जानिए, क्यों संजय दत्त की मां नरगिस को बेचने पड़े थे अपने कंगन
लेखिका मधु जैन ने लिखा है, कि आर के फिल्म्स को पैसों की कमी हुई तो एक बार उन्होंने अपने सोने के कंगन तक बेच डाले।
नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। राज कपूर के ख्वाबों की दुनिया आरके स्टूडियो को बेचने का फैसला सम्मिलित रूप से उनकी पत्नी कृष्णा, बेटे रणधीर, ऋषि, राजीव कपूर और बेटियों रितु नंदा और रीमा जैन ने लिया है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक इसे बेचने के लिए अभी कोई अंतिम समयसीमा तय नहीं की गई है। मगर कपूर परिवार ने इस विशालकाय स्टूडियो को खरीदने के इच्छुक बिल्डर्स, डेवलपर्स और कॉरपोरेट्स के साथ बातचीत करने के लिए एक टीम बना दी है।
कभी इस स्टूडियों में त्योहारों पर रौनक देखते ही बनती थी। विशेष रूप से यहां की होली खूब मशहूर हुई। पुराने दौर में शायद ही कोई बड़ा सितारा हो, जिसने यहां होली न खेली हो। एक वक्त ऐसा भी आया था, जब स्टूडियो आर्थिक मुश्किल में फंस गया था।
लेखिका मधु जैन ने अपनी किताब फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडियन सिनेमा- द कपूर्स में लिखा है, तब नरगिस ने अपना पैसा आरके की फिल्मों में लगाना शुरू किया। यहां तक कि आर के फिल्म्स को पैसों की कमी हुई तो एक बार उन्होंने अपने सोने के कंगन तक बेच डाले। आरके के कम होते खजाने को भरने के लिए उन्होंने बाहर के प्रोड्यूसरों की कई फिल्मों में भी काम किया।
नर्गिस बन गयी थीं इन-हाउस हीरोइन
ऋषि लिखते हैं कि नर्गिस को इन-हाउस हीरोइन कहते थे और आरके स्टूडियो के लोगो में भी वो शामिल हैं। राज और नर्गिस पहली बार आग में साथ आए थे, जो राज कपूर की बतौर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर पहली फ़िल्म थी। इसी फ़िल्म के साथ आरके बैनर की बुनियाद भी रखी गई थी। इसी फ़िल्म के एक दृश्य में नर्गिस राज कपूर की बाहों में डूबी नज़र आती हैं, जिसे स्टूडियो के लोगो के रूप में अमर कर दिया गया।
लोन लेकर खरीदी थी जमीन
राज कपूर ने लोन लेकर स्टूडियो बनाने के लिए जमीन खरीदी थी। 40 के दशक के अंतिम दिनों और 50 के दशक के शुरू में चैंबूर में सिर्फ शाम को बिजली आती थी, इसलिए फिल्मों की शूटिंग भी रात में ही संभव होती थी। सत्यम शिवम सुंदरम के क्लाइमेक्स के बाढ़ का मशहूर सीन और यश चोपड़ा की सुपर हिट फिल्म काला पत्थर के क्लाइमेक्स में कोयले की खदान में पानी भरने वाला सीन इसी स्टूडियो में फिल्माया गया था।
निर्माताओं का पसंदीदा नहीं रह गया था आरके स्टूडियो
साल 2017 के 16 सितंबर को स्टूडियो में भयंकर आग लग गई थी। आग में स्टूडियो का बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया था। इसके बाद कपूर परिवार को इसे चलाना फायदे का सौदा नहीं लगा। आग लगने से पहले भी यह स्टूडियो सफेद हाथी ही साबित हो रहा था। फिल्म, टेलीविजन सीरियल और विज्ञापन फिल्मों की शूटिंग से जो पैसे मिलते थे, वह रखरखाव, मुफ्त पार्किंग स्पेस और एयरकंडीशन के खर्चे में ही निकल जाते थे।
एक और बड़ी वजह यह है कि कभी बड़े फिल्म निर्माताओं जैसे मनमोहन देसाई और देव आनंद के नवकेतन बैनर का पसंदीदा रहा चैंबूर स्थित आरके स्टूडियो नए जमाने के निर्माताओं का पसंदीदा नहीं रह गया था। अब ज्यादातर निर्माता अपने सेट दक्षिण मुंबई के अंधेरी और गोरेगांव के स्टूडियो में बनाना पसंद करते हैं।