Kashmir Shopian: आतंकियों की ख्वाबगाह ही बन रही उनकी कब्रगाह, अब तक 40 आतंकी मारे
करीब सवा तीन लाख की आबादी वाला शोपियां शुरुआत से ही कश्मीर में अलगाववादी सियासत का केंद्र रहा है। वर्ष 2005 से लेकर 2009 तक इस इलाके में आतंकी गतिविधियों में कुछ कमी आई।
श्रीनगर, नवीन नवाज। आतंकियों का मजबूत किला शोपियां अब ढह रहा है। सुरक्षाबल एक-एक कर तमाम छोटे-बड़े आतंकियों को मुठभेड़ में ढेर कर रहे हैं और आतंकियों की ख्वाबगाह माने जाने वाले शोपियां में उनके गुप्त ठिकाने ही उनकी कब्रगाह बन रहे हैं। चार दिन में ही हिजबुल के दो बड़े कमांडरों समेत 14 आतंकियों को मार गिराया गया है।
अगर इक्का-दुक्का घटनाओं को नजरअंदाज करें तो हाल-फिलहाल चले रहे आतंकरोधी अभियानों में न पथराव हुआ और न किसी ने आतंकियों के मारे जाने पर हड़ताल की। साफ है कि आतंकियों के लिए अब स्थानीय समर्थन निरंतर सिकुड़ रहा है।
सुरक्षा एजेंसियों ने इस साल कश्मीर घाटी में देसी-विदेशी 250 आतंकियों को सूचीबद्ध किया था। इनमें से करीब 70 शोपियां में ही सक्रिय थे। इनमें भी 50 स्थानीय ही थे। बीते पांच माह में तथाकथित तौर पर एक दर्जन स्थानीय युवा आतंकी बने और उनसे से ज्यादातर ढेर कर दिए गए या फिर वह घरों को लौट आए।
आतंकियों को हमेशा रास आया शोपियां: शोपियां का गढ़ ढहाना इतना सरल नहीं था। तीन साल पूर्व सुरक्षाबलों ने जब आतंक के खात्मे की मुहिम आरंभ की तो शोपियां सबसे मुश्किल लक्ष्य दिख रहा था। दक्षिण कश्मीर में पीरपंचाल की पहाडिय़ों के बाएं तरफ स्थित शोपियां हमेशा से आतंकियों के लिए मुफीद रहा है। यही उनका जम्मू क्षेत्र का प्रवेश द्वार भी है। दूर-दूर तक जंगल है। इसके अलावा यह एक ग्रामीण जिला है। आतंकियों को इस इलाके में न कभी कैडर की कमी हुई और न शरणदाताओं की। दूर-दूर तक फैले सेब के बाग, खेत, जंगल और नाले उन्हें सुरक्षित ठिकाने बनाने में मदद करते रहे, वहीं अलगाववादियों का प्रभाव व आतंकियों और सियासत का गठजोड़ उनके लिए सुरक्षित कवच का काम करता रहा। दक्षिण कश्मीर के अन्य जिलों की तरह यहां जमात का प्रभाव रहा।
सियासत और मजहब का जेहादी गठजोड़: सियासत, मजहब और जिहाद का गठजोड़ कैसे इस जिले में काम करता है, यह वर्ष 2009 में शोपियां में दो युवतियों की रंबियार नाले में रहस्यमय परिस्थितियों में डूबने से हुई मौत के बाद पैदा हालात को देखकर समझा जा सकता है। युवतियों की मौत को सुरक्षाबलों के जिम्मे मढ़ा गया, लेकिन सीबीआइ जांच में वह लोग संदेह के घेरे मे आ गए, जिन्होंने मामले को तूल दिया था
बड़े आतंकी कमांडरों का गढ़ रहा: करीब सवा तीन लाख की आबादी वाला शोपियां शुरुआत से ही कश्मीर में अलगाववादी सियासत का केंद्र रहा है। वर्ष 2005 से लेकर 2009 तक इस इलाके में आतंकी गतिविधियों में कुछ कमी आई। वर्ष 2010 के बाद से यह फिर सुरक्षाबलों क लिए एक बड़ा सिरदर्द बनकर उभरा। आठ सालों में वसीम मल्ला, जीनत उल इस्लाम, सद्दाम पडर, एतमाद, जुबैर तुर्रे जैसे कई खूंखार आतंकी पैदा हुए और मारे गए हैं। एक आइपीएस अधिकारी का एक भाई भी दो साल पहले हिजबुल का आतंकी बन गया था। इसी साल जनवरी में डीएसपी देवेंद्र सिंह संग पकड़ा गया आतंकी नवीद मुश्ताक भी शोपियां का ही है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, बीते तीन सालों में लगभग 100 नए आतंकी दिए हैं और 80 के करीब स्थानीय आतंकी भी मारे गए हैं।
अब पुलिसकर्मी बन रहे टारगेट: बीते तीन वर्षों में शोपियां में आतंकियों का रेत का दुर्ग खिसकना आरंभ हुआ तो उन्होंने आम लोगों और पुलिसकर्मियों को निशाना बनाना आरंभ कर दिया। इस दौरान 15 ऐसी घटनाएं हुईं।
आपसी तालमेल और निरंतर निगरानी का दिखा असर: शोपियां का गढ़ ध्वस्त करने के लिए सुरक्षा एजेंसियों का आपसी तालमेल, युवाओं की काउंसलिंग, सोशल मीडिया की निगरानी और आतंकियों के ओवरग्राउंड वर्कर नेटवर्क के साथ साथ उनसे सहयोग करने वाले नेताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई के साथ आतंकियों के खिलाफ सुनियोजित अभियान रंग दिखा रहा है।
आसान नहीं था नेटवर्क जुटाना: एसएसपी इम्तियाज हुसैन मीर ने कहा कि यहां तमाम आतंकी संगठनों ने अपना कैडर खड़ा किया। पैसा खूब है, नशीले पदार्थाें की खेती करने वालों और आतंकियों के बीच गठजोड़ भी है। उन्होंने कहा कि ऐसे में शोपियां में पहले हयूमन इंटेलिजेंस को जुटाना बहुत मुश्किल होता रहा। अलबत्ता, अब समय बदला है और इसका असर अब जमीन पर नजर आने लगा है।
तीन जोन में बांटा है जिला: आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि आतंकियों के प्रभाव के आधार पर तीन क्षेत्रों जैनपोरा, शोपियां और केल्लर में बांट रखा है। जैनपोरा में करीब 80 गांव आते हैं। इसी क्षेत्र से सबसे ज्यादा युवक आतंकी बने हैं। जिले में विभिन्न जगहों पर स्थानीय लोगों के साथ बातचीत के आधार पर सुरक्षाबलों के शिविर स्थापित किए गए हैं। आतंकियों की ज्यादतियों के शिकार लोगों को चिह्नित कर उनकी मदद ली जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस को बढ़ाने के साथ नशीले पदार्थाें के कारोबारियों पर कार्रवाई की जा रही है। सुरक्षाबलों का इंटेलीजेंस नेटवर्क भी मजबूत हुआ है। किसी भी जगह घेराबंदी करने से पहले पूरे क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का आकलन किया जाता है। शोपियां में पांच माह के दौरान तीन दर्जन के करीब आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए हैं, करीब 80 ओवरग्राउंड वर्कर (आतंकियों के मददगार) पकड़े गए हैं।