लिए सेमी आटोएनालाइजर मशीन स्थापित कर ली गई हैं। वहां मरीजों के ब्लड, यूरिया, सीरम क्रियेटिनीन एवं सीरम इलेक्ट्रोलाइट की जांच की जा रही है। इसके अतिरिक्त लीवर फंक्शन टेस्ट भी किए जा रहे हैं। सुपेबेड़ा में उप स्वास्थ्य केंद्र की स्वीकृति प्रदान की गई है।
यहां के पानी में मिला है ऐसा जहर
राजधानी रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सुपेबेड़ा की मिट्टी का परीक्षण किया था। मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट और दिल्ली के डॉक्टर भी अपने स्तर पर जांच कर चुके हैं। जबलपुर आइसीएमआर की टीम भी यहां जांच के लिए पहुंची। पीएचई विभाग ने पानी की जो जांच की थी, उसमें उन्हें फ्लोराइड और आरसेनिक की मात्रा ज्यादा मिली थी। उसके समाधान के लिए गांव में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगा दिया गया था, मगर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा की गई मिट्टी की जांच में हैवी मैटल पाए गए थे, जिसमें कैडमियम और क्रोमियम की भी ज्यादा मात्रा होना शामिल था।
शुद्ध पानी के लिए बनी यह योजना
सुपेबेड़ा में 32 मौतों के बाद शासन-प्रशासन ने यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए योजना बनाई। वाटर फिल्टर और आर्सेनिक रिमूवल प्लांट स्थापित हुए, लेकिन इनसे भी बात नहीं बनी। प्लांट में पानी ठीक तरीके से शुद्ध नहीं हो पाने के कारण स्थिति में विशेष सुधार नहीं हुआ। वर्तमान में कांग्रेस की सरकार ने सुपेबेड़ा में शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए योजना बनाई है। यह योजना करीब दो करोड़ रुपये की है। अब तेल नदी से गांव तक पानी पहुंचाया जाएगा। खुद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बीते दिनों सुपेबेड़ा का दौरा किया था। गांव के लोगों से बात की, समस्याएं सुनीं और फिर सरकार ने इन व्यवस्थाओं को करने की पहल की। यहां स्थित वाटर फिल्टर प्लांट का आधुनिकीकरण भी किया जाएगा और इसके साथ ही गरियाबंद में 100 बिस्तरों वाले सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की स्थापना भी प्रस्तावित है।
विधानसभा में भी गूंजा सुपेबेड़ा का मुद्दा
इन दिनों छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। गुरुवार को सदन में चर्चा के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा ने सुपेबेड़ा के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि शासन व प्रशासन की ओर से इलाज के नाम पर केवल दावे होते रहे, लेकिन रोकथाम नहीं हुई। बीमारी के डर से न सिर्फ सुपेबेड़ा, बल्कि आसपास के गांवों से भी पलायन हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की ओर से जवाब आया कि सुपेबेड़ा में वर्ष 2005 से अब तक कुल 68 लोगों की असामयिक मौत की जानकारी मिली है। इनके रक्त में यूरिया और क्रिएटिनीन मानक मात्रा से अधिक थे, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि मौतें किडनी की बीमारी से ही हुई।