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...जब अपने ही ड्राइवर के लिए ड्राइवर बने गए कलेक्टर साहब

कई वर्षों की सेवा के बाद जब उनका ड्राइवर रिटायर हुआ तो खुद कलेक्टर साहब उसके ड्राइवर बने और उन्हें घर तक विदा करने गए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 May 2018 01:45 PM (IST)Updated: Sat, 05 May 2018 10:41 AM (IST)
...जब अपने ही ड्राइवर के लिए ड्राइवर बने गए कलेक्टर साहब
...जब अपने ही ड्राइवर के लिए ड्राइवर बने गए कलेक्टर साहब

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। एक अधिकारी की सबसे अच्छी बात ये होती है कि वह अपने नीचे काम करने वालों की इज्जत करे और उनका पूरा सम्मान करे। अधिकारियों की इस खूबी को कई बार जाने अनजाने तौर पर देखा भी गया है। कर्नाटक के कुरूर जिले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला, जब एक कलेक्टर ने अपने ड्राइवर को नायाब तोहफा दिया। दरअसल, कई वर्षों की सेवा के बाद जब उनका ड्राइवर रिटायर हुआ तो खुद कलेक्टर साहब उसके ड्राइवर बने और उन्हें घर तक विदा करने गए। हालांकि इस तरह का वाकया पहली बार भी सामने नहीं आया है। इससे पहले बिहार के मुंगेर और महाराष्ट्र से भी इस तरह की बातें सामने आ चुकी हैं, जब कलेक्टर साहब अपने ही ड्राइवर के ड्राइवर बनकर सामने आए और उनकी वर्षों की सेवा का सम्मान किया।

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रिटायरमेंट को यादगार बनाना चाहते थे
ड्राइवर का काम गाड़ी चलाना होता है। पीछे की सीट पर कार का मालिक या अधिकारी बैठे होते हैं। मगर, कर्नाटक में ड्राइवर को सम्मान के साथ कार की पिछली सीट पर बैठाकर ड्राइवर की सीट पर कलेक्टर साहब जब बैठे, तब लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हो भी क्यों न, आखिर ऐसी उल्टी गंगा बहते हुए किसने देखा है। दरअसल, कलेक्टर साहब अपने ड्राइवर के रिटायरमेंट को यादगार बनाना चाहते थे। उस ड्राइवर के लिए भी यह कोई कम बड़ी बात नहीं थी। करूर जिले के रहने वाले परामासिवम 30 अप्रैल 2018 को रिटायर हो गए। उन्होंने अपने 35 साल के कार्यकाल में करीब 8 कलेक्टर और कई अन्य नौकरशाहों की गाड़ियां चलाईं। मगर, रिटायरमेंट के दिन उन्हें अधिकारी की तरह विदाई देने का जिम्मा कलेक्टर टी. अन्बाझगन ने उठाया और वह अपने ड्राइवर के ड्राइवर बन गए।

हम उन्हें सम्मान उनके घर पहुंचाएं
इस बारे में अन्बाझगन ने बताया कि अगर कलेक्टर 16 घंटे काम करता है, तो उसका ड्राइवर दिन में 18 घंटे काम करता है। वे नौकरशाह से पहले उसके घर पहुंचते हैं और उन्हें घर जाने में अक्सर देरी होती है। उन्हें हर वक्त अलर्ट रहना होता है, हमारी जिन्दगी उनके हाथों में होती है। मैं उन्हें उनकी 33 सालों की सेवा के लिए सम्मानित करना चाहता हूं। उनकी अपनी पूरी जिंदगी हमें घर पहुंचाया है, अब ये हमारी बारी है कि हम उन्हें सम्मान उनके घर पहुंचाएं।

पूरे ऑफिस को पार्टी दी
इससे पहले अन्बाझगन ने 29 अप्रैल के दिन अपने सरकारी ड्राइवर परामासिवम के रिटायर पर पूरे ऑफिस को पार्टी दी। इसके बाद उन्होंने रिटायरमेंट के दिन परामासिवम और उनकी पत्नी के लिए खुद कार का दरवाजा खोला और उन्हें खुद कार चलाकर उनके घर तक छोड़ा। कलेक्टर साहब जब परामासिवम के लिए कार का दरवाजा खोलने लगे, तो पहले तो वह संकोच करने लगे।

कभी भी नहीं सोचा था
हालांकि, बाद में वह कलेक्टर अनबाझगन की ओर से दिए जाने वाले सम्मान को लेने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि इस तरह की बात मेरे साथ होगी। ये जानकर कि मेरी भूमिका की भी कद्र की गई, मैं अपने अफसर का आभारी हूं। मुझे गर्व है कि मैं अपने राज्य की कुछ सेवा कर सका। परामासिवम के घर पहुंचने पर कलेक्टर साहब ने चाय पी और ड्राइवर के परिवार के साथ काफी देर तक बातें भी कीं।

जब मुंगेर के डीएम बने ड्राइवर
इसी साल जनवरी में बिहार के मुंगेर जिले के जिलाधिकारी ने अपने ड्राइवर को रिटायरमेंट के दिन ऐसा तोहफा दिया, जो न सिर्फ उसके लिए यादगार बन गया, बल्कि हर तरफ इसकी चर्चा हो रही है। लोग कह रहे हैं कि अधिकारी हो तो मुंगेर के जिलाधिकारी जैसा। मुंगेर समाहरणालय में आयोजित एक फेयरवेल समारोह में जिलाधिकारी उदय कुमार सिंह ने 32 सालों से डीएम की गाड़ी ड्राइव कर रहे कर्मचारी सम्पत राम को यादगार विदाई दी। फेयरवेल समारोह के बाद जिलाधिकारी ने सम्पत राम को गाड़ी में पीछे बैठाया और स्वयं ड्राइवर की सीट पर बैठ कर गाड़ी चला उन्हें उनके घर तक पहुंचाया।

[ड्राइवर को अपनी सीट पर बैठा जिलाधिकारी ने खुद चलाई गाड़ी, दिया यादगार तोहफा]

सम्मान पाकर ड्राइवर सम्पत राम ने बताया कि वे 1983 से ही जिलाधिकारी के ड्राइवर के रूप में नियुक्त हुए थे। लखीसराय और चकाई के बाद पिछले 32 सालों से मुंगेर के जिलाधिकारी के ड्राइवर के रूप में कार्यरत थे। आज उनकी रिटायरमेंट में मुंगेर डीएम ने जो सम्मान प्रदान किया ऐसा सम्मान उन्हें और कहीं भी नहीं मिला है।

महाराष्ट्र के कलेक्टर  ड्राइवर

दो साल पहले नवंबर में एक कलेक्टर ने अपने ड्राइवर को यादगार तोहफा दिया जो उसे ताउम्र याद रखेगा। सफेद वर्दी में इस 'वीआईपी' कार में पीछे की सीट पर दिगंबर थाक हैं जो कि करीब 35 साल से महाराष्ट्र के अकोला में कलेक्टर ऑफिस में ड्राइवर के पद पर तैनात थे। दिगंबर अपने पद से रिटायर हो रहे थे। उन्हें घर छोड़ने के लिए वहां के कलेक्टर ने अपनी गाड़ी में पीछा बिठाकर खुद ड्राइवर बने हुए थे। उनके बॉस और अकोला के कलेक्टर जी. श्रीकांत दिगंबर को विदाई के मौके पर यह अनूठा तोहफा देने का विचार किया जिसके बाद दफ्तर में भी दिगंबर के लिए विदाई समारोह का आयोजन किया गया। 


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